भद्रा कौन हैं और होलिका दहन पर क्यों है इनका प्रभाव? जानें संपूर्ण जानकारी

भद्रा कौन हैं और होलिका दहन पर क्यों है इनका प्रभाव? जानें संपूर्ण जानकारी
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रंगों के महापर्व होली से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है, जिसे बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। इस दौरान देशभर में विशेष उत्साह देखने को मिलता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भद्रा काल में होलिका दहन करना अशुभ माना जाता है? ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार, यदि होलिका दहन भद्रा के साये में किया जाए, तो इसका नकारात्मक प्रभाव साधकों और समाज पर पड़ सकता है। इसीलिए सही मुहूर्त में होलिका दहन करना बेहद जरूरी होता है।

कौन हैं भद्रा?

हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार, भद्रा भगवान सूर्य और छाया देवी की पुत्री हैं और इन्हें शनिदेव की बहन के रूप में जाना जाता है। भद्रा को दुर्व्यवहार और अशुभता का प्रतीक माना जाता है, इसलिए जब भी इनका प्रभाव किसी शुभ कार्य पर पड़ता है, तो वह बाधाओं से घिर जाता है। पंचांग के अनुसार, भद्रा काल में कोई भी शुभ या मांगलिक कार्य नहीं किया जाता, क्योंकि इस दौरान किए गए कार्यों का प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिलता है।

भद्रा को लेकर यह मान्यता है कि जब ये पृथ्वी लोक में निवास करती हैं, तो उस समय विवाह, हवन, गृह प्रवेश, व्यापार और धार्मिक अनुष्ठान करना निषिद्ध माना जाता है। इसी कारण से होलिका दहन के समय भी भद्रा के साए से बचने की सलाह दी जाती है।

भद्रा का होलिका दहन पर प्रभाव क्यों पड़ता है?

भद्रा काल को अत्यंत अशुभ माना जाता है, क्योंकि इस दौरान की गई पूजा, अनुष्ठान और यज्ञ का सकारात्मक फल नहीं मिलता है। होलिका दहन एक पवित्र अनुष्ठान है, जिसमें लोग अपनी बुराइयों को अग्नि में अर्पित कर आत्मशुद्धि की कामना करते हैं। यदि यह दहन भद्रा के प्रभाव में किया जाता है, तो माना जाता है कि इसका फल विपरीत हो सकता है और इसका असर परिवार एवं समाज पर भी पड़ सकता है।

इसलिए होलिका दहन हमेशा शुभ मुहूर्त में करना चाहिए ताकि इसका लाभ पूर्ण रूप से मिल सके। भद्रा काल में किए गए होलिका दहन से—

* पारिवारिक कलह बढ़ सकता है।

* समाज में नकारात्मक ऊर्जा का संचार हो सकता है।

* धन हानि और मानसिक तनाव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

* अनहोनी घटनाओं की संभावना बढ़ सकती है।

कैसे पता करें कि भद्रा काल कब है?

भद्रा काल जानने के लिए पंचांग का सहारा लिया जाता है। पंचांग में स्पष्ट रूप से यह बताया जाता है कि भद्रा कब शुरू होगी और कब समाप्त होगी। होलिका दहन के लिए सही समय का निर्धारण ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर किया जाता है। अगर भद्रा काल होलिका दहन के समय आ रहा हो, तो होलिका दहन को स्थगित कर भद्रा के समाप्त होने के बाद ही करना चाहिए।

होलिका दहन का सही समय जानने के लिए ज्योतिषीय पंचांग देखना आवश्यक होता है। कई बार भद्रा का कुछ हिस्सा ही होलिका दहन के समय पर पड़ता है, जिससे बचने के लिए उसके समाप्त होते ही दहन करने की सलाह दी जाती है।

भद्रा काल में होलिका दहन से बचने के उपाय

यदि किसी कारणवश भद्रा काल में ही होलिका दहन करना अनिवार्य हो, तो कुछ विशेष उपाय करके इसके नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सकता है—

1. हनुमान चालीसा और महामृत्युंजय मंत्र का पाठ करें, जिससे नकारात्मक ऊर्जा का असर कम हो।

2. शुद्ध घी और गोबर से बनी होलिका में हवन सामग्री डालें, जिससे पवित्रता बनी रहे।

3. होली दहन से पहले शिवजी और हनुमानजी की आराधना करें और भद्रा दोष शांति के लिए प्रार्थना करें।

4. भद्रा के समय किए गए दहन से बचने के लिए पंचांग में बताए गए उपायों को अपनाएं।

भद्रा का प्रभाव हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। चूंकि यह अशुभ फलदायी होती हैं, इसलिए होलिका दहन के समय इनका प्रभाव टालना ही श्रेयस्कर होता है। पंचांग के अनुसार, सही समय पर होलिका दहन करना चाहिए ताकि इसका पूर्ण लाभ मिल सके और बुरी शक्तियों का नाश हो। यदि भद्रा काल में होलिका दहन करना अनिवार्य हो, तो विशेष पूजा और उपायों के माध्यम से इसके नकारात्मक प्रभावों को कम किया जा सकता है।

यह लेख/समाचार लोक मान्यताओं और जन स्तुतियों पर आधारित है। पब्लिक खबर इसमें दी गई जानकारी और तथ्यों की सत्यता या संपूर्णता की पुष्टि की नहीं करता है।

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