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मधु कोड़ा अर्श से फर्श तक, कैसे एक निर्दलीय विधायक बन बैठा था मुख्यमंत्री

मधु कोड़ा अर्श से फर्श तक, कैसे एक निर्दलीय विधायक बन बैठा था मुख्यमंत्री

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री...Editor

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा को सीबीआई की स्पेशल अदालत ने चर्चित कोयला घोटाले में दोषी करार दे दिया है, ‌जल्द ही उनकी सजा पर भी फैसला हो जाएगा। एक आदिवासी मजदूर के बेटे मधु कोड़ा का राजनीति में आने और शिखर तक पहुंचने का सफर ऐसी सपनीली दुनिया से होकर गुजरता है जिस पर पहली नजर में यकीन नहीं हो पाता।


कोड़ा के जीवन में सबकुछ अत्प्रत्‍यशित रहा, एक मजदूर से विधायक बनना, पहली बार में ही मंत्री और फिर मात्र 35 साल की उम्र में मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालना। देश में पहली बार निर्दलीय विधायक से मुख्यमंत्री और फिर से जेल की सलाखों तक पहुंचना, सभी कुछ कोड़ा के लिए ऐसा रहा जो उन्होंने शायद ही कभी सोचा हो।

कोडा के पिता उन्हें पुलिस में दरोगा बनते देखना चाहते थे लेकिन शायद वो उनकी मंजिलें नहीं थी, वह बेइंतहा पैसे कमाना चाहते थे, जिसका सपना उन्होंने कोयले की खदानों में काम करते हुए देखा था। आइए डालते हैं कोड़ा के सफर पर एक निगाह, कैसे एक निर्दलीय विधायक देश में पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचा।
पैसा कमाने के लिए रखा राजनीति में कदम

अविभाजित बिहार (झारखंड) के पश्चिम सिंहभूम जिले के रहने वाले मुध कोडा का बचपन घोर गरीबी में बीता, उनके पिता रसिका कोडा एक आदिवासी किसान थे। परिवार को चलाने के लिए रसिका कोड़ा ने कुछ दिन कोयले की खादानों में भी काम लिया।

इस बीच मधु कोड़ा का बचपन गांव में ही बीता और वहीं शुरूआती पढ़ाई की। कोड़ा के पिता चाहते थे कि उनका बेटा कोयला मजदूर के तौर पर एक सामान्य जीवन जीए, लेकिन कोड़ा को यह मंजूर नहीं था। हालांकि जब मधु ने ग्रेजुएशन पूरी की तो पिता की उम्‍मीदें परवान लेने लगी और उन्होंने बेटे को एक पुलिसवाला बनने के लिए प्रेरित किया।

मधु कोड़ा जल्द से जल्द एक अमीर आदमी बनना चाहते थे, उन्होंने कुछ दिन कोयला खदानों और इस्पात इंडस्ट्री में काम करने के दौरान यहां मौजूद भ्रष्टाचार और अकूत दौलत को काफी नजदीक से देखा। इसलिए उन्होंने राजनीति में कदम रखने का फैसला किया।

कम उम्र में ही आल झारखंड स्टूडेंट यूनियन के आंदोलन से जुड़े, जिसके चलते झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी की नजरों में वह चढ़ गए। मरांडी की पैरवी पर उन्‍हें जगन्नाथपुर सीट से भाजपा का टिकट दिया गया और वह विधायक चुन लिए गए।

15 नवंबर 2000 को झारखंड राज्य की स्‍थापना के बाद बाबूलाल मरांडी ने पहले मुख्यमंत्री के रूप में कमान संभाली तो नजदीकियों के चलते मधु कोडा को राज्यमंत्री बनाया गया। हालात बदले तो साल 2003 में मरांडी को सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी और अर्जुन मुंडा को राज्य की कमान मिली। लेकिन मधु कोड़ा के सितारे यहां भी चमकते रहे और नई सरकार में उन्हें पंचायतीराज मंत्री बना दिया गया।
छह दलों के समर्थन से बने मुख्यमंत्री

