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पूर्वोत्तर में कांग्रेस का खिसकता जनाधार, बीजेपी के लिए वरदान

पूर्वोत्तर में कांग्रेस का खिसकता जनाधार, बीजेपी के लिए वरदान

पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में...Editor

पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव के मतदान के शुरू होने में महज चार दिन बचे हैं. त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. जबकि बीजेपी तीन में से दो राज्यों में मुख्य मुकाबले में है. पूर्वोत्तर में कांग्रेस का खिसकता जनाधार बीजेपी के लिए वरदान बनता दिख रहा है.

कांग्रेस के हाथ से निकलती सत्ता
बता दें कि पूर्वोत्तर कभी कांग्रेस का मजबूत गढ़ माना जाता रहा है. लेकिन अब उसकी पकड़ लगातार कमजोर होती जा रही है. पूर्वोत्तर की सियासत ने ऐसी करवट ली कि कांग्रेस अपने 'हाथ' से असम और मणिपुर के निकलने के बाद मेघालय की सत्ता को बचाए रखने की चुनौती से जूझ रही है. वही नगालैंड में कांग्रेस की सियासी हालत बहुत ही खराब नजर आ रही है.
संघ की मेहनत का फल काटती बीजेपी
पूर्वोत्तर में बीजेपी तेजी से पैर पसारने में जुटी है. बीजेपी मणिपुर, असम और अरुणाचल में सरकार बनाने के बाद पूर्वोत्तर के बाकी राज्यों में तेजी से पैर पसारने में जुटी है. इस क्षेत्र में आरएसएस का जमीनी स्तर पर काम बीजेपी की सियासत के लिए फायदेमंद साबित हो रहा है.
नगालैंड में कांग्रेस को नहीं मिले प्रत्याशी
नगालैंड में 15 साल पहले तक कांग्रेस सत्ता में थी. 2003 के बाद से लगातार कांग्रेस का डाउनफॉल हुआ है. इस बार के विधानसभा चुनाव में पार्टी को राज्य की सभी 60 सीटों पर उम्मीदवार तक नहीं मिले. कांग्रेस राज्य की 23 सीटों पर उम्मीदवार घोषित किए, उसमें 19 ही बचे हैं. कांग्रेस ने बीजेपी को सत्ता से दूर रखने के लिए नगालैंड में धर्मनिरपेक्ष दलों को समर्थन का ऐलान किया है.
बीजेपी ने नगालैंड में एनडीपीपी के साथ गठबंधन किया. राज्य की 60 सीटों में से एनडीपीपी 40 और 20 सीटों पर बीजेपी ने उम्मीदवार उतारे हैं. कांग्रेस ने बीजेपी को रोकने के लिए एनपीएफ को समर्थन दिया है.
त्रिपुरा में कांग्रेस का घटता और बीजेपी का बढ़ता ग्राफ
त्रिपुरा में इस बार की सियासी लड़ाई लेफ्ट और बीजेपी के बीच नजर आ रही है. कांग्रेस त्रिपुरा में अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. कांग्रेस 2013 के विधानसभा चुनाव में दस सीटों और 36 फीसदी मतों के साथ दूसरे स्थान पर थी. लेकिन कई बार राज्य में पार्टी के विभाजन के बाद पार्टी का सियासी भविष्य खतरे में नजर आ रहा है. कांग्रेस से जीते 7 विधायक बीजेपी में शामिल होकर इस बार कमल के फूल को खिलाने में जुटे हैं.
बीजेपी ने 2013 चुनावों के 2 फीसदी वोट शेयर को बढ़ाकर 2014 में 6 फीसदी कर लिया था. त्रिपुरा भले ही छोटा राज्य है लेकिन बीजेपी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. त्रिपुरा की जीत न सिर्फ चुनावी जीत होगी बल्कि यह वैचारिक जीत भी साबित होगी. इसी के मद्देनजर बीजेपी पूरी ताकत के साथ लेफ्ट के दुर्ग में चुनौती देती हुई नजर आ रही है.
मेघालय से कांग्रेस को आखिरी उम्मीद
पूर्वोत्तर में कांग्रेस की आखिरी उम्मीद मेघालय में लगी हुई है. कांग्रेस को अपनी उम्मीदों के मुताबिक मेघालय से नतीजे नहीं आते हैं, तो पूर्वोत्तर में पार्टी सिर्फ मिजोरम तक सीमित हो जाएगी. जबकि मिजोरम में इसी साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं.
कांग्रेस की चिंता, कहीं मेघालय भी हाथ से न फिसल जाए. 2014 में मोदी के नेतृत्व में बीजेपी के उभार ने कांग्रेस को देश की राजनीति में काफी सिमटा दिया है. कांग्रेस की असल चिंता इस बार किसी भी तरह मेघालय में सरकार को बचाने की है. हालांकि बीजेपी यहां भी कांग्रेस के गढ़ में सेंध लगाने की पूरी कोशिश में है. 2013 में मेघालय विधानसभा चुनावों की 60 सीटों में से कांग्रेस को 29 सीटें मिलीं थीं, जिनमें से पांच विधायकों ने बीजेपी का दामन थामकर चुनावी मैदान में है.

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