गणगौर व्रत 2025 सुहागिन महिलाओं के लिए शुभ दिन, जानें तिथि, पूजा विधि और महत्त्व

गणगौर व्रत 2025 सुहागिन महिलाओं के लिए शुभ दिन, जानें तिथि, पूजा विधि और महत्त्व
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गणगौर व्रत 2025 सुख-समृद्धि और अखंड सौभाग्य का प्रतीक

हिंदू धर्म में गणगौर व्रत का विशेष महत्व बताया गया है। यह पर्व विशेष रूप से सुहागिन महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी आयु और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना के लिए रखा जाता है। मान्यता है कि इस दिन माता पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। इसी कारण इस व्रत को अखंड सौभाग्य और दांपत्य जीवन में प्रेम व सामंजस्य बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।

गणगौर व्रत की तिथि और शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, गणगौर व्रत चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को रखा जाता है। इस वर्ष गणगौर तीज 31 मार्च 2025, सोमवार के दिन पड़ रही है। इस दिन विशेष पूजा-अर्चना करके माता गौरी और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।

गणगौर व्रत का महत्व

गणगौर व्रत केवल भारत में ही नहीं, बल्कि नेपाल और अन्य हिंदू बहुल क्षेत्रों में भी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है। राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार में यह त्योहार बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।

इस व्रत को सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और दांपत्य सुख के लिए रखती हैं, वहीं कुंवारी कन्याएं भी अच्छे वर की प्राप्ति के लिए इस व्रत का पालन करती हैं। इस दिन विशेष रूप से माता गौरी की पूजा की जाती है, जो सौभाग्य, समृद्धि और सुखद वैवाहिक जीवन का प्रतीक मानी जाती हैं।

गणगौर व्रत की पूजा विधि

प्रातः स्नान और संकल्प:

सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद गणगौर व्रत का संकल्प लें।

माता गौरी और भगवान शिव की स्थापना:

मिट्टी या लकड़ी की गणगौर (गौरी माता) की प्रतिमा को घर में स्थापित करें और पूजा की तैयारी करें।

श्रृंगार और पूजन सामग्री:

गणगौर माता को हल्दी, कुमकुम, मेहंदी, लाल चुनरी, चूड़ियां और बिंदी अर्पित करें। इसके साथ सुहाग से संबंधित वस्तुएं चढ़ाई जाती हैं।

पूजा आरंभ करें:

शिव-पार्वती की कथा का पाठ करें और माता गौरी को प्रसाद अर्पित करें। इस दिन विशेष रूप से गेहूं और चने के अंकुरित बीज का उपयोग किया जाता है।

व्रत और पारण:

महिलाएं दिनभर निर्जला व्रत रखती हैं और रात में कथा सुनने के बाद पारण करती हैं। कई स्थानों पर अगले दिन नदी या तालाब में गणगौर माता की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है।

गणगौर व्रत की विशेष मान्यताएं

इस व्रत को करने से विवाहित महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

अविवाहित कन्याएं इस व्रत को योग्य और मनचाहा जीवनसाथी पाने के लिए करती हैं।

इस दिन महिलाएं पारंपरिक गीत गाकर गणगौर माता को प्रसन्न करने का प्रयास करती हैं।

राजस्थान में गणगौर पर्व पर विशेष रूप से शोभायात्रा निकाली जाती है, जिसमें महिलाएं पारंपरिक परिधानों में माता गौरी की पूजा करती हैं।

गणगौर व्रत सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक पर्व भी है, जो प्रेम, समर्पण और पति-पत्नी के मधुर संबंधों का प्रतीक है। इस व्रत को करने से न केवल वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि आती है, बल्कि दांपत्य जीवन का बंधन और भी मजबूत होता है।

यह लेख/समाचार लोक मान्यताओं और जन स्तुतियों पर आधारित है। पब्लिक खबर इसमें दी गई जानकारी और तथ्यों की सत्यता या संपूर्णता की पुष्टि की नहीं करता है।

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