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नए कवियों की कुछ नई रचनाएं...कह रहीं नई कहानी

नए कवियों की कुछ नई रचनाएं...कह रहीं नई कहानी

देश में परंपरावादी कवियों से...Editor

देश में परंपरावादी कवियों से इतर अब नए कवियों ने काव्य का कलेवर अपनी ज्वलंत रचनाओं से बदल कर रख दिया है। इनकी कविताओं में कोई बड़ी उपमाएं नहीं है और न ही कोरी कल्पनाएं हैं। इनकी कविताएं तो सीधे और सरल शब्दों में कुरीतियों पर तीखा व्यंग्य करती हैं। महिला सशक्तिकरण, देह और चेतना का अंतर, सामाजिक बदलाव, बाल विवाह, बाल श्रम स‌हित अन्य विषयों पर इनका व्यापक दखल है। काव्य चर्चा के तहत हम देश के अलग-अलग राज्यों में रह रहे युवा कवियों की कविताएं आपके समक्ष रख रहे हैं।

छल करती स्त्रियां...
हंसती है बात-बात पर
ठहाके लगाकर
मर्दों के बीच
शरमाती नहीं
हिचकिचाती नहीं अपनी बात रखने से
हर मसले पर
अब तो राजनीति भी जानने लगी है
झट सूंघ लेती है
खुसुर-फुसुर में की गई ‌‌द्विअर्थी बातें
अरे
कितना भी पढ़ लें ये
कहां से पढ़ पाएंगी
हमारे दोहरे चेहरे
कितना भी लिख लें
हम सिरे से खारिज कर देंगे इनके समक्ष
इनकी ही उपस्थिति
फिर अकेले में फुसलाएंगे इन्हें
बार-बार बहलाएंगे इन्हें
‌कि
इनकी दुनिया तो रसोई के भीतर सोई पड़ी है
उसे जगाओ
और हमारी चाही अनचाही भूख मिटाओ
जो किसी ने दिया हमें पलटकर जवाब
और चली जो ये लाने इंकलाब
हम हल्ला मचा देंगे
बड़े तेज तर्रार होती हैं
ये खल करती स्त्रियां
हाथ नहीं आती हैं
ये छल करती स्त्रियां...
अनुप्रिया सामाजिक समरसता की प्रबल पक्षधर हैं। कविताओं का शौक बचपन से है। फरीदाबाद-हरियाणा में निवासरत हैं।
दूब और मनुष्य...
देख रहो हो न
दूबों की संघर्ष-गाथा को
बरसात के मौसम में
पानी के नीचे दबे होने के बावजूद
धूप से अठखेलियां करते
कैसे हमें बता रहे हैं
संघर्षों के सघन छाया में
मुस्कुराते रहने की कला
कैसे हमें सिखा रहे हैं
धूप, पानी, हवा के थपेड़े को
सहते रहने और
मृतप्राय हो जाने के बावजूद
अपने वारिस को तैयार करना
शोषकों से लेकर खुराक अपनी
फिर से उठ खड़ा होना
अनिल कुमार पांडेय को शब्दों से प्यार है। हिंदी विभाग, पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ में कार्यरत पांडेय ने मानव अस्तित्व पर अच्छी कविताएं लिखी हैं।
हम पर आज यह इल्जाम और सही...
हम पर आज यह इल्जाम और सही
उनके गद्दारों में हमारा नाम और सही
हम तुमसे रौशनी की भीख नहीं मांगेंगे
हमारी जिंदगी में कुछ देर शाम और सही
हां तेरे बीमारों में हमारा नाम न रहेगा
इस खिलाफत का यह ईनाम और सही
दिल टूटा है कि फिर आज कोई रूठा है
छोड़ इसी बात पर एक जाम और सही
उनकी महफिल में गर सर उठाना जुर्म है
तो भुगत लेंगे इसका अंजाम और सही
छत्तीसगढ़ जैसे छोटे राज्‍य के अजय चंद्रवंशी अपनी कविताओं से सामाजिक बदलाव लाना चाहते हैं। उनका मानना है कि मेहनत से ही विकास अस्तित्व से जुड़ता है।
साभार-कविता विशेषांक 2017
प्रथम वर्षगांठ विशेष

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