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राज्यसभा में ऐसे फेल हुआ सपा-बसपा गठबंधन, उपचुनाव में हार का BJP ने लिया बदला

राज्यसभा में ऐसे फेल हुआ सपा-बसपा गठबंधन, उपचुनाव में हार का BJP ने लिया बदला

बीजेपी से मुकाबला करने के लिए...Editor

बीजेपी से मुकाबला करने के लिए सपा-बसपा ने 23 साल पुरानी दुश्मनी को भुलाकर यूपी में राज्यसभा चुनाव के लिए कमर कसा था. गोरखपुर-फूलपुर उपचुनाव के सियासी रणभूमि में बसपा ने सपा को समर्थन किया, तो बीजेपी चारो खाने चित हो गई. राज्यसभा चुनाव मतदान से पहले तक बीजेपी के खिलाफ विपक्ष का गठबंधन और मजबूत होता नजर आया.


बसपा को सपा, कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष ने समर्थन किया. इसके बावजूद बीएसपी अपने उम्मीदवार भीमराव अंबेडकर को नहीं जिता सकी. जबकि विपक्ष से कम वोट होने के बावजूद बीजेपी ने जीत हासिल कर सपा-बसपा से राज्य लोकसभा उपचुनाव में मिली हार का बदला ले लिया.

सूबे की सियासत में सपा-बसपा अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं. पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में सफाया हुआ और फिर 2017 के विधानसभा चुनाव में करारी मात खानी पड़ी. इसी का नतीजा है कि सपा-बसपा ने बीजेपी से मुकाबला करने के लिए अपनी 23 साल पुरानी दुश्मनी को भुलाकर दोस्ती का हाथ मिलाया.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की गोरखपुर संसदीय सीट और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की फूलपुर सीट के उपचुनाव का ऐलान हुआ. सपा ने दोनों जगह अपने उम्मीदवार उतारे. मतदान से एक हफ्ता पहले बसपा ने फूलपुर और गोरखपुर सीट पर सपा को उम्मीदवार को समर्थन करना का ऐलान कर दिया था. ये ऐलान सिर्फ जुबानी नहीं था बल्कि जमीन पर भी दिखा. इसी का नतीजा रहा कि बीजेपी के सत्ता में रहते हुए सीएम और डिप्टी सीएम की संसदीय सीट पर सपा के हाथों करारी मात मिली. इसमें मुख्यमंत्री की गोरखपुर की वह सीट भी थी जिसे पिछले तीस साल से कोई छीन नहीं पाया था.

उपचुनाव में मिली जीत से सपा के हौसले बुलंद थे और अखिलेश यादव को बीजेपी को हराने का फॉर्मूला मिल चुका था. अखिलेश ने सूबे के राज्यसभा चुनाव में बीएसपी को रिटर्न गिफ्ट देने के लिए समर्थन का ऐलान कर दिया था. बसपा सुप्रीमो मायावती ने राज्यसभा के लिए संख्या बल विधायक न होने के बावजूद भीमराव अंबेडकर को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया था.

बीजेपी ने उपचुनाव का हिसाब बराबर करने के लिए राज्यसभा चुनाव में 9 प्रत्याशी उतार दिए. जबकि बीजेपी के पास भी 9वें उम्मीदवार अनिल अग्रवाल को जिताने के लिए पर्याप्त वोट नही थे. सूबे के मौजूदा विधायकों की संख्या के लिहाज से बीजेपी के 8 उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित थी. इसके बाद बीजेपी गठबंधन के पास 28 वोट अतरिक्त बढ़ रहे थे. जबकि राज्यसभा की एक सीट के लिए सूबे में 37 विधायकों की जरूरत होती है. इस तरह बीजेपी को 9 अतिरिक्त वोटों को जुटाना था.

विपक्ष के पास 47 विधायक सपा के, 19 बसपा, और 7 कांग्रेस सहित एक आरएलडी और 4 निर्दलीय थी. इनमें सपा की एक सीट पर जीत तय थी. इसके बाद 10 वोट अतरिक्त बढ़ रहे थे, जिसे बसपा उम्मीदवार को देने का ऐलान अखिलेश यादव ने किया था. मतदान से दो दिन पहले सूबे की सियासत में कई बड़े सियासी खेल खेंले जाने लगे. एक दूसरे क पार्टी में विधायकों की सेंधमारी की कोशिशें तेज हुईं.

सूबे के सियासी हालत को देखते हुए बसपा सुप्रीमो मायावती ने सपा से 10 अतरिक्त विधायकों की लिस्ट मांगी जो बीएसपी उम्मीदवार को पहली प्राथमिकता के आधार पर वोट करेंगे. अखिलेश किसी भी सूरत में मायावती की दोस्ती को नहीं तोड़ना चाहते हैं. इसी मद्देनजर अखिलेश यादव ने अपने सबसे विश्वसनीय विधायकों की लिस्ट बसपा सुप्रीमो को सौंप दी.

सत्तापक्ष ने अपने 9वें उम्मीदवार को जिताने के लिए निर्दलीय विधायकों के साथ-साथ सपा और बसपा के विधायकों में सेंधमारी की. सपा के नितिन अग्रवाल और बसपा के अनिल सिंह ने बीजेपी उम्मीदवार को अपना वोट दिया. जबकि बसपा के विधायक मुख्तार अंसारी और सपा के एक विधायक हरिओम यादव को जेल में बंद रहने के कारण वोट डालने की इजाजत नहीं मिली. वहीं निर्दलीय विधायक रघुराज प्रताप सिंह और विनोद सरोज के वोट को लेकर पूरा दिन संशय बना रहा. उन्होंने कहा कि सपा को वोट देने का वादा किया उसे ही दूंगा, लेकिन बसपा को नहीं दूंगा. उन्होंने वोट डाला और बीजेपी उम्मीदवार अनिल के साथ मुख्यमंत्री योगी से मिले. उन्होंने अपना वोट किसे दिया ये वही जानते हैं.

सूबे में किसी समय धुर विरोधी रहे सपा और बसपा की नई- नई दोस्ती भी यहां बसपा उम्मीदवार भीमराव को जिताने के काम नहीं आई और राज्य की दस राज्यसभा सीटों में से 9 बीजेपी की झोली में चली गई. इस तरह बीजेपी ने उपचुनाव में हार का बदला राज्यसभा चुनाव में बराबर कर लिया है.

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