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दो दशक बाद आया ऐसा संयोग पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र में

दो दशक बाद आया ऐसा संयोग पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र में

वाराणसी. पीएम मोदी के संसदीय...Public Khabar

वाराणसी. पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में दो दशक से अधिक का समय बीत जाने के बाद राजनैतिक संयोग दोबारा बना है। पिछली बार ऐसा 1995 में हुआ था। ऐसा होने से गणेश परिक्रमा में लगे कई बीजेपी के नेताओं को झटका भी लगा है।


चुनाव Kआयोग ने नगर निकाय चुनावो के लिए वाराणसी नगर निगम मेयर की सीट पिछड़ा वर्ग महिला के लिए घोषित कर दी है. ऐसा अवसर पूरे 22 साल के बाद आया है कि महापौर की सीट पिछड़ा वर्ग महिला के आरक्षित कर दी गई है। वर्ष 1995 में कद्दावर नेता पूर्व मंत्री ओमप्रकाश सिंह की पत्नी सरोज सिंह सपा की विमला ग्वाल को मात देकर महापौर बनी थीं।

तब के बाद यह सीट दो बार पिछड़ा वर्ग और एक बार सामान्य हुई लेकिन अब यह सीट पिछड़ा वर्ग महिला के खाते में जाने के कारण सभी दलों के बड़े सूरमाओं को जोरदार झटका लगा है। साल 1995 में सरोज सिंह ने विमला ग्वाल को नौ हजार वोटों से मात दी थी। उसके बाद वर्ष 2000 में यह सीट पिछड़ा वर्ग के खाते में हो गई, जोरदार लड़ाई में भाजपा के अमरनाथ यादव भारी पड़े थे जबकि सपा के विजय जायसवाल के मुकद्दर में हार आई।

वर्ष 2006-07 में आरक्षण पिछड़ा वर्ग के पक्ष में हुआ तो लड़ाई भाजपा के कौशलेंद्र प्रताप सिंह और सपा के कन्हैयालाल के बीच हुई। इसमें कौशलेंद्र की जीत हुई और वह महापौर बने। वर्ष 2012 में आरक्षण के ऊंट ने फिर करवट लिया। इस बार यह सीट सामान्य के खाते में चली गई। इस बार भी यह सीट भाजपा के ही खाते में आई, रामगोपाल मोहले महापौर बने। अब जबकि यह सीट पूरे 22 बरस के बाद दोबारा से पिछड़ा वर्ग महिला हो गई है तो सियासी गलियारे में कयासों के पर फिर से लग गए हैं। दावेदार फिर से तैयार होने लगे हैं और पार्टी स्तर पर सुगबुगाहट तेज हो गई है।

वार्ड की तरह महापौर सीट का आरक्षण भी अप्रत्याशित होने से दिग्गजों के अरमानों पर पानी फिर गया। कारण कि सिर्फ भाजपा में ही नहीं, बल्कि सपा व कांग्रेस में भी कई सामान्य 'खिलाड़ी' खुद को 'सिकंदर' बताते हुए महापौर का चुनाव लड़ने की जमीन तैयार करने लगे थे।

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