Home > राजनीति > हिंद महासागर में चीन के सात युद्धपोत

हिंद महासागर में चीन के सात युद्धपोत

हिंद महासागर पर चीन की काफी...Editor

हिंद महासागर पर चीन की काफी समय से नजर रही है। इसकी वजह भी बेहद साफ है चीन यहां पर अपनी पैंठ बनाकर भारतीय नौसेना पर नजदीक से नजर रखने का है। यही वजह है कि वह भारत के पड़ोसी देश जिसमें पाकिस्‍तान, बांग्‍लादेश, म्‍यांमार, श्रीलंका और मालदीव का नाम शामिल है, उन्‍हें कर्ज के जाल में फंसाने में लगा है। भारत चीन की इस चाल से बखूबी वाकिफ है। हिंद महासागर में छह से सात चीनी युद्धपोत हैं। इसके वावजूद चीन के मुकाबले भारत इस क्षेत्र में आज भी ज्‍यादा मजबूत है। जल्‍द ही भारत को तीसरा विमानवाहक युद्धपोत भी मिल सकता है। वर्तमान में पूरी दुनिया का ध्यान हिंद महासागर पर केंद्रित है। भारतीय नौसेना को इस क्षेत्र में प्रमुख सुरक्षा प्रदाता के तौर पर देखा जा रहा है। इसको देखते हुए नौसेना अपनी क्षमता में लगातार इजाफा कर रही है।

सुपर पावर बनेगी भारतीय नौसेना

एडमिरल सुनील लांबा के मुताबिक वर्ष 2050 तक भारतीय नौसेना सुपर पावर बन जाएगी। इसके पास 200 जहाज और 500 एयरक्राफ्ट होंगे। उनके मुताबिक भविष्य के जहाज पूरी तरह से महिला अधिकारियों के रहने की व्यवस्था से लैस होंगे। यहां पर यह बताना जरूरी होगा कि आने वाले दस वर्षों में नौसेना में 56 नए युद्धपोतों और छह पनडुब्बियों को शामिल कर लिया जाएगा। इसके साथ ही भारतीय नौसेना की ताकत और बढ़ जाएगा। चीन के अलावा पाकिस्‍तान की यदि बात की जाए तो हम पहले भी उससे कहीं आगे थे और आज भी हम तुलना में कहीं आगे हैं। यहां पर ये भी जान लेना जरूरी है कि देश की पहली परमाणु पनडुब्बी आइएनएस अरिहंत की पेट्रोलिंग पूरी होने से देश की रक्षा प्रणाली और मजबूत हुई है। गहरे समुद्र में अपनी ताकत बढ़ाने के लिए भी भारत सबमरीन के जरिए अपनी ताकत बढ़ाने में लगा है। स्कॉर्पिन क्लास की पनडुब्बियों का ट्रायल इसका ही एक उदाहरण है।

नौसेना की बढ़ेगी ताकत

इन सभी के बीच भारतीय नौसेना के हेलीकॉप्टर बेड़े की कमी पूरी करने के लिए लाइट यूटिलिटी हेलीकॉप्टर की खरीद और 25 मल्टी रोल हेलीकॉप्टर की खरीद का रास्ता भी साफ कर लिया गया है। जहां तक भारतीय नौसेना की बात है तो वह देश की समुद्री सीमाओं की रक्षा के अलावा समुद्री लुटेरों की कोशिशों को भी नाकाम करती आई है। बीते वर्षो में समुद्री लु‍टेरों की 44 कोशिशों को नाकाम किया गया है। इस दौरान 120 लुटेरे पकड़े गए। तटीय सुरक्षा बढ़ाने के प्रयासों के तहत मछली पकड़ने वाली तकरीबन ढाई लाख नावों पर स्वत: पहचान करने वाले ट्रांसपोर्डर लगाने की प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है।

चीन के कर्ज की चाल में फंसे हैं ये देश

भूटान

भूटान ने अपने पड़ोसी तिब्बत पर चीन का कब्जा होते देखा है, इसलिए वह डोकलाम मामले में शुरू से भारत के साथ है। बीजिंग किसी भी तरह भारत और भूटान की दोस्ती में खलल पैदा करना चाहता है, लेकिन फिलहाल उसकी कोई साजिश वहां कामयाब होते नहीं दिखती, क्योंकि भूटान भारत के साथ खड़ा है। चीन 1998 से लगातार भूटान के साथ किसी न किसी तरह का रिश्ता जोड़ने की कोशिशें कर रहा है। लेकिन बीते 19 साल में भूटान को लुभाने की उसकी हर कोशिश नाकाम रही।

श्रीलंका

इस देश के साथ भारत के संबंध साझे ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, जातीय एवं सभ्यता पर आधारित हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों में दोनों देशों के बीच रिश्तों में खटास आ गई है। कर्ज न चुका पाने के चलते 2017 में श्रीलंका ने अपना हंबनटोटा पोर्ट चीन को सौंप दिया था। इस बंदरगाह का एक बड़ा हिस्सा 99 वर्षों तक चीन को पट्टे पर दिया गया है। भारत से श्रीलंका हमेशा कर्ज लेता रहा है और जब भारत ने इस प्रोजेक्ट पर काम करने से इनकार कर दिया तब राजपक्षे ने चीन के लिए हां कहा। 2005 से 2015 तक उनके कार्यकाल में चीनी कर्ज बेशुमार बढ़ा। 2005 में चीन का वार्षिक विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआइ) 10 लाख डॉलर से कम था, लेकिन 2014 में यह आंकड़ा 40 करोड़ डॉलर से अधिक हो गया था। श्रीलंका पर कुल 55 अरब डॉलर के विदेशी कर्ज में चीन का 10 फीसद है। श्रीलंका का यह अनुपात पड़ोसी देश भारत, पाकिस्तान, मलेशिया और थाईलैंड से ज्यादा है। इन सबके बीच अब वहां के नागरिकों को लगने लगा है कि देश को चीन के हाथों में बेचा जा रहा है। लिहाजा वहां की सरकार ने भारत को अपने यहां निर्माण कार्यों के लिए आमंत्रित किया है।मालदीव