इसके बाद मधु कोड़ा की किस्मत का राजनीतिक सितारा तेजी से ऊपर नीचे होता रहा। उन्हें पहला झटका उस समय लगा जब भाजपा ने साल 2005 के विधानसभा चुनाव में उन्हें टिकट देने से इंकार कर दिया। इस पर कोड़ा ने पार्टी से बगावत कर दी और निर्दलीय ही मैदान में उतर आए।

उस समय उनकी लोक‌प्रियता का ग्राफ चरम पर था सो निर्दलीय होने के बाद भी वह कांग्रेस प्रत्याशी को दस हजार वोटों से मात देने में सफल रहे। इन चुनावों के साथ ही झारखंड में राजनीतिक उठक पटक का दौर भी शुरू हुआ। राज्य में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला और 13 दिन मुख्यमंत्री रहने के बाद झामुमो मुखिया शिबु सोरेन ने पद से इस्तीफा दे दिया।

जिसके बाद कोड़ा ने तीन अन्य निर्दलीय विधायक के साथ मिलकर भाजपा को समर्थन दिया, इसके चलते अर्जुन मुंडा जैसे तैसे अपनी सरकार बनाने में सफल रहे। हालांकि यहीं से कोड़ा की महत्वाकांक्षाएं जोर लेने लगी और उन्होंने मुंडा से समर्थन वापिस ले लिया।

राज्य में एक बार फिर राजनीतिक संकट खड़ा हो गया। झामुमो सुप्रीमो शिबु सोरेन दोबारा मुख्यमंत्री बनना चाहते थे लेकिन सोनिया गांधी इसके समर्थन में नही थी। ऐसे में लालू यादव ने बड़ा दांव चलते हुए मुख्यमंत्री के लिए निर्दलीय विधायक के तौर पर मधु कोड़ा का नाम सुझाया, जिससे कोई झगड़ा न हो।

इस पर सहमति बन गई और मधु कोड़ा ने मात्र 35 साल की उम्र में इतिहास रचते हुए छह दलों के समर्थन से सितंबर 2006 को मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली। उस दौरान कांग्रेस, झारखंड मु‌क्ति मोर्चा, राष्ट्रीय जनता दल, जअुआ मांझी ग्रुप, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, आल इंडिया फारवर्ड ब्लॉक और तीन अन्य निर्दलीय विधायकों ने उन्हें समर्थन दिया।
पांच हजार करोड़ के कोयला घोटाले में फंसे मधु कोड़ा

हालांकि राजनीति की यह उठापटक झारखंड में जारी रही और शिबु सोरेन ने खुद मुख्यमंत्री बनने के लिए इस गठबंधन सरकार से समर्थन वापिस ले लिया। सोरेन की जिद के आगे यूपीए के बाकी दलों को भी झुकना पड़ा और 27 अगस्त 2008 को सोरेन ने दोबारा मुख्यमंत्री के रूप में राज्य की कमान संभाली।

हालांकि साल 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में कोड़ा ने सिंहभूम जिले से निर्दलीय के तौर पर लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत दर्ज कर संसद पहुंचे। हालांकि इसके बाद उनके दुर्दिन शुरू हो गए। साल 2009 में ही सीबीआई ने तीन अन्य आरोपियों के साथ उन्हें भी कोयला घोटाले में नामजद कर दिया।

कोड़ा पर आरोप था कि उन्होंने राज्य के मुख्य सचिव अशोक कुमार बसु और एक अन्य के साथ मिलकर कोलकाता की विनी आयरन एंड स्टील उद्योग लिमिटिड (VISUL) को कोल ब्लॉक देने का षडयंत्र रचा। इसी मामले में राज्य पुलिस की जांच शाखा ने 30 नवंबर 2009 को कोड़ा को गिरफ्तार कर लिया, 31 जुलाई 2013 को वो जमानत पर बाहर आए।

कोड़ा पर आरोप है कि उन्होंने अवैध कोल ब्लॉक आवंटन में 5 हजार करोड़ का घोटाला किया। साल 2013 में ईडी ने कोड़ा की 144 करोड़ की संपत्ति को अटैच कर लिया। बीते विधानसभा चुनावों में कोड़ा ने अपनी जगह अपनी पत्नी गीता को चुनाव लड़वाया जो विधायक चुनी गई। हालांकि वह खुद मझगांव सीट से चुनाव हार गए।

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