गुरु गोबिंद सिंह जयंती 2025, वीरता और आध्यात्मिकता के प्रतीक के उपदेश जो आज भी प्रासंगिक हैं
- In मुख्य समाचार 6 Jan 2025 4:23 PM IST
सिख धर्म में गुरु गोबिंद सिंह जी का स्थान अद्वितीय और प्रेरणादायक है। उनकी जयंती को पूरे जोश और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह दिन न केवल सिख समुदाय के लिए, बल्कि समूची मानवता के लिए प्रेरणा का स्रोत है। गुरु गोबिंद सिंह जी सिख धर्म के दसवें और अंतिम गुरु थे। उनकी दूरदृष्टि, साहस, और धर्म के प्रति अटूट समर्पण ने सिख धर्म को एक नई दिशा दी।
गुरु गोबिंद सिंह जी और खालसा पंथ की स्थापना
गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1699 में बैसाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना की, जो सिख धर्म के अनुयायियों को धर्म और मानवता की रक्षा के लिए समर्पित करता है। उन्होंने सिखों को न केवल आध्यात्मिक रूप से सशक्त बनाया, बल्कि उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से भी मजबूत बनने की प्रेरणा दी। उनके द्वारा स्थापित खालसा पंथ का उद्देश्य निडरता, धर्म की रक्षा, और न्याय के लिए खड़ा होना था।
मुगलों से 14 युद्ध: धर्म की रक्षा का प्रण
गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की रक्षा और धर्म की स्वतंत्रता के लिए अपने जीवनकाल में 14 बार मुगलों और अन्य शासकों से युद्ध लड़ा। ये युद्ध केवल भूमि या सत्ता के लिए नहीं थे, बल्कि धार्मिक स्वतंत्रता और मानव अधिकारों की रक्षा के लिए थे। उन्होंने हर बार अपने अनुयायियों को साहस, धैर्य, और दृढ़ संकल्प के साथ अन्याय का सामना करना सिखाया।
गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रमुख उपदेश और वचन
गुरु गोबिंद सिंह जी ने न केवल युद्ध के मैदान में प्रेरणा दी, बल्कि अपने उपदेशों और वचनों से भी समाज को मार्गदर्शन प्रदान किया। उनके वचन आज भी जीवन के हर क्षेत्र में मार्गदर्शक हैं।
1. "चिड़ियों से मैं बाज लड़ाऊं, गीदड़ों को मैं शेर बनाऊं।"
गुरु जी ने कमजोर को सशक्त बनाने और असंभव को संभव करने का संदेश दिया।
2. "मानवता की सेवा ही सच्चा धर्म है।"
उन्होंने सभी धर्मों और जातियों को समान दृष्टि से देखने और सेवा के महत्व को समझाया।
3. "पांच ककार धारण करो।"
खालसा पंथ के पांच ककार (केश, कड़ा, कृपाण, कंघा, और कच्छा) को अपनाकर शारीरिक और मानसिक अनुशासन बनाए रखने का संदेश दिया।
4. "न डरें, न डराएं।"
उन्होंने सिखाया कि एक सच्चा सिख न किसी से डरता है और न ही किसी को डराता है।
गुरु गोबिंद सिंह जयंती का उत्सव और परंपराएं
इस पावन दिन पर गुरुद्वारों में अखंड पाठ, कीर्तन, और लंगर का आयोजन किया जाता है। सिख समुदाय के लोग प्रभात फेरियों में भाग लेते हैं और गुरु जी की शिक्षाओं का प्रचार करते हैं।
1. गुरुद्वारों में विशेष कीर्तन:
दिनभर गुरुद्वारों में गुरु गोबिंद सिंह जी के जीवन और उपदेशों पर आधारित कीर्तन होते हैं।
2. लंगर सेवा:
यह सेवा समानता और भाईचारे का प्रतीक है, जहां सभी धर्मों और जातियों के लोग एक साथ भोजन करते हैं।
3. निशान साहिब की सजावट:
गुरुद्वारों में निशान साहिब (ध्वज) को विशेष रूप से सजाया जाता है।
गुरु गोबिंद सिंह जी की शिक्षाओं की प्रासंगिकता
आज के समय में जब समाज में असमानता, अन्याय, और हिंसा का माहौल है, गुरु गोबिंद सिंह जी की शिक्षाएं हमें सही दिशा दिखाने का काम करती हैं। उनके उपदेश हमें सत्य, न्याय, और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं।
गुरु गोबिंद सिंह जयंती केवल एक पर्व नहीं है, बल्कि यह एक प्रेरणा है जो हमें अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक करती है। यह दिन हमें उनके साहस, त्याग, और सेवा भावना को याद दिलाता है। आइए, इस पवित्र दिन पर हम उनके आदर्शों को अपनाकर समाज और मानवता की सेवा करने का संकल्प लें।
यह लेख/समाचार लोक मान्यताओं और जन स्तुतियों पर आधारित है। पब्लिक खबर इसमें दी गई जानकारी और तथ्यों की सत्यता या संपूर्णता की पुष्टि की नहीं करता है।