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गुजरात विधान सभा चुनाव: यह भाजपा की जीत जरूर है लेकिन कांग्रेस की हार नहीं

गुजरात विधान सभा चुनाव: यह भाजपा की जीत जरूर है लेकिन कांग्रेस की हार नहीं

'जीत चाहे एक सीट से ही हो, जीत...Editor

'जीत चाहे एक सीट से ही हो, जीत तो जीत है' या फिर 'जो जीता वही सिकंदर' जैसे चर्चित जुमलों के बीच भाजपा में जश्न का माहौल है। 150 सीटें जीतने का दावा करने वाली सत्तारूढ़ भाजपा बेशक अपने पिछले आंकड़े से भी काफी पीछे खिसक गई लेकिन फिर से सरकार बना लेने की खुशी में अब भी भाजपा के नेता राहुल गांधी पर तीखे तीर छोड़ने से पीछे नहीं हट रहे।

एकदम विपरीत परिस्थितियों में कांग्रेस ने अगर अपनी ताकत बढ़ाई और करीब 10 से 15 सीटों का लाभ कमाया तो इसे एक अकेले राहुल गांधी की जबरदस्त मेहनत का नतीजा ही माना जा सकता है। एक तरफ देश के प्रधानमंत्री और गुजरात के अपने नरेन्द्र मोदी, अमित शाह, वहां की पूरी सरकार और केंद्रीय नेतृत्व की पूरी फौज थी तो दूसरी तरफ देश भर में हाशिये पर पहुंच चुकी कांग्रेस की इकलौती आस राहुल गांधी।
एक तरफ विकास के नाम पर पूछे गए तमाम सवाल थे तो दूसरी तरफ गांधी खानदान और कांग्रेस पर होने वाले धारदार हमले। गुजरात के चुनावी नतीजों के मायने चाहे जो निकाले जाएं लेकिन ये बात सब मानते हैं कि राहुल गांधी की मेहनत ने एकदम विपरीत परिस्थितियों में भी असर दिखाया है।
PC: रवि बत्रा
लेकिन गुजरात के चुनाव नतीजों ने एक बात साफ कर दी है कि वहां का युवा सचमुच बदलाव चाहता है। कम से कम राहुल गांधी ने जिन तीन युवा चेहरों – हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर पर भरोसा किया, उन्होंने अपने अपने इलाके में इज्जत बचा ली।
पाटीदारों का असंतोष अपने पक्ष में करने में कांग्रेस कामयाब रही, बेशक इसके लिए उसने पूर्वी गुजरात में आदिवासियों के अपने परंपरागत वोट खोकर एक बड़ी कीमत चुकाई। लेकिन रणनीतिक तौर पर उसका सौराष्ट्र और कच्छ पर ज्यादा जोर लगाना काम आया। इस इलाके में कांग्रेस ने बाजी पलट दी और भाजपा की आधी सीटें झटक लीं।
नोटबंदी और जीएसटी जैसे मुद्दे को भुनाने में कांग्रेस काफी हद तक कामयाब रही, लेकिन आखिरी दौर में धर्म या सॉफ्ट हिन्दुत्व जैसे मुद्दे और अपने बुजुर्ग नेताओं के ऊटपटांग बयानों ने राहुल की मेहनत पर पानी फेर दिया।
अब इस बात पर विश्लेषण तमाम हो सकते हैं, लेकिन ये बात साफ हो गई कि मोदी ने जिस तरह गुजरात की अस्मिता के सवाल पर और अपने भावुक अंदाज़ में वोट मांगने के अंदाज़ से आखिरी वक्त में लोगों को अपने पक्ष में खड़ा किया उसी का फायदा भाजपा को मिला है।
PC: self
राहुल गांधी ने जिस नाज़ुक दौर में कांग्रेस की कमान संभाली है, और उनके बारे में जिस तरह के बयान भाजपा नेता दे रहे हैं, उसे अगर इस सियासी खेल का हिस्सा मान भी लें तो भी कांग्रेस और खासकर राहुल की इस बात के लिए तारीफ की जानी चाहिए कि मोदी और अमित शाह के गढ़ में उन्होंने ये साबित कर दिया कि अगर थोड़ी रणनीतिक चूक न हुई होती तो यहां बाज़ी पलट सकती थी।
अंतिम वक्त में शंकर सिंह वाघेला का कांग्रेस छोड़ना और कपिल सिब्बल या मणिशंकर अय्यर जैसे नेताओं के बयान या फिर सुरजेवाला का राहुल को जनेऊधारी हिन्दू का दर्जा दिए जाने वाला बयान, ये सब कांग्रेस की हार की वजह बन गई। लेकिन भाजपा के लोग भी ये मानते रहे कि राहुल ने इस बार उनके आगे बड़ी चुनौती खड़ी कर दी थी और ये बात इन नतीजों ने साबित भी कर दिया है।
जाहिर है कि इन नतीजों ने अगले साल होने वाले कुछ राज्यों के विधानसभा चुनावों और 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए रणनीति बनाने के कई फार्मूले भी दिए हैं और युवाओं को किस तरह इस मोदी लहर के खिलाफ खड़ा किया जाए, उसकी एक बानगी भी दिखाई है। अब इसे राहुल गांधी की कांग्रेस कैसे ज़मीन पर उतारती है, यह देखने वाली बात होगी।

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