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एक सूर्य मंदिर ऐसा भी जो पूर्वोन्मुखी न होकर पश्चिमोन्मुखी है जानिए क्या है रहस्य

एक सूर्य मंदिर ऐसा भी जो पूर्वोन्मुखी न होकर पश्चिमोन्मुखी है जानिए क्या है रहस्य

देव या देवार्क सूर्य मंदिर के...Editor

देव या देवार्क सूर्य मंदिर के नाम से प्रसिद्ध यह भगवान भास्कर का यह मंदिर अति प्राचीन व आकर्षक है। यह बिहार के औरंगाबाद जिले से तकरीबन 30 कीलोमीटर की दूरी पर पर स्थित है। यह सूर्य मंदिर अन्य सूर्य मंदिरों की तरह पूर्वोन्मुखी न होकर पश्चिमोन्मुखी है। तमाम हिन्दू मंदिरों के विपरीत पश्चिमोन्मुखी देव सूर्य मंदिर श्रद्धालुओं के लिए सबसे ज्यादा फलदायी एवं मनोकामना पूर्ण करने वाला है।

देवार्क अपनी अनूठी शिल्पकला के लिए भी जाना जाता है

देवार्क मंदिर अपनी अनूठी शिल्पकला के लिए भी जाना जाता है। पत्थरों को तराश कर बनाए गए इस मंदिर की नक्काशी उत्कृष्ट शिल्प कला का नमूना है। इतिहासकार इस मंदिर के निर्माण का काल छठी-आठवीं सदी के मध्य होने का अनुमान लगाते हैं। जबकि अलग-अलग पौराणिक विवरणों पर आधारित मान्यताएं और जनश्रुतियां इसे त्रेता-युगीन अथवा द्वापर युग के मध्यकाल में निर्मित बताती हैं। देवार्क को तीन प्रमुख सूर्य मंदिरों में से एक माना जाता है, अन्य दो लोलार्क (वाराणसी) और कोणार्क हैं। छठ पर्व के अवसर पर उमड़ती है श्रद्धालुओं की भारी भीड़ मंदिर में सामान्य रूप से वर्ष भर श्रद्धालु पूजा हेतु आते रहते हैं।

हालांकि, यहां बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में विशेष तौर पर मनाये जाने वाले छठ पर्व के अवसर पर भारी भीड़ उमड़ती है। यहाँ लगभग प्रत्येक दिन श्रद्धालु के भीड़ का जमावड़ा लगा होता है पर खास कर रविवार को यहाँ दूर दूर से हवन और पूजन करने हेतु श्रद्धालु आते रहते हैं।

मंदिर से कोई भी याचक आजतक खाली हाथ नहीं लौटा

मान्यता है की आज तक इस मंदिर से कोई भी याचक खाली हाथ नहीं लौटा और अपने मनोवांछित फल की प्राप्ति करने के तत्पश्चात वो यहाँ की कार्तिक या चैत्र के छठ पूजा में सूर्य देव को अर्घ भी समर्पण करते हैं। प्राथमिक देव के बारे में एक अन्य लोककथा भी है।

एक बार भगवान शिव के भक्त माली व सोमाली सूर्यलोक जा रहे थे। यह बात सूर्य को रास नहीं आयी। उन्होंने दोनों शिवभक्तों को जलाना शुरू कर दिया। अपनी अवस्था खराब होते देख माली व सोमाली ने भगवान शिव से बचाने की अपील की। फिर शिव ने सूर्य को मार गिराया।

सूर्य तीन टुकड़ों में पृथ्वी पर गिरे। कहते हैं कि जहां-जहां सूर्य के टुकड़े गिरे, उन्हें देवार्क देव, बिहार के पास, लोलार्क सूर्य मंदिर काशी के पास और कोणार्क सूर्य मंदिर कोणार्क के पास के नाम से जाना जाता था। यहां तीन सूर्य मंदिर बने। देव का सूर्य मंदिर उन्हीं में से एक है।

राजा ऐल को कुष्ठ रोग से मिला था मुक्ति

मान्यता है कि सतयुग में इक्ष्वाकु के पुत्र व अयोध्या के निर्वासित राजा ऐल एक बार देवारण्य (देव इलाके के जंगलों में) में शिकार खेलने गए थे। वे कुष्ठ रोग से पीड़ित थे। शिकार खेलने पहुंचे राजा ने जब यहां के एक पुराने पोखर के जल से प्यास बुझायी और स्नान किया, तो उनका कुष्ठ रोग ठीक हो गया। वे इस चमत्कार पर हैरान थे।

बाद में उन्होंने स्वप्न देखा कि त्रिदेव रूप आदित्य उसी पुराने पोखरे में हैं, जिसके पानी से उनका कुष्ठ रोग ठीक हुआ था। इसके बाद राजा ऐल ने देव में एक सूर्य मंदिर का निर्माण कराया। उसी पोखर में उन्हें ब्रह्मा, विष्णु व शिव की मूर्तियां मिलीं, जिन्हें राजा ने मंदिर में स्थान देते हुए त्रिदेव स्वरूप आदित्य भगवान को स्थापित कर दिया। इसके बाद वहां भगवान सूर्य की पूजा शुरू हो गयी, जो कालांतर में छठ के रूप में विस्तार पाया।

