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इस बड़े कारण से 22 नवम्बर को बनारस पहुंच सकते हैं पूर्व CM अखिलेश

इस बड़े कारण से 22 नवम्बर को बनारस पहुंच सकते हैं पूर्व CM अखिलेश

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वाराणसी. भले ही समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने निकाय चुनाव में प्रचार न करने के बात कही हो, लेकिन बनारस में उनकी पार्टी की इकाई ने निकाय चुनाव को सपा की प्रतिष्ठा से जोड़ा दिया है. पार्टी छाती है कि बनारस में नगर निकाय चुनावों में बीजेपी को पछाड़ पूरे देश में बड़ा संदेश दिया जाए. पार्टी इसी रणनीति पर काम करना भी शुरू कर चुकी है. इसी रणनीति के चलते पार्टी के स्थानीय नेता चाहते हैं कि सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव बनारस का दौरा कर पार्टी के कार्यकर्ताओं का हौसला बढाएं और साथ ही मतदाताओं में भी पार्टी के लिए सकारात्मक संदेश देने का काम करें.

सूत्रों के अनुसार सपा की ओर से 22 नवंबर की तिथि तय की जा रही है. इस दौरान सपा की वरिष्ठ नेता डिंपल यादव को भी बनारस बुलाने की तैयारी हो रही है. फिलहाल, प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल ने 17 नवंबर को बनारस आने के लिए सहमति दे दी है. दो दिनी प्रवास पर बनारस आ रहे हैं. इस दौरान नुक्कड़ सभाओं के अलावा बैठकें करेंगे. चुनावी रणनीति पर मंथन होगा.
वहीं शनिवार को हुई बैठक में भाजपा को घेरने की पूरी तैयारी सपा ने कर ली है. वह नगर वासियों की बुनियादी सुविधाओं को फोकस करेगी. यह संदेश देगी कि पिछले 22 साल से भाजपा ने किस तरह से बुनियादी सुविधाओं की उपेक्षा की है. इस मुद्दे को महापौर से लेकर पार्टी के सभी पार्षद प्रत्याशी जोर-शोर से उठाएंगे. पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने शनिवार को हुई बैठक में एक-एक प्रत्याशी को यह चुनावी रणनीति का पाठ पढ़ाया. बैठक में जिलाध्यक्ष डा. पीयूष यादव व महानगर अध्यक्ष राजकुमार जायसवाल, पूर्व मंत्री मनोज राय धूपचंडी सहित अन्य वरिष्ठ नेताओं ने प्रत्याशियों को बताया कि किस तरह से 1995 से 2017 तक भाजपा नगर निगम पर काबिज रही.
लगातार चार बार उनकी पार्टी का महापौर हुआ लेकिन इन 22 सालों में विकास के नाम पर कोई कार्य नहीं किए गए. सपा पार्षदों ने निगम सदन में जो जनहित के मुद्दे उठाए तो लेकिन उस पर गौर नहीं फरमाया गया. पिछले नगर निगम में तो कार्यकारिणी तक का गठन नहीं किया गया. कार्यकारिणी में जनता के चुने हुए प्रतिनिधि अपना प्रस्ताव पेश करते हैं. ऐसे मुद्दों को जनता को समझाया जाए. अगर उन्हें शुद्ध पेयजल नहीं मिल रहा तो उसका जिम्मेदार कौन है, सपा पार्षदों ने तो यह मुद्दा सदन में उठाया था लेकिन बहुमत वाली भाजपा ने उस पर तवज्जो ही नहीं दिया.

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