गुड़ी पड़वा और नव संवत्सर, हिंदू नववर्ष की शुरुआत का पर्व, जानें इसकी परंपराएं और महत्व

भारत में हिंदू नववर्ष का आगमन गुड़ी पड़वा और नव संवत्सर के रूप में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह पर्व खासतौर पर महाराष्ट्र, गोवा और दक्षिण भारत में धूमधाम से मनाया जाता है, वहीं उत्तर भारत और हिंदी भाषी राज्यों में इसे विक्रम संवत के नववर्ष के रूप में जाना जाता है। इस दिन से चैत्र नवरात्रि की भी शुरुआत होती है, जो मां दुर्गा की उपासना का शुभ समय होता है। इस पर्व का धार्मिक, सांस्कृतिक और ज्योतिषीय दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है।
गुड़ी पड़वा की परंपराएं और विशेष आयोजन
गुड़ी पड़वा के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद घर के मुख्य द्वार पर आम के पत्तों और फूलों से तोरण सजाया जाता है। इस दिन महाराष्ट्र के लोग अपने घरों में गुड़ी स्थापित करते हैं, जिसे बांस के डंडे पर पीले या केसरिया कपड़े और आम के पत्तों से सजाया जाता है। इस पर एक तांबे या पीतल का कलश लगाया जाता है, जो शुभता और समृद्धि का प्रतीक होता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की थी, इसलिए इसे नए आरंभ का प्रतीक माना जाता है।
मीठे नीम के पत्ते खाने की परंपरा
गुड़ी पड़वा की एक खास परंपरा है नीम की पत्तियां या नीम का मिश्रण खाने की। इसे गुड़, इमली और धनिया के बीजों के साथ मिलाकर प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। यह मिश्रण न केवल स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है बल्कि यह जीवन में आने वाले सुख-दुख को समान रूप से स्वीकार करने का प्रतीक भी माना जाता है।
धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व
गुड़ी पड़वा को रामराज्य की स्थापना का प्रतीक भी माना जाता है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान राम ने लंका विजय के बाद अयोध्या लौटकर अपना राज्याभिषेक किया था। इसी कारण इस दिन घरों में गुड़ी (विजय पताका) फहराई जाती है, जो विजय और सफलता का प्रतीक है।
इतना ही नहीं, यह पर्व मराठा साम्राज्य की वीरगाथा से भी जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने जब अपने शौर्य और पराक्रम से विजय प्राप्त की थी, तब उनके सैनिकों ने अपनी जीत का जश्न मनाने के लिए गुड़ी स्थापित की थी। तभी से यह परंपरा महाराष्ट्र में चली आ रही है।
नव संवत्सर: विक्रम संवत की शुरुआत
उत्तर भारत और अन्य हिंदी भाषी क्षेत्रों में गुड़ी पड़वा के दिन को नव संवत्सर के रूप में मनाया जाता है। इस दिन से विक्रम संवत का नया वर्ष शुरू होता है, जो कि भारत का पारंपरिक पंचांग आधारित कैलेंडर है।
🔹 इस वर्ष नव संवत्सर 2082 का शुभारंभ होगा, जिसे लेकर ज्योतिषीय दृष्टि से विशेष महत्व बताया गया है। इस संवत्सर का अधिपति ग्रह शनि होगा, जो कर्म, न्याय और अनुशासन का प्रतीक माना जाता है।
कैसे मनाया जाता है यह पर्व?
👉 महाराष्ट्र में: घरों के बाहर गुड़ी स्थापना, पूजा-अर्चना और पारंपरिक व्यंजन जैसे पूरनपोली और श्रीखंड बनाए जाते हैं।
👉 उत्तर भारत में: इस दिन को हिंदू नववर्ष के रूप में मान्यता दी जाती है, लोग मंदिरों में विशेष पूजा-पाठ करते हैं और नववर्ष का स्वागत करते हैं।
👉 दक्षिण भारत में: इसे युगादि (उगादि) के रूप में मनाया जाता है, जो तेलंगाना, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश का प्रमुख पर्व है।
गुड़ी पड़वा 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त
गुड़ी पड़वा 2025 का पर्व 30 मार्च 2025 को मनाया जाएगा। इस दिन के लिए शुभ मुहूर्त निम्नलिखित होंगे:
🔹 प्रतिपदा तिथि प्रारंभ: 30 मार्च, प्रातः 03:10 बजे
🔹 प्रतिपदा तिथि समाप्त: 31 मार्च, प्रातः 02:50 बजे
🔹 गुड़ी स्थापना का शुभ मुहूर्त: सुबह 06:15 से दोपहर 12:30 तक
गुड़ी पड़वा और नव संवत्सर हिंदू संस्कृति का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो नए सत्र की शुभ शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। यह न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व भी रखता है। इस दिन गुड़ी की स्थापना, नीम के पत्तों का सेवन, पूजा-पाठ और मंगल कामनाओं के साथ नए वर्ष का स्वागत किया जाता है। यह पर्व हमें नई ऊर्जा, सकारात्मकता और सफलता की प्रेरणा देता है।
यह लेख/समाचार लोक मान्यताओं और जन स्तुतियों पर आधारित है। पब्लिक खबर इसमें दी गई जानकारी और तथ्यों की सत्यता या संपूर्णता की पुष्टि की नहीं करता है।