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जानिए महामस्तकाभिषेक पर्व का महत्व और गोम्मटेश्वर' के इर्द-गिर्द का कुंभ

जानिए महामस्तकाभिषेक पर्व का महत्व और गोम्मटेश्वर के इर्द-गिर्द का कुंभ

1036 साल पहले कर्नाटक में गंग...Editor

1036 साल पहले कर्नाटक में गंग राजवंश के कई शासकों के अधीन, सेनाध्यक्ष के पद पर रहे, चामुण्डराय ने एक ही शिला से यह विराट मूर्ति बनवाई थी। यह आयोजन, जैन परंपरा का भक्ति पर्व भी है।

इस बार महामस्तकाभिषेक पर्व, फरवरी 2018 में शुरू हो रहा है। बारह वर्ष बाद होने वाले इस पर्व का आयोजन, जैनाचार्य श्री वर्धमानसागर जी महाराज के सान्निध्य में हो रहा है। आयोजन के मार्गदर्शक भट्टारक श्री चारूकीर्ति स्वामी होंगे। जैन तीर्थों के इतिहास में श्रवणबेलगोला, करीब दो हजार बर्षों से शिक्षा, संस्कृति और सभ्यता का केंद्र रहा है।

'गोम्मटसार की रचना पूरी करने के बाद उनके स्वाध्याय और तत्व चिंतन से जैन आगम की 'क्षपणसार', 'लब्धिसार' और 'त्रिलोकसार' जैसी अमूल्य निधियां प्राप्त हुई हैं। आचार्य श्री वर्धमान सागर महाराज ने अपने संदेश में कहा है कि श्रवणबेलगोला श्रमणों की प्रिय भूमि ही है। यहां अंतिम श्रुतकेवली भद्रबाहु स्वामी को समाधि प्राप्त हुई। भगवान बाहुबली प्रथम मोक्षगामी हैं। भगवान बाहुबली की यह मूर्ति क्षुब्ध संसार को संदेश दे रही है कि परिग्रह और भौतिक पदार्थों की ममता ही पाप का मूल है। यदि तुम शांति चाहते हो, तो मेरे समान आत्मरत हो जाओ। यह मूर्ति त्याग, तपस्या और तितिक्षा का प्रतीक है।
भगवान बाहुबली की मूर्ति की सुंदरता अपने आप में अपूर्व है। प्रातःकाल के समय सूर्य की किरणें, जब प्रतिमा पर फैलती हैं, तो उस समय बाहुबली भगवान की प्रतिमा की शोभा अलौकिक होती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि मिस्र को छोड़कर, संसार में अन्य किसी स्‍थान पर इस तरह की विशाल मूर्ति नहीं बनाई गई। श्रवणबेलगोला के योगेश्वर बाहुबली की सौम्य आकृति का ऐश्वर्य और निर्दोष स्मृति अपने अद्भुत और अनुपम रूप की घोषणा करती है। भारतीय मूर्तिकला में भगवान बाहुबली अत्याधिक लोकप्रिय तथा आकर्षण के केन्द्र रहे हैं।

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