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वाराणसी हादसा : नहीं ली गई थी पुल डिजाइन की मंजूरी, जांच समिति ने गिनाईं ये लापरवाहियां

वाराणसी हादसा : नहीं ली गई थी पुल डिजाइन की मंजूरी, जांच समिति ने गिनाईं ये लापरवाहियां

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प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में कैंट स्टेशन के पास पुल गिरने से हुए हादसे की जांच के लिए गठित राज प्रताप सिंह कमेटी ने बृहस्पतिवार रात मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अपनी रिपोर्ट सौंप दी। रिपोर्ट में राज्य सेतु निगम के निवर्तमान प्रबंध निदेशक राजन मित्तल समेत सात अधिकारियों के खिलाफ कठोर दंडात्मक कार्रवाई की संस्तुति की गई है।

इनमें मित्तल को रिपोर्ट आने के पहले ही हटा दिया गया है जबकि चार अफसर निलंबित हैं। कमेटी ने स्थानीय प्रशासन की भूमिका पर भी सवाल खड़े करते हुए कटघरे में खड़ा किया गया है।

वाराणसी हादसे की जांच के लिए मुख्यमंत्री द्वारा गठित तीन सदस्यीय बृहस्पतिवार को लखनऊ लौट आई। राज प्रताप सिंह, सिंचाई विभाग के प्रमुख अभियंता व विभागाध्य भूपेंद्र शर्मा व जल निगम के एमडी राजेश मित्तल की कमेटी ने देर रात मुख्यमंत्री से मिलकर उन्हें रिपोर्ट सौंपी।

इन अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश
जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में बृहस्पतिवार को सेतु निगम के एमडी पद से हटाए गए राजन मित्तल, मुख्य परियोजना प्रबंधक एस.सी. तिवारी, पूर्व परियोजना प्रबंधक गेंदालाल, पूर्व परियोजना प्रबंधक के.आर, सूद, सहायक परियोजना प्रबंधक राजेंद्र सिंह, अवर परियोजना प्रबंधक लाल चंद्र व अवर परियोजना प्रबंधक राजेश पाल को हादसे के लिए उत्तरदायी ठहराते हुए लोक निर्माण विभाग द्वारा इनके खिलाफ कठोर दंडात्मक कार्रवाई की सिफारिश की है।
हर स्तर पर लापरवाही, पुल की डिजाइन की मंजूरी भी नहीं ली गई
समिति ने अपनी रिपोर्ट में इस हादसे के लिए उन सभी को जिम्मेदार ठहराया है जिन्होंने पिछले ढाई-तीन महीने के दौरान निरीक्षण किया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि परियोजना में हर स्तर पर निरीक्षण में लापरवाही बरती गई। पुल के स्ट्रक्चर व क्वालिटी में तो कोई कमी नहीं पाई गई लेकिन डिजाइन पर जरूर सवाल खड़ा किया गया है। जांच में यह भी सामने आया कि डिजाइन की ड्राइंग का सक्षम अधिकारी से अनुमोदन नहीं कराया गया। जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में पूर्व मुख्य परियोजना प्रबंधक गेंदा लाल को भी लापरवाही का दोषी माना है।

जिला प्रशासन भी घेरे में, न बैरिकेडिंग न डायवर्जन
जांच समिति ने सेतु निगम के साथ-साथ जिला प्रशासन को भी कठघरे में खड़ा किया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पुल के निर्माण के चलते ट्रैफिक अव्यवस्थित हो गया था। प्रशासन को बेरीकेडिंग आदि लगाकर सुरक्षा के उपाय करने चाहिए थे लेकिन ऐसा नहीं किया गया। बेरीकेडिंग व डायवर्जन में प्रशासन द्वारा सहयोग न किया जाना भी एक बड़ी चूक रही।

जांच समिति ने ये लापरवाहियां गिनाईं
- निर्माण कार्य में प्रयुक्त ड्राइंग का सक्षम विभागीय अधिकारी से अनुमोदन नहीं कराया गया।
- पुल के कॉलम के बीच में डाली गई बीम्स को क्रास बीम्स से टाई नहीं किया गया।
- बैच मिक्स प्लांट का रिकार्ड निर्माण इकाई द्वारा मेंटेन नहीं किया गया जिससे यह स्पष्ट नहीं होता है कि बीम्स ढालने में इस्तेमाल की गई सीमेंट, सैंड व ग्रिट का अनुपात निर्धारित मानक के अनुसार था या नहीं तथा उसे समय-समय पर सक्षम अधिकारियों द्वारा चेक किया गया नहीं?
- कार्य स्थल पर ढाली गई कंक्रीट की चेकलिस्ट का निर्माण इकाई के पास उपलब्ध नहीं था।
- विभिन्न निरीक्षणकर्ता अधिकारियों द्वारा निरीक्षण के बाद निरीक्षण की टिप्पणियां जारी नहीं की गईं।
- कार्य कराते समय निर्माण इकाई द्वारा कार्यस्थल का बैरीकेड कर वैकल्पिक मार्ग की व्यवस्था न करना।

थर्ड पार्टी निरीक्षण अनिवार्य रूप से कराने के निर्देश
मुख्यमंत्री ने सभी विभागों को विस्तृत दिशा-निर्देश जारी करने को कहा कि ये सावधानियां प्रदेश की सभी निर्माण इकाइयों द्वारा बरती जाए। महत्वपूर्ण व एक सीमा से अधिक के कार्र्यों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए थर्ड पार्टी निरीक्षण की व्यवस्था अनिवार्य रूप से की जाए।

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