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यहां बच्चों को नहीं कुत्तों को नसीब होता है थाली में मिड-डे मील

यहां बच्चों को नहीं कुत्तों को नसीब होता है थाली में मिड-डे मील

सवाई माधोपुर. सरकारी स्कूलों...Public Khabar

सवाई माधोपुर. सरकारी स्कूलों की मिड -डे मील योजना कितनी सफल रही है, इसकी बानगी आए दिन मिलने वाली खबरें देती हैं।

सरकार द्वारा स्कूलों में चलाई जा रही मिड डे मील योजना पर पहले भी सवाल खड़े होते रहे हैं लेकिन इस व्यवस्था को दुरुस्त करने की कोशिश अब तक नहीं की गई है।

ताजा मामला राजस्थान के सवाई माधोपुर का है। यहां गांव में स्कूलों का हाल ये है कि देखकर भी रोना आता है। स्थिति ये है कि कोई इसकी सूध लेने वाला नहीं है। शासन-प्रशासन सब कान में रुई डालकर बैठे हैं। हद तो तब हो गई जब यहां के शिक्षा मंत्री मिड डे मील की अव्यवस्था को नजरअंदाज करके इतिहास की बहस में भिड़ गए।

इससे साफ होता है कि प्रदेश सरकार नौनिहालों का भविष्य और उनकी सेहत को लेकर गंभीर नहीं है। यहां के स्कूलों में मिलने वाले मिड डे मील को कुत्ते खा रहे हैं। इससे इतर स्कूलों में बाउंड्री नहीं है, जिससे आवारा कुत्ते स्कूलों में दाखिल होकर खाना खा रहे हैं। यह मामला सवाई माधोपुर के खाट कलां सरकारी स्कूल का है। इस स्कूल में चारो तरफ नाम मात्र की बाउन्ड्री है जिस कारण कुत्ते बेरोक-टोक स्कूल में घुस जाते हैं।

हालांकि, स्कूल में पढ़ाई के समय तो ये कुत्ते किसी को परेशान नहीं करते हैं लेकिन जब दोपहर में खाने का समय होता है और बच्चों को मिड डे मील दिया जाता है, उस समय ये आवारा कुत्ते इन बच्चों का निवाला छीन ले जाते हैं।

इस स्कूल में पढ़ने वाले छोटे-छोटे बच्चे आवारा कुत्तों से अपना खाना बचा पाने में सक्षम नही हैं और अगर वो प्रयास भी करते हैं तो ये खतरनाक कुत्ते काटने को दौड़ते हैं। लिहाजा, बच्चे बिना खाना खाए ही पढ़ने को मजबूर हैं।

स्कूल के हेडमास्टर मन्नू लाल की माने तो इस स्कूल में बाउन्ड्री बनाने के लिए 10 लाख की जरूरत होगी जिसके लिए शिक्षा विभाग को पत्र लिखा है लेकिन अब तक इस बात की कोई सुनवाई नहीं हुर्इ है। गांववालों से इस स्कूल के लिए दान देने के लिए कहा है जिसके लिए गांववालों अपनी सहमति दे दी हैं। अब तक काम शुरू नही हो सका है।

उन्होंने बताया कि बच्चों को जिन बर्तनों में खाना दिया जाता है, कुत्ते उसे भी जूठा कर देते हैं। जिस वजह से संक्रमण फैलने का डर रहता है। उन्होंने कहा कि ये बच्चे ही बर्तन धोते हैं, ताकि दूसरे दिन इसका इस्तेमाल कर सकें।

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