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इस वजह से मकर संक्रांति को बनाते हैं खिचड़ी और तिल के पकवान

इस वजह से मकर संक्रांति को बनाते हैं खिचड़ी और तिल के पकवान

आप सभी को बता दें कि भगवान...Editor

आप सभी को बता दें कि भगवान विष्णु एवं सूर्य देव को समर्पित पर्व मकर संक्रांति के दिन स्नान, दान एवं पूजा-पाठ का खास महत्व माना जाता है. कहते हैं सूर्य का धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश होन ही मकर संक्रांति मनाने का कारण है. आप सभी को बता दें कि इस साल 14 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई जाने वाली है ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि मकर संक्रांति पर तिल के पकवान क्यों बनते हैं. आइए जानते हैं..?

मकर संक्रांति पर तिल के पकवान क्यों बनते हैं - श्रीमद्भागवत एवं देवी पुराण में दर्ज एक कथा के अनुसार शनि देव का हमेशा से ही अपने पिता सूर्य देव से वैर था. एक दिन सूर्य देव ने शनि और उसकी माता छाया को अपनी पहली पत्नी संज्ञा के पुत्र यमराज से भेद भाव करते हुए देख लिया. इससे नाराज होकर उन्होंने अपने जीवन से छाया और शनि को निकालने का कठोर फैसला लिया. इससे नाराज होकर शनि और छाया ने सूर्य को कुष्ठ रोग हो जाने का शाप दिया और वहां से चले गए.पिता को कुष्ठ रोग से परेशान होते देख यमराज ने तपस्या की. आखिरकार सूर्य देव कुष्ठ रोग से मुक्त हुए. किन्तु उनके मन में अभी भी शनी देव को लेकर क्रोध था. क्रोधित अवस्था में ही वे शनि देव के घर (कुंभ राशि में) गए और उसे जलाकर काला कर दिया. इसके बाद शनि और उनकी माता छाया को कष्ट भोगना पड़ा. अपनी सौतेली मां और शनी देव को दुख में देखकर यमराज ने उनकी मदद की. सूर्य देव को दोबारा उनसे मिलने भेजा. इस बार जब सूर्य देव वहां पहुंचें तो शनि देव ने 'काले तिल' से उनकी पूजा की. चूंकि घर में सब कुछ जल चुका था, इसलिए शनि देव के पास केवल तिल ही थे. शनि की पूजा से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने शनि देव को वरदान दिया और कहा कि तुम्हारे दूसरे घर 'मकर' में आने पर तुम्हारा घर धन-धान्य से भर जाएगा. इसी कारण से मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव की तिल से पूजा की जाती है और अगले दिन तिल का सेवन किया जाता है.

मकर संक्रांति पर क्यों बनाते हैं खिचड़ी - एक कहानी के अनुसार कहा जाता है कि खिचड़ी का आविष्कार पहली बार भगवान शिव के अवतार कहे जाने वाली बाबा गोरखनाथ ने किया था. जब खिलजी ने आक्रमण किया था तब नाथ योगियों के पास युद्ध के बाद खाना बनाने का समय नहीं बचता था. इस परेशानी को देखते हुए बारा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जियों को एक साथ एक ही बर्तन में पकाने की सलाह दे. इससे जो व्यंजन तैयार हुआ वह झट से बन भी गया और स्वादिष्ट भी लगा. इसे खाने में भी कम समय लगा और इससे शरीर में ऊर्जा भी बनी रहती थी. बारा गोरखनाथ ने स्वयं इस पकवान का नाम खिचड़ी रखा. कहते है कि वह मकर संक्रांति का ही समय था जिसके बाद से हमेशा इस दिन खिचड़ी बनाई जाती है.

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