क्या महिलाएं हनुमान जी की मूर्ति को छू सकती हैं? जानिए मंगलवार के व्रत, हनुमान चालीसा पाठ और धार्मिक मान्यताओं का सच

मंगलवार का दिन हिंदू धर्म में संकटमोचन हनुमान जी की उपासना के लिए विशेष रूप से शुभ माना गया है। इस दिन भक्तजन व्रत रखते हैं, मंदिर जाकर दर्शन करते हैं और हनुमान चालीसा का पाठ कर प्रभु से शक्ति, साहस और कष्टों से मुक्ति की प्रार्थना करते हैं। परंतु एक प्रश्न अक्सर चर्चा में रहता है—क्या महिलाएं हनुमान जी की प्रतिमा को स्पर्श कर सकती हैं? और क्या उन्हें हनुमान चालीसा पढ़नी चाहिए या नहीं? इन धार्मिक शंकाओं को समझना जरूरी है, ताकि श्रद्धा के साथ-साथ सच्ची जानकारी भी मिल सके।
मंगलवार और हनुमान पूजा का महत्व
मंगलवार का दिन मंगल ग्रह और हनुमान जी को समर्पित होता है। इस दिन बजरंगबली की पूजा करने से जीवन के संकट दूर होते हैं और मनोबल में वृद्धि होती है। लोग मंदिर जाकर हनुमान जी को सिंदूर, चमेली का तेल और लाल फूल अर्पित करते हैं। हनुमान जी की पूजा विशेष रूप से शक्ति, साहस और निडरता का प्रतीक मानी जाती है। भक्त चरण स्पर्श करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
क्या महिलाएं हनुमान जी की प्रतिमा को छू सकती हैं?
इस विषय में आम धारणा है कि महिलाएं विशेषकर गर्भवती या रजस्वला अवस्था में हनुमान जी की मूर्ति को नहीं छूनी चाहिए। इस मान्यता की जड़ें पारंपरिक अवधारणाओं में हैं, जहां हनुमान जी को बाल ब्रह्मचारी माना गया है। चूंकि उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया, इसीलिए कुछ परंपराओं में स्त्रियों को उनकी प्रतिमा को छूने से मना किया गया है, ताकि उनकी तपस्या भंग न हो।
हालांकि, यह पूर्णतः धार्मिक आस्था और व्यक्तिगत परंपराओं पर आधारित है। कई स्थानों पर महिलाएं भी हनुमान मंदिरों में श्रद्धापूर्वक पूजा करती हैं, प्रसाद चढ़ाती हैं और प्रतिमा के समीप जाकर भी अर्चना करती हैं। स्पर्श करने की मनाही एक श्रद्धा की मर्यादा है, कोई कठोर निषेध नहीं।
क्या महिलाएं हनुमान चालीसा का पाठ कर सकती हैं?
इस विषय में कोई धार्मिक प्रतिबंध नहीं है। हनुमान चालीसा एक भक्तिमय स्तुति है, जिसमें प्रभु हनुमान की शक्ति, सेवा भावना और प्रभु राम के प्रति समर्पण का वर्णन है। यह पाठ सभी के लिए समान रूप से लाभकारी है—चाहे पुरुष हों या स्त्रियां।
वास्तव में कई महिलाओं ने अपनी कठिन परिस्थितियों में हनुमान चालीसा के नियमित पाठ से चमत्कारी अनुभव साझा किए हैं। मानसिक शांति, भय से मुक्ति, शत्रुओं पर विजय और आत्मबल की प्राप्ति जैसे कई लाभों का उल्लेख मिलता है। इसलिए महिलाएं न केवल हनुमान चालीसा पढ़ सकती हैं, बल्कि उसे अपने जीवन में नियमित रूप से शामिल कर सकती हैं।
आध्यात्मिकता में लिंगभेद नहीं होता
धार्मिक दृष्टिकोण से यह आवश्यक है कि भक्ति भावना लिंग, उम्र या सामाजिक सीमाओं से ऊपर हो। जब श्रद्धा सच्चे हृदय से की जाए, तो भगवान सभी को समान दृष्टि से देखते हैं। हनुमान जी स्वयं सेवा, विनम्रता और समर्पण के प्रतीक हैं—ऐसे में कोई भी भक्त, चाहे स्त्री हो या पुरुष, उनके प्रति आस्था प्रकट कर सकता है।
यह लेख/समाचार लोक मान्यताओं और जन स्तुतियों पर आधारित है। पब्लिक खबर इसमें दी गई जानकारी और तथ्यों की सत्यता या संपूर्णता की पुष्टि की नहीं करता है।