यहां अब्दुल्ला यामीन की सरकार आने के बाद से भारत की स्थिति काफी कमजोर हो गई थी। इसी साल फरवरी में राष्ट्रपति यामीन ने मालदीव में आपातकाल लगा विपक्षी नेताओं और जजों को गिरफ्तार कर लिया था तो भारत ने आपातकाल का विरोध किया था। तब से मालदीव चीन और पाकिस्तान के करीब चला गया था। मालदीव को यामीन सरकार ने चीन के कर्ज के मकड़जाल में उलझा दिया है। बीजिंग ने यहां आधारभूत संरचना परियोजनाओं में बड़े निवेश किए हैं। उसने मालदीव हवाई अड्डे को अपग्रेड करने के लिए 830 मिलियन डॉलर निवेश किए हैं। साथ ही वह 25 मंजिला अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स और अस्पताल भी बना रहा है। लेकिन हाल ही में सोलिह के राष्ट्रपति बनने के बाद भारत के लिए अपने रिश्तों को सहेजने का नया मौका है। वहां की नवनिर्वाचित नेतृत्व ने भारत और अमेरिका से चीन के कर्ज से छुटकारा दिलाने के लिए आर्थिक मदद की मांग की है।

नेपाल

पिछले तीन साल में चीन का असर नेपाल में काफी बढ़ा है। चीन ने हाल ही में नेपाल को अपने चार बंदरगाहों के इस्तेमाल की अनुमति देने वाले करार पर हस्ताक्षर किया है। चीन और नेपाल के अधिकारियों ने काठमांडू में ट्रांजिट एंड ट्रांसपोर्ट एग्रीमेंट के प्रोटोकॉल के तहत इन चार बंदरगाहों के अलावा अपने तीन भूमि बंदरगाहों के इस्तेमाल की भी इजाजत दी। चीन इसके पहले जनवरी में चीनी फाइबर लिंक के जरिये 1.5 गीगाबाइट प्रति सेकंड की स्पीड वाली इंटरनेट सेवा मुहैया करा चुका है। हालांकि नेपाल के प्रधानमंत्री खड़ग प्रसाद (केपी) शर्मा ओली की हालिया भारत यात्रा ने दोनों अभिन्न मित्र देशों के बीच आपसी संबंधों की नई नींव रखी है। ओली ने इस बार प्रधानमंत्री बनने के बाद सबसे पहले भारत का रुख करके जो सद्भाव दिखाया उससे चीन बौखला गया। अपने चार साल के कार्यकाल में तीन बार नेपाल जाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी स्पष्ट संदेश दिया है कि भारत के लिए नेपाल नेबरहुड फस्र्ट पॉलिसी में सबसे पहले आता है। नेपाल की एक बड़ी आबादी भारत में नौकरियां या अन्य तरह के रोजगार से जुड़ी है। नेपाल और भारत के बीच आवाजाही के लिए वीजा की जरूरत नहीं पड़ती। भारतीय रुपया नेपाल में बेधड़क चलता है। नेपाल अपनी जरूरत का अधिकांश सामान भारत से लेता है। नेपाल में चीन के बढ़ते प्रभळ्त्व को रोकने के लिए और पड़ोसी धर्म निबाहने के लिए भारत ने नेपाल को दी जाने वाली सहायता राशि में पिछले साल की तुलना में 73 फीसद तक वृद्धि की है। भारत-नेपाल के बीच काठमांडू-रक्सौल रेल लिंक पर समझौता हुआ है। भारत इस परियोजना को और विस्तार देकर चीन के रेल लिंक को चुनौती देने की कोशिश में है।

पाकिस्तान

चीन पाकिस्तान को अपना सबसे अहम साझेदार मानता है। आंतक पोषित इस देश में चीन की कई महत्वपूर्ण परियोजनाएं चल रही हैं। लेकिन इनमें चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा सबसे अहम और बड़ी निवेश परियोजना है। जिसमें 62 अरब डॉलर से अधिक का निवेश होने का अनुमान है। सीपीईसी बलूचिस्तान के बीचोबीच है। लेकिन वहां के नागरिक इस परियोजना को सरकार और चीन की दमनकारी नीति मानते हैं। इसी का परिणाम है की बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी ने कराची स्थित चीनी वाणिज्य दूतावास में हमला किया था। यहीं नहीं पाकिस्तान चीन के भारी कर्ज से भी दबा हुआ है। पिछले पांच सालों में पाकिस्तान पर कर्ज 60 अरब डॉलर से बढ़कर 95 अरब डॉलर हो गया है। बढ़ते कर्ज से परेशान इस देश ने अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की ओर देखना शुरू किया, लेकिन वहां से भारत के साथ संबंधों की बहाली के दबाव ने उसे अपनी नीति में बदलाव के लिए विवश किया है।

Tags:    
Share it
Top