होलाष्टक 2025, जानिए क्यों माना जाता है यह समय अशुभ और कौन-से कार्य होते हैं वर्जित

होलाष्टक 2025, जानिए क्यों माना जाता है यह समय अशुभ और कौन-से कार्य होते हैं वर्जित
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हिंदू धर्म में होलाष्टक को अत्यधिक महत्वपूर्ण और संवेदनशील अवधि माना जाता है। यह फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से लेकर होलिका दहन तक रहता है और इस दौरान किसी भी शुभ कार्य को करने की मनाही होती है। विशेष रूप से उत्तर भारत में इस अवधि को विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, नामकरण जैसे मंगल कार्यों के लिए अशुभ माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस समय नकारात्मक ऊर्जाएं अधिक सक्रिय होती हैं, जिससे कार्यों में बाधाएं उत्पन्न हो सकती हैं।

होलाष्टक क्या है और इसका महत्व

होलाष्टक का आरंभ फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से होता है और यह होलिका दहन तक चलता है। इस आठ दिवसीय अवधि में प्रकृति में विशेष परिवर्तन देखे जाते हैं, जिससे वातावरण में ऊर्जा अस्थिर हो जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इसी दौरान हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद को कष्ट देना शुरू किया था। होलिका दहन के दिन प्रह्लाद की भक्ति और भगवान विष्णु की कृपा से होलिका का अंत हुआ, लेकिन इन आठ दिनों को संघर्ष और विपरीत परिस्थितियों का प्रतीक माना गया है।

होलाष्टक के दौरान कौन-से कार्य वर्जित हैं?

1. विवाह एवं मांगलिक कार्य: इस अवधि में शादी, सगाई, गृह प्रवेश, नामकरण और अन्य शुभ कार्यों को करने से बचना चाहिए।

2. नया व्यापार या निवेश: किसी भी नए व्यापार, प्रॉपर्टी खरीदने या निवेश से परहेज करें क्योंकि यह समय अनिश्चितता और अस्थिरता का होता है।

3. यात्रा: लंबी या महत्वपूर्ण यात्रा करने से बचें, क्योंकि इस दौरान परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।

4. नव निर्माण: घर, दुकान या कार्यालय के निर्माण की शुरुआत होलाष्टक के दौरान नहीं करनी चाहिए।

5. बाल कटवाना या मुंडन संस्कार: इस समय बाल कटवाना या मुंडन संस्कार करना अशुभ माना जाता है।

होलाष्टक के दौरान क्या करें?

* भगवान विष्णु और भगवान नरसिंह की पूजा करें।

* होलिका माता की आराधना करें और उनके समक्ष दीप जलाएं।

* दान-पुण्य करें और जरूरतमंदों की सहायता करें।

* हनुमान चालीसा, विष्णु सहस्रनाम और भगवद गीता का पाठ करें।

होलाष्टक का काल हिंदू धर्म में विशेष रूप से सतर्कता बरतने का समय होता है। यह एक ऐसा समय है, जब आध्यात्मिक साधना, भक्ति और संयम का पालन करना श्रेष्ठ माना जाता है। हालांकि, यह काल नकारात्मक नहीं होता, बल्कि आत्मचिंतन और पूजा-पाठ के लिए उत्तम समय होता है।

यह लेख/समाचार लोक मान्यताओं और जन स्तुतियों पर आधारित है। पब्लिक खबर इसमें दी गई जानकारी और तथ्यों की सत्यता या संपूर्णता की पुष्टि की नहीं करता है।

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