हिंदू नववर्ष 2082 का पहला प्रदोष व्रत 10 अप्रैल को, शिव उपासना से मिलेगा सौभाग्य, शांति और कष्टों से मुक्ति

सनातन धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है। यह व्रत भगवान शिव को समर्पित होता है और प्रत्येक त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। शिवभक्तों के लिए यह दिन अत्यंत पुण्यदायी और फलदायक माना जाता है। मान्यता है कि प्रदोष के दिन व्रत रखने और भगवान शिव की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में चल रही परेशानियां समाप्त हो जाती हैं और उसे मानसिक शांति, आर्थिक समृद्धि तथा पारिवारिक सुख की प्राप्ति होती है।
इस वर्ष यानी विक्रम संवत 2082 में प्रदोष व्रत की शुरुआत 10 अप्रैल, गुरुवार को हो रही है। यह पहला प्रदोष व्रत ‘गुरुवार’ को पड़ने के कारण 'गुरुप्रदोष व्रत' के रूप में भी जाना जाएगा, जिसका फल और भी अधिक प्रभावशाली होता है। यह दिन भगवान शिव के साथ-साथ गुरुग्रह (बृहस्पति) की कृपा पाने का भी उत्तम अवसर है। जो व्यक्ति श्रद्धा और नियमपूर्वक इस दिन व्रत करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में चल रही विघ्न-बाधाएं स्वतः ही समाप्त हो जाती हैं।
प्रदोष व्रत का आध्यात्मिक महत्व और पूजा विधि
प्रदोष व्रत का पालन करने वाले भक्तों को कायिक (शारीरिक), वाचिक (वाणी) और मानसिक (मन से) तीनों स्तरों पर पवित्रता बनाए रखनी चाहिए। इसका अर्थ है कि व्रत के दिन न केवल शरीर को पवित्र और संयमित रखना होता है, बल्कि वाणी में मधुरता और मन में शुद्धता भी अनिवार्य होती है। इस त्रिविध शुद्धता से की गई शिव उपासना विशेष फलदायी मानी जाती है।
व्रत की शुरुआत प्रातःकाल स्नान के बाद शिवलिंग को गंगाजल से स्नान कराने से होती है। फिर बिल्वपत्र, धतूरा, सफेद फूल, दही, चंदन और भस्म से शिवजी की पूजा की जाती है। शाम के समय प्रदोषकाल (सूर्यास्त से पहले का समय) में दीप जलाकर शिव-पार्वती की आरती की जाती है। इस काल में ध्यानपूर्वक शिव चालीसा, रुद्राष्टक या महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से विशेष लाभ होता है।
गुरुप्रदोष व्रत के विशेष लाभ
गुरुवार को पड़ने वाला प्रदोष व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी होता है जो जीवन में आर्थिक संकट, वैवाहिक समस्याएं, संतान संबंधित चिंता या मानसिक तनाव से जूझ रहे हैं। इस दिन भगवान शिव के साथ गुरुदेव बृहस्पति की भी कृपा प्राप्त होती है, जिससे शिक्षा, करियर, विवाह और आय में उन्नति के योग बनते हैं।
जो भक्त पूरी श्रद्धा से इस दिन व्रत रखते हैं और रात्रि में भगवान शिव का ध्यान करते हैं, उन्हें चमत्कारिक लाभ प्राप्त होते हैं। शिवपुराण में वर्णित है कि प्रदोष व्रत करने वाला व्यक्ति मृत्यु के भय से मुक्त होता है और उसे जीवन के हर क्षेत्र में सफलता मिलती है।
हिंदू नववर्ष 2082 का पहला प्रदोष व्रत एक शुभ अवसर है आत्मिक शुद्धि, आध्यात्मिक उन्नति और शिव कृपा प्राप्त करने का। 10 अप्रैल को गुरुवार के दिन आने वाला यह व्रत न केवल भक्तों के जीवन को शांतिपूर्ण बनाता है, बल्कि उन्हें हर प्रकार की बाधाओं से उबारने की शक्ति भी देता है। ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि हम इस अवसर का पूर्ण लाभ उठाएं और विधिपूर्वक भगवान शिव की आराधना करें।
यह लेख/समाचार लोक मान्यताओं और जन स्तुतियों पर आधारित है। पब्लिक खबर इसमें दी गई जानकारी और तथ्यों की सत्यता या संपूर्णता की पुष्टि की नहीं करता है।