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बिहार पुलिस की करतूत का जल्द होगा पर्दाफाश, बच्चे को कैसे बना दिया अपराधी..

बिहार पुलिस की करतूत का जल्द होगा पर्दाफाश, बच्चे को कैसे बना दिया अपराधी..

मुख्यमंत्री के आदेश पर मुफ्त...Editor

मुख्यमंत्री के आदेश पर मुफ्त में सब्जी नहीं देने पर किशोर को वयस्क दिखा बाइक लुटेरा बनाकर जेल भेजने के मामले की जांच कर रहे जोनल आइजी नैयर हसनैन खान को कई महत्वपूर्ण जानकारियां मिली हैं।

सभी सरकारी दस्तावेजों के अवलोकन के बाद आइजी ने पाया कि किशोर को बाइक लूट और आम्र्स एक्ट के आरोप में दर्ज बाईपास थाना कांड संख्या 87/18 में 21 मार्च को बेउर जेल भेजा गया था।

इसके बाद अगमकुआं थाने की पुलिस ने उसे कांड संख्या 191/18 और 192/18 का अभियुक्त भी बना डाला।

गौरतलब है कि सीएम ने 48 घंटे में जांच कर रिपोर्ट सौंपने को कहा था। जांच लगभग पूरी कर ली गई है। उम्मीद है कि शनिवार की शाम तक आइजी जांच रिपोर्ट सौंप देंगे।

सूत्रों के अनुसार अगमकुआं थाना पुलिस मुफ्तखोरी का विरोध करने से इतनी नाराज थी कि किशोर को जेल भेजने के बाद जिन दो कांडों में उसे अभियुक्त बनाया गया था, उसमें वरीय पुलिस अधिकारी का सुपरविजन रिपोर्ट प्राप्त किए बिना ही अनुसंधानकर्ता ने कोर्ट में चार्जशीट कर दिया। इन दोनों कांडों में लूट व डकैती की साजिश रचने जैसी संगीन धारा वर्णित है।

पटना हाईकोर्ट के अधिवक्ता सुरेश कुमार गुप्ता की मानें तो ऐसे कांडों में एसडीपीओ की सुपरविजन रिपोर्ट और पुलिस अधीक्षक का अंतिम प्रतिवेदन अनिवार्य है। इसके बाद चार्जशीट नहीं की जाएगी। बड़ी बात है कि जिस कांड में गिरफ्तार कर किशोर को जेल भेजा गया था, उसमें चार्जशीट नहीं हुई। इससे अगमकुआं थाना पुलिस की निहित मंशा उजागर होती है। पुलिस नहीं चाहती थी कि किशोर किसी भी सूरत में जेल बाहर आ सके।

किशोर की पूर्व में नहीं हुई थी गिरफ्तारी

जांच के क्रम में जोनल आइजी, सेंट्रल रेंज डीआइजी राजेश कुमार और एसएसपी मनु महाराज के साथ बेउर जेल गए थे। वहां पुलिस और कोर्ट द्वारा समर्पित दस्तावेजों का अवलोकन किया। जेल प्रशासन ने किशोर का पूरा रिकॉर्ड दिखाया, जिससे पता चला कि उसे बाईपास थाने की पुलिस ने जेल भेजा था।

दो अन्य कांडों में अगमकुआं थाने की पुलिस ने प्रोडक्शन वारंट लिया। हालांकि इन मामलों के अलावा उसपर पूर्व में न ही कोई कांड दर्ज है और न वह कभी जेल गया था। प्राथमिकी में पुलिस ने किशोर की उम्र 18 साल लिखी है। वहीं, उसके पिता ने आइजी से मुलाकात कर किशोर के आधार-कार्ड की कॉपी भी दी।

तलब किए गए सिटी के पूर्व एसडीपीओ

शुक्रवार की सुबह आइजी ने अपने कार्यालय कक्ष में किशोर के माता-पिता से मुलाकात कर जानकारी हासिल की थी। इसके बाद वह किशोर के घर भी गए थे। वहां आसपास के लोगों से जानकारी लेने के बाद वह अगमकुआं और बाईपास थाने गए, जहां लगभग आठ-दस पुलिसकर्मियों से सवाल-जवाब किया।

इधर, जांच के क्रम में पटना सिटी के पूर्व एसडीपीओ हरिमोहन शुक्ला की भूमिका संदेहास्पद मिली। आइजी ने उन्हें शनिवार को किसी भी हाल में पटना पहुंचकर अपना पक्ष रखने को आदेश दिया। फिलहाल, वह कटिहार में तैनात हैं। आइजी खुद एएसपी हरिमोहन शुक्ला से पूछताछ करेंगे।

चार दिन बाद जेल पहुंचने पर किशोर को मिला था खाना

किशोर के पिता ने बताया कि बेटे से जेल में मुलाकात करने के बाद पुलिस की प्रताडऩा का पता चला। बेटे ने बताया कि 19 मार्च की शाम पुलिस उसे घर से उठाकर अगमकुआं थाने में लेकर गई थी।

वहां एक पुलिसकर्मी ने उसकी जेब में रखे पांच हजार रुपये निकाल लिए, जो सब्जी बेचने के बाद वह घर लेकर आया था। इसके बाद गाड़ी में बिठाकर यहां-वहां घुमाया। देर रात उसे बाईपास थाने ले गए, जहां नितेश और विशाल पहले से बैठे थे।

पुलिस ने लाठी-डंडे से उसकी खूब पिटाई की। उन दोनों लड़कों की भी पिटाई हो रही थी। 21 मार्च को एसएसपी कार्यालय लाने से पहले भी पीटा गया था और कहा था कि नितेश व विशाल जो कहे उसमें हामी भरना नहीं तो अंजाम और बुरा होगा। इन तीनों में उसे खाने के लिए एक निवाला तक नहीं दिया गया। तीसरे रोज देर शाम उन्हें जेल भेजा गया तो चौथे दिन खाना नसीब हुआ।

पुलिस की लापरवाही से मिट गया महत्वपूर्ण साक्ष्य

किशोर के माता-पिता ने शुक्रवार की सुबह आइजी से मुलाकात की। बताया कि 19 मार्च की शाम लगभग साढ़े सात बजे चित्रगुप्त नगर स्थित घर लौटने के तुरंत बाद पुलिस की एक जिप्सी आई, जो किशोर को बिठाकर ले गई। हालांकि प्राथमिकी में उसकी गिरफ्तारी दो अन्य लड़कों के साथ बाईपास थाना क्षेत्र के महिंद्रा शोरूम के पास से दिखाई गई है।

गिरफ्तारी स्थल की पुष्टि किशोर के मकान के सामने स्थित मिठाई दुकान के बाहर लगे सीसी कैमरे की फुटेज से हो जाती पर उसका बैक-अप एक महीने यानी 19 अप्रैल तक ही था। किशोर के पिता ने जांच के लिए पहला आवेदन दो अप्रैल को एएसपी, एसएसपी से लेकर सीएम तक को दिया था।

अगर पुलिस ने आवेदन को गंभीरता से लिया होता तो महत्वपूर्ण साक्ष्य मिल जाता। आवेदन देने के 17 दिन तक फुटेज डीवीआर में सुरक्षित थी। आइजी ने जांच के क्रम में यह भी पाया कि जनता की शिकायतों पर कार्रवाई नहीं होती।

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