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MLA की गिरफ्तारी के बाद भी इलाहाबाद हाईकोर्ट रखेगा पैनी नजर, दो मई तक CBI से मांगी रिपोर्ट

इलाहाबाद। उन्नाव प्रकरण में...Editor

इलाहाबाद। उन्नाव प्रकरण में शुक्रवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि आरोपित विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को सिर्फ हिरासत में लेना काफी नहीं है। उसकी गिरफ्तारी होनी चाहिए। कोर्ट ने पुलिस की चार्जशीट के बाद भी सीबीआइ को नए सिरे से विवेचना करने का निर्देश दिया है और कहा है कि वह पूरे प्रकरण की मॉनीटरिंग खुद करेगी। कोर्ट ने दो मई को सुबह 10 बजे तक प्रगति रिपोर्ट मांगी है।


मुख्य न्यायाधीश डीबी भोंसले तथा न्यायमूर्ति सुनीत कुमार की खंडपीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल स्वरूप चतुर्वेदी के पत्र पर कायम जनहित याचिका पर गुरुवार को सुरक्षित किया गया फैसला शुक्रवार को सुनाया। कोर्ट ने विधायक के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी व पीडि़ता के पिता की हत्या मामले की भी कानून के तहत तय समय सीमा में विवेचना पूरी करने का सीबीआइ को निर्देश दिया है। यह भी कहा कि निष्पक्ष विवेचना के लिए जरूरी हो तो जमानत पर रिहा आरोपितों की जमानत निरस्त कराने की कार्यवाही करें। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि दुष्कर्म के दोनों मामलों के सभी आरोपित जेल की सींखचों के पीछे हों।

महाधिवक्ता का रवैया ठीक नहीं
कोर्ट ने महाधिवक्ता के इस कथन को सही नहीं माना कि बिना विश्वसनीय साक्ष्य के पुलिस आरोपित की गिरफ्तारी नहीं कर सकती। केवल प्राथमिकी दर्ज होने पर गिरफ्तारी नहीं की जा सकती। कोर्ट ने कहा कि महाधिवक्ता का रवैया हाई लेवल के पुलिस अधिकारियों की सदाशयता पर संदेह करने वाला है।

पुलिस की कार्यशैली पर उठाए सवाल
कोर्ट ने कहा कि एसआइटी रिपोर्ट पर डॉक्टर, सीओ व पुलिस कर्मियों को निलंबित कर दिया गया और आरोपित विधायक को स्वतंत्र रखा गया। कहा कि हत्या, डकैती, लूट, दुष्कर्म आदि गंभीर अपराधों के आरोपियों की कानून तत्काल गिरफ्तारी की व्यवस्था करता है, ताकि वे पीडि़तों में दहशत न फैला सकें। कोर्ट ने कहा कि पुलिस ने ईमानदारी व निष्पक्ष ढंग से कार्यवाही नहीं की।

सीएम दफ्तर के आदेशों को न मानने पर आमादा थी पुलिस
कोर्ट ने कहा कि 11 जून से 20 जून 2017 तक कक्षा छह की 17 वर्षीय छात्रा से अवधेश तिवारी, शुभम व बृजेश यादव ने सामूहिक दुष्कर्म किया फिर भी वे जमानत पर रिहा हो गए। पीडि़ता ने 17 अगस्त को मुख्यमंत्री से विधायक कुलदीप सिंह सेंगर, उनके भाई व अन्य पर सामूहिक दुष्कर्म का आरोप लगाते हुए शिकायत की। उन पर चार जून 2017 को दुष्कर्म करने का आरोप लगाया। इस पत्र का संज्ञान लेकर मुख्यमंत्री कार्यालय ने पुलिस क्षेत्राधिकारी को एफआइआर दर्ज करने और पीडि़ता का मेडिकल परीक्षण कराने का निर्देश दिया।

सीओ ने पीडि़ता की शिकायत नहीं सुनी और उसकी मेडिकल जांच भी नहीं कराई। वह नौ महीने तक न्याय के लिए भटकती रही। उसके पिता की मौत के बाद एसआइटी ने 12 अप्रैल 2018 को प्राथमिकी दर्ज की। कोर्ट ने कहा कि जब पुलिस ने फरियाद नहीं सुनी तो पीडि़त ने अदालत की शरण ली। अदालत ने पुलिस रिपोर्ट भी मांगी। घटना हो गई तब 12 अप्रैल को रिपोर्ट दर्ज की गयी। कोर्ट ने कहा कि पुलिस मशीनरी विधायक के दबाव में मुख्यमंत्री कार्यालय के निर्देशों को न मानने पर आमादा थी। वहीं, पुलिस, पीडि़त के परिवार के खिलाफ फर्जी मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तार करने दिल्ली तक पहुंच गयी। तब पीडि़ता के चाचा को कोर्ट से गिरफ्तारी पर रोक का आदेश लेना पड़ा।

'इस घटना में कानून का शासन बहाल करने व पीडि़ता की गरिमा के लिए आरोपितों की गिरफ्तारी जरूरी है। यदि फरियाद सुनी गई होती और विधायक के दबाव में पुलिस कानून की अनदेखी न करती तो पीडि़ता के पिता की दुर्भाग्यपूर्ण मौत न हुई होती।
- हाईकोर्ट

- हाईकोर्ट ने सीबीआइ से दो मई को मांगी प्रगति रिपोर्ट
- सीबीआइ को नए सिरे से विवेचना का आदेश
- जरूरी हो तो बेल पर रिहा आरोपितों की जमानत निरस्त कराएं
- पूरे मामले पर इलाहाबाद हाईकोर्ट खुद करेगा मॉनीटङ्क्षरग

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