चैत्र माह में दो प्रदोष व्रत, जानें तिथियां और इसका धार्मिक महत्व

हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र माह को अत्यंत शुभ और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है। यह माह नववर्ष की शुरुआत का प्रतीक होता है और देवी-देवताओं की आराधना के लिए उत्तम समय होता है। इस पवित्र माह में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है, जो त्रयोदशी तिथि के दिन रखा जाता है।
चैत्र माह 2025 में दो प्रदोष व्रत पड़ेंगे—पहला 27 मार्च को और दूसरा 10 अप्रैल को। यह व्रत भगवान शिव को समर्पित होता है, जिसे करने से जीवन के समस्त कष्टों का निवारण होता है और भक्तों को मानसिक शांति प्राप्त होती है। प्रदोष व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी माना जाता है जो किसी प्रकार के भय, मानसिक तनाव या नकारात्मक ऊर्जाओं से घिरे होते हैं।
प्रदोष व्रत का महत्व और लाभ
प्रदोष व्रत को हिंदू धर्म में शुभ और फलदायी माना गया है। इस व्रत के पालन से व्यक्ति के जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह व्रत करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और सभी प्रकार के दोषों से मुक्ति मिलती है।
इस व्रत का विशेष महत्व निम्नलिखित कारणों से है—
पापों का नाश – प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति के पूर्व जन्म और वर्तमान जीवन के पापों का क्षय होता है।
कर्ज से मुक्ति – जिन लोगों पर भारी कर्ज का बोझ है, वे इस व्रत को करने से आर्थिक परेशानियों से उबर सकते हैं।
रोगों से मुक्ति – शिव आराधना से शारीरिक और मानसिक रोगों से छुटकारा मिलता है।
सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति – यह व्रत साधक को नकारात्मक ऊर्जाओं से बचाता है और सकारात्मक विचारों का संचार करता है।
मनोकामना पूर्ति – जो लोग अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रयासरत हैं, उनके लिए यह व्रत अत्यंत फलदायी साबित होता है।
चैत्र माह में प्रदोष व्रत की तिथियां और शुभ मुहूर्त
पहला प्रदोष व्रत:
तारीख: 27 मार्च 2025
त्रयोदशी तिथि आरंभ: 26 मार्च को रात 11:55 बजे
त्रयोदशी तिथि समाप्त: 27 मार्च को रात 01:45 बजे
शिव पूजा का श्रेष्ठ समय: संध्या काल (शाम 06:00 से 08:00 बजे तक)
दूसरा प्रदोष व्रत:
तारीख: 10 अप्रैल 2025
त्रयोदशी तिथि आरंभ: 9 अप्रैल को रात 10:30 बजे
त्रयोदशी तिथि समाप्त: 10 अप्रैल को रात 11:50 बजे
शिव पूजन का उत्तम समय: संध्या काल (शाम 06:30 से 08:30 बजे तक)
प्रदोष व्रत की विधि और पूजा पद्धति
1. स्नान और संकल्प: व्रत करने वाले व्यक्ति को प्रातःकाल स्नान कर संकल्प लेना चाहिए कि वे पूरे विधि-विधान से व्रत करेंगे।
2. निर्जला या फलाहार व्रत: यह व्रत निर्जला किया जाता है, लेकिन अगर स्वास्थ्य कारणों से संभव न हो तो फलाहार किया जा सकता है।
3. भगवान शिव की आराधना: संध्या के समय भगवान शिव का अभिषेक करें और "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जाप करें।
4. दीपदान और शिव चालीसा पाठ: शिवलिंग के सामने दीप जलाएं और शिव चालीसा का पाठ करें।
5. प्रसाद वितरण: पूजा के पश्चात फल, पंचामृत या मिष्ठान्न का प्रसाद वितरण करें और ब्राह्मणों को दान दें।
चैत्र माह का प्रारंभ हिंदू नववर्ष के साथ होता है और इस माह में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है। 27 मार्च और 10 अप्रैल 2025 को पड़ने वाले प्रदोष व्रत जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, समृद्धि और मानसिक शांति प्रदान करते हैं। भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने और सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति पाने के लिए इस व्रत को विधिपूर्वक करना चाहिए।
यह लेख/समाचार लोक मान्यताओं और जन स्तुतियों पर आधारित है। पब्लिक खबर इसमें दी गई जानकारी और तथ्यों की सत्यता या संपूर्णता की पुष्टि की नहीं करता है।