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शिवसेना ने 'सामना' में लिखा, 'यही हमारा सुशासन! शराब कांड की बलि'

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शिवसेना ने अपने मुखपत्र 'सामना' के जरिए यूपी में जहरीली शराब से हुई मौतों को लेकर योगी सरकार पर निशाना साधा है. लेख में कहा गया है कि पहले उत्तर प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में ऑक्सीजन सिलेंडर की आपूर्ति समय पर न किए जाने के चलते असंख्य मासूमों ने तड़पकर दम तोड़ दिया था और अब जहरीली शराब ने सवा 100 लोगों की बलि ली है. इतना होने के बावजूद 'यही हमारा सुशासन है' इस तरह का लोकगीत ये गा रहे हैं.

पार्टी ने अपने मुखपत्र में लिखा है, 'उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से आनेवाली शराब कांड की बलि की खबरें मन को सुन्न करनेवाली हैं. जहरीली शराब पीने के कारण चार दिनों से इन दोनों राज्यों में कीड़े-मकोड़ों की तरह लोग मर रहे हैं. गुरुवार से मौतों का यह सिलसिला जारी है और थमने का नाम नहीं ले रहा है. पहले दिन जब जहरीली शराब के सेवन की खबर आई तब कुछ ही घंटों में मरनेवालों का आंकड़ा 25 के ऊपर चला गया और पिछले 4 दिनों में मौत का आंकड़ा 125 के ऊपर पहुंच गया है. विशेष रूप से उत्तर प्रदेश के सहारनपुर और कुशीनगर जिलों में जहरीली शराब कांड से हाहाकार मचा हुआ है.'

इस शराब का सेवन किया और वे भी खत्म हो गए

लेख में आगे लिखा है, 'उत्तराखंड का हरिद्वार पवित्र तीर्थ क्षेत्र 'देवभूमि' के रूप में पहचाना जाता है. मगर वहां भी चार दिनों से जहरीली शराब के कारण मरनेवाले लोगों के रिश्तेदारों का आक्रोश जारी है. जिन-जिन गांवों में यह शराब पहुंची हर उस गांव में मौत का तांडव जारी है. जिन छोटे-बड़े विक्रेताओं ने ये शराब बेची, उन्होंने भी इस शराब का सेवन किया और वे भी खत्म हो गए. शराब कांड में मरनेवाले सभी लोग गरीब परिवारों से हैं. छोटे-छोटे काम करनेवाले मजदूर हैं. दिनभर मेहनत और मजदूरी करना और उस दिन जो कमाया है उसी से अपने परिवार का वे पेट पालते थे. मेहनत का काम करने के बाद थकान को दूर करने के लिए वे सस्ती हाथभट्ठी की शराब पीते थे. मजदूर वर्ग का यह रोज का मानो नियम बन ही गया था. मगर थका हुआ बदन तत्काल गहरी नींद में सो जाए इसलिए पी गई जहरीली शराब और पीने के बाद लगी नींद जानलेवा साबित होगी, ऐसा उन्हें थोड़े ही पता था?

गली से लेकर दिल्ली तक चारों ओर देसी शराब का बोलबालाख में दावा किया गया है कि शराब कांड में अपनी जान गंवानेवाले परिवार के

मुखिया और कमानेवाले लोग थे. इन परिवार के मुखिया को ही सवा सौ परिवारों ने गंवा दिया है. घर का मुख्य व्यक्ति नजरों के सामने तड़पकर दम तोड़ देता है, जो काफी दुखदायी है. दुख और आक्रांत के चार दिन बीत जाने के बाद अब क्या खाएं? ऐसा इन परिवारों के सामने बहुत बड़ा सवाल है. ये सच्चाई भयंकर और दाहक है. शराब का अवैध व्यापार करनेवाले, मौत के नंगे नाच को अंजाम देनेवाले शराब विक्रेताओं को तथा उनसे दोस्ती रखनेवाले पुलिस तथा सरकारी अधिकारियों को इन परिवारों के सामने उत्पन्न हुई भीषण परिस्थिति का एहसास है क्या? गली से लेकर दिल्ली तक चारों ओर देसी शराब का बोलबाला है, जो खुले तौर पर दिखने के बावजूद हफ्ताखोर अधिकारी, गैरकानूनी शराब बिक्री व्यवसाय को सुरक्षा प्रदान करते हैं, ये बात किसी से छिपी नहीं है.

गरीब की मौत राजनीति का विषय नहीं?

शिवसेना ने आगे लिखा है कि आबकारी विभाग के अधिकारियों के घर पर तथा शराब की आपूर्ति करनेवाले बड़े ठेकेदारों के बंगलों पर देसी शराब के व्यवसाय से सोने की छत बन रही है. पर आप गरीब लोग ही रसायन मिश्रित जहरीली शराब पीकर उजड़ रहे हैं इसका दुख किसी को नहीं है. वैसे तो गरीबों की मौत को राजनीति का विषय नहीं बनाया जाना चाहिए. मगर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस शराब कांड के पीछे समाजवादी पार्टी का हाथ हो सकता है, ऐसा बचकाना बयान दिया है. सच तो यह है कि उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखंड इन दोनों राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की सत्ता है. जब यह जहरीली शराब बेची जा रही थी उस समय यही योगी महाशय पश्चिम बंगाल की सभा में भाजपा के लिए वोट मांग रहे थे.

अस्पताल में ऑक्सीजन सिलेंडर कांड को भी किया याद

सामना के लेख में पार्टी ने ऑक्सीजन सिलेंडर कांड को याद करते हुए लिखा है, 'इसके पहले उत्तर प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में ऑक्सीजन सिलेंडर की आपूर्ति समय पर न किए जाने के चलते असंख्य मासूमों ने तड़पकर दम तोड़ दिया था और अब जहरीली शराब ने सवा सौ लोगों की बलि ली है. इतना होने के बावजूद 'यही हमारा सुशासन है' इस तरह का लोकगीत ये गा रहे हैं. हाथभट्ठी और देसी शराब के अड्डे गरीबों की मौत के सौदागर ही हैं. बारंबार यह सिद्ध होने के बावजूद हमारे देश में देसी शराब के बाजार को आज तक कोई रोकने में सफल नहीं हो पाया. उल्टे आम जनता को उजाड़नेवाला सस्ते का शराब बाजार दिन-प्रतिदिन और बढ़ता ही जा रहा है. देश के कई उद्योग-धंधे बंद हो रहे हैं, आर्थिक मंदी के चलते व्यापार रसातल में जा रहा है. फिर भी 'दारू काम' का यह जानलेवा धंधा मात्र तेजी से जारी है. उसे रोकने का 'जोश' चुनावी वर्ष में सरकार दिखानेवाली है क्या?'

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