इस किले पर है एशिया की सबसे बड़ी तोप, इतिहास में एक बार चली और बना दिया तालाब

इस किले पर है एशिया की सबसे बड़ी तोप, इतिहास में एक बार चली और बना दिया तालाब
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जयपुर में जयगढ़ किले में एक ऐसी तोप है जिसके बारे में सुनते ही दुश्मन कांप जाते थे। इस तोप को बनाने के लिए 1720 में जयगढ़ किले में ही एक विशेष कारखाना बनवाया गया।

परीक्षण में जब इस तोप से गोला दागा गया, तो वह शहर से 35 किलोमीटर दूर जाकर गिरा। जहां वह गोला गिरा वहां एक तालाब बन गया। अब तक उसमें पानी भरा है और लोगों के काम आ रहा है।

बता दें इस किले के नाम के आधार पर ही इस तोप का नामकरण किया गया। जी हां, इस तोप का नाम है 'जयबाण तोप'। आमेर महल के पास स्थित जयगढ़ के किले में यह तोप स्थित है।

इसे 'एशिया की सबसे बड़ी तोप' के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि सवाई जयसिंह द्वितीय ने अपनी रियासत की सुरक्षा और उसके विस्तार के लिए कई कदम उठाए। जयगढ़ का किला और वहां स्थापित जयबाण तोप उनकी इस रणनीति का ही हिस्सा थी।

अरावली की पहाड़ी पर स्थित जयगढ़ किले के डूंगरी दरवाजे पर स्थित जयबाण तोप के बारे में कहा जाता है कि यह एशिया की सबसे बड़ी और वजनदार तोप है। इस तोप की नली से लेकर अंतिम छोर की लंबाई 31 फीट 3 इंच है। तोप की नली का व्यास करीब 11 इंच है। आप यकीन नहीं करेंगे इस तोप के सामने एक आदमी भी पिद्दी नजर आता है। साइज में यह तोप बेहद विशाल दिखती है। इस तोप का वजन 50 टन से भी अधिक होने का अनुमान है।

ताज्जुब की बात ये है कि जयबाण तोप का इस्तेमाल आज तक किसी युद्ध में नहीं किया गया और न ही इसे कभी यहां से हिलाया गया। 30-35 किलोमीटर तक मार करने वाली इस तोप को एक बार फायर करने के लिए 100 किलो गन पाउडर की जरूरत होती थी। अधिक वजन के कारण इसे किले से बाहर नहीं ले जाया गया और न ही कभी युद्ध में इसका इस्तेमाल किया गया।
इस तोप को जयगढ़ के किले के कारखाना में बनाया गया। इसकी नाल भी यहीं पर विशेष तौर से बनाए सांचे में ढाली गई थी। लोहे को गलाने के लिए भट्टी भी यहां बनाई गई। इसके प्रमाण जयगढ में आज भी मौजूद है। इस कारखाने में और भी तोपों का निर्माण हुआ। विजयदशमी के दिन इस तोप की विशेष पूजा की जाती है।



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