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इस पर्वत पर विराजे हैं शिव, यहीं कहलाये थे नीलकंठ

इस पर्वत पर विराजे हैं शिव, यहीं कहलाये थे नीलकंठ

भोलेनाथ, महादेव, महेश नाजाने...Public Khabar

भोलेनाथ, महादेव, महेश नाजाने कितने नामों से जाने जाने वाले भगवान शिव अपने भक्तों के बीच भोलेनाथ के नाम से ज्यादा लोक प्रिय हैं। भगवान शिव अपने भक्तों में ना तो भेदभाव करते हैं और अन्य देवी-देवताओं की अपेक्षा उनसे बहुत ही जल्द प्रसन्न भी हो जाते हैं। यही वजह है कि उनके भक्त उन्हें भोलेनाथ कहते हैं।


महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर नीलकंठ महादेव के दर्शन के लिए लगातार देश के कोने-कोने से शिव भक्त अपने अराध्य से मिलने नीलकंठ धाम पहुंचने लगे हैं। पहाड़ और जंगल के बीच बसे इस स्थान पर भगवान शिव खुद विराजमान हैं।


पौराणिक मान्यता है कि यही वो स्थान है जहां भगवान शिव ने समुद्र मंथन में निकले विष को अपने कंठ में धारण कर तपस्या की थी। जहर के प्रभाव से महादेव का कंठ नीला पड़ गया था। यहीं से भगवान शिव नीलकंठ महादेव कहलाये थे।


मणिकूट पर्वत के शीर्ष पर स्थित है भगवान शिव का पौराणिक नीलकंठ धाम जहा सावन के महीने में बड़ी संख्या में शिव भक्त कावड़ लेकर जलाभिषेक के लिए पहुंचते है। मान्यता है कि विष पीने के बाद भगवान शिव के शरीर में तेज़ जलन से इस स्थान पर काफी शांति मिली थी। देवताओं के आग्रह पर इस स्थान पर भोलेनाथ ने शिवलिंग की उत्पति की तब से देव ओर मानव यहां आराधना कर रहे हैं।


नीलकंठ मादेव की कावड़ यात्रा के लिए शिव भक्तों में नया जोश ओर उमंग उठने लगती है। अपने क्षेत्र से बड़ी संख्या में कावड़ लेकर यात्रा पर निकल पड़ते हैं। इनका पहला पड़ाव होता है हरिद्वार जहां हरकी पौड़ी पर स्नान करके ये आगे ऋषीकेश पहुंचते हैं। ऋषिकेश में स्वर्गाश्रम से शुरु होती है नीलकंठ महादेव की यात्रा जो पैदल मार्ग से 12 किमी के राजा जी पार्क के घने जंगलों से होकर गुजरती है। सड़क मार्ग से ये रास्ता लगभग 24 किमी पर पड़ता है।


इस यात्रा मे पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और पंजाब से लाखों की संख्या में श्रद्धालु नीलकंठ महादेव पर जल चढ़ाने के लिए आते हैं। लोगों की मान्यता है कि भगवान शिव इनकी मन्नतों को पूर कर देते हैं। यूं तो उत्तराखंड के कण-कण में भगवान शिव का वास है। हिमालय शिव परिवार का वास स्थान है। यहां की यात्रा और यहां के दर्शन मात्र से भक्तों के सभी दुःख दूर हो जाते हैं। नीलकंठ महादेव अपने सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूरा कर देते हैं। यही कारण है यहां साल भर बड़ी संख्या श्रद्धालु देश कोने-कोने से अपने आराध्य नीलकंठ महादेव के दर्शनों लिए मणिकूट पर्वत पहुंचते हैं।

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