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देश के पहले गणतंत्र में छवि की लड़ाई, यहां है मोदी VS रघुवंश

देश के पहले गणतंत्र में छवि की लड़ाई, यहां है मोदी VS रघुवंश

एक तरफ राजद से पूर्व केंद्रीय...Editor

एक तरफ राजद से पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह हैं, जिन्होंने पार्टी से भी परे अपनी अलग छवि बनाई, और दूसरी ओर संसद के लिए पहली बार प्रत्याशी बनीं लोजपा की वीणा सिंह, जो व्यक्तिगत स्तर पर तो लड़ाई से बाहर हैं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को हथियार बनाकर मैदान में हैं। यानी एक तरफ व्यक्तिगत संपर्क, साफ-ईमानदार छवि और दूसरी ओर नरेंद्र मोदी का प्रदर्शन और उन्हें फिर से प्रधानमंत्री बनाने की अपील। वस्तुत: वैशाली ऐसी कुछ सीटों में शुमार माना जा सकता है जहां राजग का विरोधी उम्मीदवार अपनी पार्टी से परे व्यक्तिगत तौर पर चुनौती दे रहा है।

ऐसा नहीं है कि वैशाली में जातिगत समीकरण का अर्थ नहीं है। पिछली बार से अलग जब मैदान में कई दावेदार थे और वोटों का बंटवारा हुआ था, इस बार राजग और गठबंधन की सीधी लड़ाई में वोटरों का बड़ा हिस्सा तो साफ साफ बंटा है और माना जा रहा है कि भूमिहार जिधर बड़ी संख्या में घूमेंगे, बाजी उसकी होगी।

बिहार का इतिहास कुछ ऐसा रहा है कि भूमिहार मुख्यत: भाजपा के वोटर माने जाते हैं। लेकिन वैशाली में दो राजपूतों की लड़ाई में भूमिहार के रुख को लेकर अटकलें लग रही हैं। माना तो यह भी जा रहा है कि रघुवंश के समर्थको की कोशिश है कि बड़े स्थापित भूमिहार नेता का रोड शो भी करवाया जाए।

रघुवंश के समर्थकों का यह भी मानना है कि भूमिहार का बड़ा वोट उस राजपूत के साथ जाएगा जो स्वभाव से नरम हो। वीणा सिंह के पति दिनेश सिंह की छवि रघुवंश से बिल्कुल विपरीत है। पर एक बड़ी बात है, दिनेश सिंह अच्छे मैनेजर हैं। बल्कि रघुवंश के लिए कभी वही चुनावी प्रबंधन देखते थे।

उनकी पत्नी वीणा सिंह पहले भाजपा से ही विधायक थीं। और सबसे बड़ी बात है प्रधानमंत्री के नाम पर चुनाव। यही कारण है कि मंगलवार को लोजपा के स्टार प्रचारक चिराग पासवान वीणा सिंह के लिए वोट मांगने आते हैं तो वहां भी प्रधानमंत्री ही मुद्दा होते हैं। खलिहान से लेकर सीमा तक के 'चौकीदार' की बात होती है।

रघुवंश का मुकाबला 'मोदी' से

72 के हो चुके और संभवत: अपना आखिरी चुनाव लड़ रहे रघुवंश के लिए व्यक्तिगत तौर पर निपटना तो मुश्किल नहीं होता लेकिन मोदी की छवि से लड़ने में मशक्कत करनी पड़ रही है। और इसी कारण लगातार यह कोशिश हो रही है कि भाषणों में मोदी के नाम का उल्लेख न कर वीणा सिंह को कठघरे में खड़ा किया जाए।

कांटी विधानसभा में रघुवंश की एक रैली में गठबंधन के सभी दलों के प्रतिनिधि इकट्ठे हुए हैं। भाजपा छोड़कर कांग्रेस में आए शत्रुघ्न सिन्हा भी आने वाले हैं। उससे पहले हर वक्ता केवल रघुवंश और वीणा सिंह की तुलना करता है और बैठ जाता है।

दरअसल रघुवंश को आशा है कि पिछली बार का जनता का अनुभव इस बार उनके काम आएगा। पिछली बार मोदी लहर में लोजपा के एक बाहुबली सदस्य रामा सिंह ने रघुवंश को हरा दिया था। तब से लेकर अब तक रघुवंश तो क्षेत्र में नजर आए लेकिन रामा सिंह गायब रहे। इस बार फिर से एक ताकतवर विरोधी का सामना करना पड़ रहा है।

रघुवंश के लिए एक और चुनौती उनकी अपनी पार्टी राजद ने ही खड़ी कर दी है- गरीब अगड़ों के लिए आरक्षण का विरोध करके। हालांकि, रघुवंश कह चुके हैं कि राजद की यह विचारधारा नहीं रही है, लेकिन जिस तरह तीखी लड़ाई हो रही है उसमें युवाओं को समझाना रघुवंश के लिए आसान नहीं है। फिलहाल, एक तरफ उनकी व्यक्तिगत छवि है तो दूसरी ओर प्रधानमंत्री का प्रदर्शन।

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