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सरकार की 'छुक-छुक' पीछे छोड़ आगे बढ़ी मेट्रो, पढ़िए पूरी खबर

सरकार की छुक-छुक पीछे छोड़ आगे बढ़ी मेट्रो, पढ़िए पूरी खबर

मेट्रो रेल परियोजना (लाइट रेल...Editor

मेट्रो रेल परियोजना (लाइट रेल ट्रांजिट सिस्टम) पर सरकार की 'छुक-छुक' को अब उत्तराखंड मेट्रो रेल कारपोरेशन ने पीछे छोड़ने का मन बना लिया है। यही कारण है कि कॉम्प्रिहेंसिव मोबिलिटी प्लान (सीएमपी) पर शासन की स्वीकृति के बिना ही कारपोरेशन ने इसकी संस्तुतियों के अनुरूप डीपीआर (डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट) में अपने स्तर पर संशोधन शुरू कर दिया है। वजह यह कि यह प्लान करीब एक माह से आवास विभाग में स्वीकृति के लिए पड़ा है और इस पर शासन की मुहर तक नहीं लग पाई।

मेट्रो रेल कारपोरेशन के प्रबंध निदेशक को यह कदम इसलिए भी उठाना पड़ा कि परियोजना पहले ही काफी विलंब से चल रही है। जब तक सीएमपी के अनुरूप डीपीआर में संशोधन नहीं किया जाता, तब तक उसे न तो राज्य कैबिनेट की बैठक में रखा जा सकता है और न ही अंतिम स्वीकृति के लिए केंद्र सरकार को भेजा जा सकता है। मेट्रो रेल कारपोरेशन के प्रबंध निदेशक जितेंद्र त्यागी ने कहा कि परियोजना के भविष्य के लिए सीएमपी की स्वीकृति के इंतजार के बिना ही संशोधन शुरू कर दिया गया है। ताकि आगामी कैबिनेट की बैठक में डीपीआर को स्वीकृति दिलाई जा सके।

डीपीआर में यह किए जा रहे संशोधन

दून के भीतर के दो कॉरीडोर की बात करें तो कॉम्प्रिहेंसिव मोबिलिटी प्लान (सीएमपी) में एक कॉरीडोर एफआरआइ से रायपुर व दूसरा आइएसबीटी से मसूरी रोड को अधिक मुफीद माना गया है। इसमें एफआरआइ को रिस्पना पुल या रायपुर क्षेत्र से जोड़ने के दो विकल्प पर तुलनात्मक अध्ययन किया गया। दोनों विकल्प में यात्री संख्या तो लगभग समान आई, जबकि रिस्पना पुल वाले छोर पर लंबाई करीब दो किलोमीटर कम हो रही है। इस तरह कुल लागत में करीब 280 करोड़ रुपये की कमी आएगी, मगर इस क्षेत्र में मेंटिनेंस डिपो बनाने लायक स्थल नहीं मिल पा रहा है।

वहीं, रायपुर क्षेत्र में मेंटिनेंस डिपो बनाने के लिए जगह आसानी से मिल जाएगी। तकनीकी लिहाज से डिपो के लिए जगह मिलना अधिक जरूरी है। इस तरह देखें तो दूसरे कॉरीडोर (एफआरआइ से रायपुर) पर ही परियोजना को आगे बढ़ाया जाएगा। इसी के अनुरूप डीपीआर में संशोधन शुरू कर दिया गया है। इसके अलावा आइएसबीटी से कंडोली या मसूरी रोड के कॉरीडोर पर भी मंथन किया गया।

यात्री संख्या के लिहाज से मसूरी रोड वाले भाग पर यात्रियों की संख्या में करीब 10 हजार की कमी दर्ज की जा रही है। हालांकि यहां भी तकनीकी पेच फंस रहा है। कैनाल रोड वाले हिस्से में मेंटिनेंस डिपो के लिए स्थान की कमी है, जबकि मसूरी रोड पर यह जगह मिल जाएगी। हालांकि इस कमी को मसूरी रोपवे परियोजना के निर्माण के बाद पूरा किया जा सकता है। इसके बाद तय किया गया कि आइएसबीटी से मसूरी तक के कॉरीडोर पर ही परियोजना को आगे बढ़ाया जाएगा।

दो साल का सफर पूरा कर चुकी परियोजना

दून में मेट्रो परियोजना की शुरुआत हुए दो साल पूरे हो चुके हैं। फरवरी 2017 में उत्तराखंड मेट्रो रेल कारपोरेशन की स्थापना के साथ ही जितेंद्र त्यागी ने प्रबंध निदेशक की जिम्मेदारी संभाली थी। अब तक की प्रगति की बात करें तो डीपीआर को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका है। जबकि इसके लिए अगस्त 2018 में सरकार का एक दल शहरी विकास मंत्री की अध्यक्षता में लंदन व जर्मनी का दौरा कर आ चुका है। इससे पहले अधिकारियों के एक दल में जर्मनी का भी दौरा किया था।

हिचकोले खाती रही परियोजना

दिल्ली मेट्रो रेल कारपोरेशन के प्रबंध निदेशक (एमडी) पद से रिटायर होने के बाद जितेंद्र त्यागी ने राज्य सरकार के आग्रह पर फरवरी 2017 में नवगठित उत्तराखंड मेट्रो रेल कारपोरेशन के प्रबंध निदेशक का पद्भार ग्रहण किया।

परियोजना की प्रारंभिक डीपीआर तैयार होने के कई माह तक कुछ भी काम न होने पर सितंबर 2017 में जितेंद्र त्यागी ने एमडी पद से इस्तीफा दे दिया था।

सरकार ने इस्तीफा स्वीकार नहीं किया और जितेंद्र त्यागी से आग्रह करने बाद उन्होंने इस्तीफा वापस लिया।

इसके बाद सरकार ने 75 करोड़ रुपये का प्रारंभिक बजट भी मेट्रो के लिए जारी कर दिया। हालांकि यह बजट सिर्फ वेतन-भत्तों व छोटे-मोटे कार्यों के लिए ही है।

आय की गारंटी पर भी चाल सुस्त

प्रबंधक निदेशक त्यागी के अनुसार मेट्रो का संचालन शुरू होते ही सालभर में करीब 672 करोड़ रुपये की आय होगी। जबकि कुल खर्चे 524 करोड़ रुपये के आसपास रहेंगे। इस तरह एलआरटीएस आधारित यह परियोजना आरंभ से ही फायदे में चलेगी और इसके निर्माण की लागत (दून कॉरीडोर में करीब चार हजार करोड़ रुपये) के अलावा भविष्य में सरकार से किसी भी तरह के वित्तीय सहयोग की जरूरत नहीं पड़ेगी।

निदेशकों की नियुक्ति पर भी विलंब

उत्तराखंड मेट्रो रेल कारपोरेशन में दो निदेशकों की नियुक्ति ने लिए शासन को सितंबर माह में प्रस्ताव भेजा गया था, जिस पर सोमवार को कार्रवाई पूरी की जा सकी। शासन की उदासीनता के चलते परियोजना की प्रगति लगातार पिछड़ रही है।

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