चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 2025, सृष्टि का पहला दिन क्यों माना जाता है? जानिए हिंदू नववर्ष का धार्मिक महत्व और विशेष पूजा विधि

हिंदू पंचांग में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को अत्यंत शुभ और पवित्र दिन माना जाता है। इसे भारतीय नववर्ष का आरंभ भी कहा जाता है, क्योंकि यही वह तिथि है जब ब्रह्माजी ने इस सृष्टि की रचना की थी। यही कारण है कि इस दिन को सृष्टि का प्रथम दिवस कहा जाता है। धार्मिक, ज्योतिषीय और सांस्कृतिक दृष्टि से भी इस तिथि का विशेष महत्व है। यह दिन नवचेतना, नए संकल्पों और सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण होता है। इसी दिन से विक्रम संवत का प्रारंभ होता है, जिसे भारतीय संस्कृति में नववर्ष के रूप में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर विशेष पूजा-अर्चना, दान-पुण्य और व्रत का आयोजन किया जाता है, जिससे वर्षभर सुख, समृद्धि और निरोगता प्राप्त होती है। आइए जानते हैं चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का महत्व, इसकी पूजा विधि और इससे जुड़े धार्मिक पहलू।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को सृष्टि का पहला दिन क्यों माना जाता है?
सनातन धर्म के ग्रंथों के अनुसार, ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही की थी। इसीलिए इसे सृष्टि का प्रथम दिवस माना जाता है। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि इसी दिन से कालगणना का प्रारंभ हुआ था और ब्रह्मांड का संचालन शुरू हुआ था।
इसके अलावा, यह दिन विक्रम संवत का पहला दिन होता है, जिसे भारत के प्राचीन राजा सम्राट विक्रमादित्य ने अपने शासनकाल में आरंभ किया था। यही कारण है कि इसे भारतीय नववर्ष के रूप में भी मनाया जाता है।
इस दिन के अन्य महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और धार्मिक संदर्भ:
🔹 भगवान विष्णु ने इसी दिन प्रथम अवतार 'मत्स्य अवतार' लिया था।
🔹 यह दिन नवरात्रि का पहला दिन होता है, जिसमें मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की पूजा की जाती है।
🔹 इस दिन को महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा और दक्षिण भारत में युगादि पर्व के रूप में भी मनाया जाता है।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 2025: शुभ मुहूर्त और पूजा का सही समय
पंचांग के अनुसार, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि का प्रारंभ 8 अप्रैल 2025 को होगा और यह दिनभर मान्य रहेगी। इस दिन विशेष रूप से सूर्योदय के समय पूजा करना शुभ माना जाता है।
🔹 प्रतिपदा तिथि प्रारंभ: 7 अप्रैल 2025, रात्रि 11:50 बजे
🔹 प्रतिपदा तिथि समाप्त: 8 अप्रैल 2025, रात्रि 09:30 बजे
🔹 अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 11:56 बजे से 12:48 बजे तक
🔹 ब्रह्म मुहूर्त: प्रातः 04:40 बजे से 05:28 बजे तक
🔹 गोधूलि मुहूर्त: सायं 06:10 बजे से 06:45 बजे तक
इस दिन विशेष पूजा करने से वर्षभर सुख-समृद्धि बनी रहती है।
नववर्ष पर विशेष पूजा विधि
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा पर किए गए धार्मिक अनुष्ठान व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं। इस दिन घर और मंदिरों में विशेष पूजा-विधि का आयोजन किया जाता है।
🔹 स्नान और संकल्प: प्रातः काल जल्दी उठकर गंगा जल मिश्रित जल से स्नान करें और नववर्ष को सुख-समृद्धि से भरपूर बनाने का संकल्प लें।
🔹 गुड़ी पड़वा पूजन (महाराष्ट्र में प्रचलित): घर के द्वार पर गुड़ी (एक विशेष प्रकार की ध्वजा) लगाकर उसकी पूजा करें।
🔹 कलश स्थापना: घर में ईश्वर का आह्वान करने के लिए एक पीतल या मिट्टी का कलश स्थापित करें।
🔹 भगवान ब्रह्मा और विष्णु की पूजा: इस दिन भगवान ब्रह्मा, विष्णु और देवी दुर्गा की पूजा करना विशेष लाभकारी होता है।
🔹 रामचरितमानस और भगवद गीता का पाठ: धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन से बुद्धि और मन को शुद्ध करने का प्रयास करें।
🔹 दान-पुण्य और हवन: जरूरतमंदों को भोजन कराएं और हवन के माध्यम से वातावरण को शुद्ध करें।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का वैज्ञानिक और ज्योतिषीय महत्व
इस दिन को सिर्फ धार्मिक ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक और ज्योतिषीय दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
✅ खगोलीय घटनाएं: इसी दिन सूर्य उत्तरायण से मकर राशि की ओर प्रवेश करके धीरे-धीरे मेष राशि की ओर अग्रसर होता है, जिससे नए मौसम की शुरुआत होती है।
✅ प्राकृतिक परिवर्तन: बसंत ऋतु का प्रारंभ होने से प्रकृति में नई ऊर्जा का संचार होता है और जीवन में सकारात्मकता आती है।
✅ स्वास्थ्य पर प्रभाव: इस समय मौसम परिवर्तन के कारण शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की आवश्यकता होती है, इसलिए इस दिन किए गए यज्ञ और सात्विक भोजन का सेवन स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से जीवन में आने वाले लाभ
🔹 मानसिक शांति: इस दिन पूजा-पाठ और ध्यान करने से मन को शांति मिलती है।
🔹 धन-वैभव में वृद्धि: लक्ष्मी माता की कृपा से पूरे साल आर्थिक स्थिति सुदृढ़ रहती है।
🔹 नकारात्मक ऊर्जा का नाश: हवन और मंत्र जाप से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
🔹 सुख-समृद्धि: नववर्ष पर दान-पुण्य करने से परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा केवल एक पंचांगीय तिथि नहीं, बल्कि भारत की प्राचीन संस्कृति, धर्म और परंपराओं का प्रतीक है। यह दिन न केवल सृष्टि की रचना का पहला दिन माना जाता है, बल्कि हिंदू नववर्ष के रूप में भी मनाया जाता है। इस शुभ अवसर पर विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करने और आध्यात्मिक नियमों का पालन करने से संपूर्ण वर्ष सुख, समृद्धि और निरोगता से भरपूर रहता है। इस पावन दिन को धार्मिक आस्था और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से स्वीकार कर हम अपने जीवन को अधिक सकारात्मक और उन्नत बना सकते हैं।
यह लेख/समाचार लोक मान्यताओं और जन स्तुतियों पर आधारित है। पब्लिक खबर इसमें दी गई जानकारी और तथ्यों की सत्यता या संपूर्णता की पुष्टि की नहीं करता है।