मंदिर का निर्माण

प्रचलित मान्यता के अनुसार इसका निर्माण स्वयं भगवान विश्वकर्माने सिर्फ एक रात में किया है। इस मंदिर के बाहर पाली लिपि में लिखित अभिलेख मिलने से पुरातत्वविद इस मंदिर का निर्माण काल आठवीं-नौवीं सदी के बीच का मानते हैं। मंदिर के प्रवेश द्वार पर लगे शिलालेख से ज्ञात होता है कि इसकी शिल्प कला नागर शैली, द्रविड़ शैली, वेसर शैली का मिश्रित प्रभाव वाली है। शिल्प कला से स्पष्ट होता है कि यह छठी-आठवीं सदी के बीच के बीच हुआ है।

द्रविड़ शैली का मिश्रित समन्वय है यह मंदिर की पहचान

कहा जाता है कि सूर्य मंदिर के पत्थरों में विजय चिन्ह व कलश अंकित हैं। विजय चिन्ह यह दर्शाता है कि शिल्प के कलाकार ने सूर्य मंदिर का निर्माण कर के ही शिल्प कला पर विजय प्राप्त की थी। मंदिर के स्थापत्य से प्रतीत होता है कि मंदिर के निर्माण में उड़िया स्वरूप नागर शैली का समायोजन किया गया है। नक्काशीदार पत्थरों को देखकर भारतीय पुरातत्व विभाग के लोग मंदिर के निर्माण में नागर शैली एवं द्रविड़ शैली का मिश्रित प्रभाव वाली वेसर शैली का भी समन्वय बताते है।

दुर्लभ हैं एसी प्रतिमांए

मंदिर के प्रांगण में सात रथों से सूर्य की उत्कीर्ण प्रस्तर मूर्तियां अपने तीनों रूपों उदयाचल, मध्यांचल तथा अस्ताचल के रूप में विद्यमान हैं। इसके साथ ही वहाँ अद्भुत शिल्प कला वाली दर्जनों प्रतिमाएं हैं। मंदिर में शिव के जांघ पर बैठी पार्वती की प्रतिमा है। सभी मंदिरों में शिवलिंग की पूजा की जाती है। इसलिए शिव पार्वती की यह दुर्लभ प्रतिमा श्रद्धालुओं को खासी आकर्षित करती है।

कोणार्क सूर्य मंदिर से मिलता है मंदिर का शिल्प

मंदिर का शिल्प उड़ीसा के कोणार्क सूर्य मंदिर से मिलता है। देव सूर्य मंदिर दो भागों में बना है। पहला गर्भगृह जिसके ऊपर कमल के आकार का शिखर है और शिखर के ऊपर सोने का कलश है। दूसरा भाग मुखमंडप है जिसके ऊपर पिरामिडनुमा छत और छत को सहारा देने के लिए नक्काशीदार पत्थरों का बना स्तम्भ है।

हर वर्ष मनाया जाता है देव सूर्य महोत्सव

देव सूर्य महोत्सव के नाम से विश्व प्रख्यात सूर्य जन्मोत्सव 1998 से लागातार प्रशासनिक स्तर पर दो दिवसीय देव सूर्य महोत्सव आयोजन किया जाता है जिसमें हर वर्ष सूर्य देव की जन्म के अवसर पर मनाया जाता है। यह बसंत पंचमी के दूसरे दिन मतलब सप्तमी को पूरे शहर वासी नमक को त्याग कर बड़े ही धूम धाम से मानते हैं।

इस दिन के अवसर पर कई तरह की कार्यक्रम भी भी कराया जाता है। बसंत सप्तमी के दिन में देव के कुंड मतलब ब्रह्मकुंड में भव्य गंगा आरती भी होती है। जिसे देखने देश के कोने कोने से आते है। इसी दिन देव शहर वर्ष की पहली दिवाली मानती है। रात्रि में बॉलीवुड तथा भोजपुरी फिल्मों के कलाकारों को आमंत्रित किया जाता है।

रख-रखाव के लिए देव सूर्य मंदिर न्यास समिति

इस मंदिर के देखभाल का दायित्व देव सूर्य मंदिर न्यास समिति का है। देव सूर्य मंदिर न्यास समिति के अध्यक्ष सुरेंद्र प्रसाद है। देव छठ मेला 2018 से तीन माह पूर्व डीएम राहुल रंजन महिवाल व एसपी डॉ. सत्य प्रकाश ने देव सूर्य मंदिर न्यास समिति के सौजन्य से एप बनवाई। ताकि देव छठ मेला में देशभर से आनेवाले छठ व्रती व श्रद्धालुओं को बेहतर सुविधा दी जा सके।

औरंगाबाद जिले का नाम बदलकर देव करने की मांग

देव सूर्य मंदिर ने औरंगाबाद जिले को पूरे देश में एक अलग पहचान दी है। इसिलिए औरंगाबाद जिले का नाम बदलकर देव करने की मांग समय-समय पर की जाती रही है। इसके लिए औरंगाबाद जिले से वकील सिद्धेश्वर विद्यार्थी ने कई वर्षों से समिति बनाकर जिले के सांसद व देव के विधायक के समक्ष इस मुद्दे को उठाया है।

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