2025 में कब है बुद्ध पूर्णिमा? जानिए तिथि, महत्व, पूजा विधि और इस दिन स्नान-दान का धार्मिक लाभ

2025 में कब है बुद्ध पूर्णिमा? जानिए तिथि, महत्व, पूजा विधि और इस दिन स्नान-दान का धार्मिक लाभ
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वैशाख मास की पूर्णिमा तिथि को बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है, जो न केवल बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए बल्कि सनातन संस्कृति में विश्वास रखने वाले हर व्यक्ति के लिए अत्यंत पवित्र मानी जाती है। इस दिन को त्रिविध महायोग का प्रतीक कहा जाता है, क्योंकि यहीं से शुरू होती है भगवान गौतम बुद्ध की आध्यात्मिक यात्रा और इसी दिन उनका पृथ्वी से विदाई का क्षण भी जुड़ा है।

ऐतिहासिक और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान गौतम बुद्ध का जन्म लुंबिनी (वर्तमान नेपाल) में वैशाख पूर्णिमा के दिन हुआ था। फिर वर्षों की कठोर तपस्या और आत्मचिंतन के बाद बिहार के बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे उन्हें आत्मज्ञान प्राप्त हुआ। यही नहीं, जीवन के अंतिम क्षणों में बुद्ध ने उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में इसी दिन महापरिनिर्वाण को प्राप्त किया। यह तीनों घटनाएं बुद्ध पूर्णिमा को अतुलनीय आध्यात्मिक महत्व प्रदान करती हैं।

धार्मिक दृष्टिकोण से स्नान और दान का विशेष महत्व

बुद्ध पूर्णिमा का दिन केवल पूजन या ध्यान का ही नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और सेवा भाव को जागृत करने का भी अवसर होता है। इस दिन देशभर में श्रद्धालु पवित्र नदियों, विशेषकर गंगा, यमुना, नर्मदा और सरस्वती जैसे तीर्थ स्थलों में स्नान करते हैं। यदि किसी कारणवश तीर्थ स्नान संभव न हो, तो घर पर स्नान जल में कुछ बूंदें गंगाजल मिलाकर स्नान किया जा सकता है।

इसके अलावा, इस दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व बताया गया है। अन्न, वस्त्र, जल पात्र, फल और तांबे के बर्तन का दान करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है। धर्मग्रंथों में वर्णित है कि बुद्ध पूर्णिमा के दिन किया गया पुण्य कई गुना फलदायी होता है। यह जीवन में बाधाओं को दूर कर प्रगति के मार्ग को प्रशस्त करता है।

2025 में बुद्ध पूर्णिमा कब है?

पंचांग के अनुसार, वर्ष 2025 में बुद्ध पूर्णिमा 12 मई, सोमवार को मनाई जाएगी। इस दिन सूर्योदय से पहले पवित्र स्नान करने और दिनभर उपवास व ध्यान में लीन रहने की परंपरा है। विशेष रूप से बौद्ध विहारों, स्तूपों और बौद्ध मंदिरों में दीप प्रज्ज्वलन, बुद्ध वाणी का पाठ, ध्यान और बुद्ध चरित्र पर प्रवचन आयोजित किए जाते हैं।

बुद्ध पूर्णिमा पर केवल धार्मिक कर्मकांड ही नहीं, बल्कि आत्ममंथन, करुणा और अहिंसा जैसे मूल्यों को अपनाने का भी आह्वान किया जाता है। यह दिन व्यक्ति को अपने भीतर झाँकने और जीवन की सच्ची राह को अपनाने की प्रेरणा देता है।

यह लेख/समाचार लोक मान्यताओं और जन स्तुतियों पर आधारित है। पब्लिक खबर इसमें दी गई जानकारी और तथ्यों की सत्यता या संपूर्णता की पुष्टि की नहीं करता है।

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