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राफेल डील को लेकर फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे प्रशांत भूषण

राफेल डील को लेकर फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे प्रशांत भूषण

राफेल डील मामले में पूर्व...Editor

राफेल डील मामले में पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिंह, प्रशांत भूषण और अरुण शौरी ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की है. याचिका में फैसले पर फिर से विचार करने और ओपन कोर्ट में सुनवाई की मांग की गई है. याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को राफेल को लेकर गलत जानकारी दी है. दरअसल, इससे पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर कर फैसले की पंक्तियों में बदलाव की मांग की थी. केंद्र सरकार ने अपनी अर्जी में कहा था कि हमने तो प्रकिया की जानकारी दी थी कि CAG की रिपोर्ट PAC जांच करती है. उसके बाद रिपोर्ट संसद में रखी जायेगी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में लिखा है कि CAG की रिपोर्ट PAC देख चुकी है, रिपोर्ट संसद में रखी जा चुकी है.

याचिका में फैसले की समीक्षा के साथ साथ ओपन कोर्ट में सुनवाई की मांग की गई है ताकि याचिकाकर्ताओं को केस से जुड़े तथ्यों पर फिर से जिरह का मौका मिल सके. फैसले का आधार सरकार की ओर से सीलबंद कमर में सुप्रीम कोर्ट को दी गई ग़लत जानकारी पर आधारित है. ये वो जानकारी है, जिनको कभी भी याचिकाकर्ताओं से साझा नहीं किया गया और ना ही उन बिंदुओं पर याचिकाकर्ताओं को कोर्ट में जिरह करने का मौका दिया गया.

कोर्ट ने अपने फैसले में याचिकाकर्ताओं की मुख्य मांग पर गौर ही नहीं किया. याचिकाकर्ताओ की मांग थी कि सीबीआई को निर्देश दे कि वो उनकी ओर से दायर शिकायत पर तुंरत एफआईआर दर्ज़ कर जांच का आदेश दे. कोर्ट द्वारा ख़ुद डील की न्यायिक समीक्षा करना और सीबीआई को जांच का आदेश देना दोनों अलग अलग बाते है. इस मामले में कोर्ट ने बिना सीबीआई या किसी जांच एजेंसी को जांच के लिए कहने की बजाए, ख़ुद डील को रिव्यु करने की ग़लती की.यहाँ तक कि कोर्ट ने सीबीआई से उनकी ओर से दायर शिकायत पर हुई जांच का स्टेटस तक नहीं पूछा.

आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने राफेल डील मामले में फैसला देते हुए केंद्र सरकार को क्लीन चिट दी थी. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि राफेल डील प्रक्रिया में कोई खामी नहीं हुई. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने अपने फैसले में कहा था कि हमने इस मामले में तीन बिंदु- डीले लेने की प्रकिया, कीमत और ऑफसेट पार्टनर चुनने की प्रकिया पर विचार किया और पाया कि कीमत की समीक्षा करना कोर्ट का काम नहीं जबकि एयरक्राफ्ट की ज़रूरत को लेकर कोई संदेह नहीं है.

आपको बता दें कि राफेल मामले में दो वकील एमएल शर्मा और विनीत ढांडा के अलावा एक गैर सरकारी संस्था ने जनहित याचिकाएं दाखिल कर सौदे पर सवाल उठाते हुए इसे रद्द करने की मांग की थी. इससे पहले सुनवाई के दौरान सीजेआइ द्वारा तलब करने पर वायुसेना के अधिकारी भी कोर्ट पहुंचे थे. एयर वाइस मार्शल चलपति कोर्ट नंबर एक में मौजूद हैं और सीजेआई रंजन गोगोई के सवालों का जवाब देते हुए बताया था कि आखिर राफेल की जरूरत क्यों है? केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि फ्रांस की सरकार ने 36 विमानों की कोई गारंटी नहीं दी है लेकिन प्रधानमंत्री ने लेटर ऑफ कम्फर्ट जरूर दिया है.

इन आरोपों के बीच केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अनुपालन करते हुए राफेल लड़ाकू विमान खरीदने की कीमत का ब्योरा सीलबंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को सौंपा था.सरकार ने 14 पन्नों के हलफनामे में कहा था कि राफेल विमान खरीद में रक्षा खरीद प्रक्रिया-2013 केतहतनिर्धारित प्रक्रिया का पूरी तरह पालन किया गया. इस हलफनामे का शीर्षक '36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने का आदेश देने के लिए निर्णय लेने की प्रक्रिया में उठाए गए कदमों का विवरण' है. एनडीए सरकार पर राफेल सौदे को लेकर विपक्षियों ने आरोप लगाया है कि हर विमान को करीब 1,670 करोड़ रुपये में खरीद रही है, जबकि यूपीए सरकार जब 126 राफेल विमानों की खरीद के लिए बातचीत कर रही थी तो उसने इसे 526 करोड़ रुपये में अंतिम रूप दिया था.सुप्रीम कोर्ट में दो वकीलों एमएल शर्मा और विनीत ढांडा के अलावा एक गैर सरकारी संस्था ने जनहित याचिकाएं दाखिल कर सौदे पर सवाल उठाए हैं.

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने गत 31 अक्टूबर को सरकार को सील बंद लिफाफे में राफेल की कीमत और उससे मिले फायदे का ब्योरा देने का निर्देश दिया था.साथ ही कहा था कि सौदे की निर्णय प्रक्रिया व इंडियन आफसेट पार्टनर चुनने की जितनी प्रक्रिया सार्वजनिक की जा सकती हो उसकाब्योरायाचिकाकर्ताओं को दे. सरकार ने आदेश का अनुपालन करते हुए ब्योरा दे दिया है.सरकार ने सौदे की निर्णय प्रक्रिया का जो ब्योरा पक्षकारों को दिया है जिसमें कहा गया था कि राफेल में रक्षा खरीद सौदे की तय प्रक्रिया का पालन किया गया है. 36 राफेल विमानों को खरीदने का सौदा करने से पहले डिफेंस एक्यूजिशन काउंसिल (डीएसी) की मंजूरी ली गई थी.इतना ही नहीं करार से पहले फ्रांस के साथ सौदेबाजी के लिए इंडियन नेगोसिएशन टीम (आइएनटी) गठित की गई थी, जिसने करीब एक साल तक सौदे की बातचीत की और खरीद सौदे पर हस्ताक्षर से पहले कैबिनेट कमेटी आन सिक्योरिटी (सीसीए) व काम्पीटेंट फाइनेंशियल अथॉरिटी (सीएफए) की मंजूरी ली गई थी.

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