लगातार बढ़ते राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए केंद्र सरकार लगातार प्रयास कर रही है. इसी दिशा में केंद्र ने भारतीय रिजर्व बैंक से 13 हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त लाभांश देने की मांग की है. यह पहले दिए गए 30,659 करोड़ रुपये के अलावा है.
आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने गुरुवार को ही इसका संकेत दे दिया था. उन्होंने उम्मीद जताई थी कि इस महीने आरबीआई सरकार को अतिरिक्त डिविंडेंड अथवा लाभांश दे सकता है.
पिछले साल अगस्त में भारतीय रिजर्व बैंक ने सरकार को 30,659 करोड़ रुपये का लाभांश दिया था. यह लाभांश जून 2017 में समाप्त हुए वित्त वर्ष के लिए दिया गया था. यह 2015-16 में दिए गए 65,876 करोड़ रुपये की रकम से काफी कम था.
केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री पोन राधाकृष्णनन ने लोकसभा में लिखित में इसकी जानकारी देते हुए बताया था कि सरकार ने केंद्रीय बैंक से 13 हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त डिविंडेंड देने की मांग की है. उन्होंने बताया था कि सरकार की तरफ से यह मांग मालेगाम समिति की सिफारिश पर की गई थी. समिति ने सिफारिश की थी कि आरबीआई पूरे सरप्लस को सरकार को स्थानांतरित कर दे.
राजकोषीय घाटे का बढ़ रहा दबाव
जीडीपी के मुकाबले राजकोषीय घाटे का दबाव सरकार पर लगातार बढ़ रहा है. मौजूदा वित्त वर्ष में इसके जीडीपी की तुलना में 3.5 फीसदी के स्तर पर पहुंचने का अनुमान है. बजट में इसके 3.2 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है.
आरबीआई सरकार को क्यों देता है पैसे?
भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना 1934 में की गई थी. केंद्रीय बैंक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट, 1934 के अनुसार काम करता है. इस एक्ट के चैप्टर 4 में सेक्शन 47 में सरकार को पैसे दिए जाने का जिक्र है. इसके मुताबिक जब भी केंद्रीय बैंक को अपने ऑपरेशन से जो भी लाभ होता है, उसे सरकार को देना पड़ता है.