कुंभ मेले के समापन पर अनोखी परंपरा, नागा साधु करते हैं हजारों लीटर कढ़ी-पकौड़े का भोग, जानें इसका धार्मिक महत्व
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कुंभ मेला 2025 समापन तिथि: महाशिवरात्रि पर होगा अंतिम स्नान, जानें अनोखी परंपराओं के बारे में
कुंभ मेला, जो एक महीने से अधिक समय तक आस्था और आध्यात्मिकता का केंद्र बना रहता है, अब अपने अंतिम चरण में पहुंच चुका है। इस बार कुंभ मेला माघ पूर्णिमा के पावन स्नान के बाद समाप्ति की ओर अग्रसर है। महाशिवरात्रि के अवसर पर अंतिम शाही स्नान के साथ इस भव्य आयोजन का समापन होगा। परंतु, कुंभ मेले के समापन पर नागा साधुओं की एक खास परंपरा है, जो इसे और भी विशेष बना देती है—हजारों लीटर कढ़ी-पकौड़े का प्रसाद तैयार कर उसका भोग लगाना और उसे भक्तों के साथ साझा करना।
हजारों लीटर कढ़ी-पकौड़े का आयोजन: एक अनोखी परंपरा
कुंभ मेले के अंतिम दिन नागा साधु विशेष आयोजन के तहत हजारों लीटर कढ़ी और पकौड़े तैयार करते हैं। यह प्रसाद न केवल नागा साधुओं के बीच बल्कि कुंभ मेले में उपस्थित श्रद्धालुओं में भी बांटा जाता है। इस परंपरा का धार्मिक महत्व भी है—कहा जाता है कि यह ‘भोग-प्रसाद’ साधुओं के तप और संयम का प्रतीक है, जो वे पूरे कुंभ मेले के दौरान निभाते हैं।
इस विशाल भंडारे को तैयार करने में नाई (Barber) समुदाय की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इस परंपरा के अनुसार, नाई समुदाय इस भंडारे के संचालन का जिम्मा संभालता है और साधुओं की सेवा में समर्पित रहता है। यह परंपरा गुरु-शिष्य परंपरा और सेवा भाव को दर्शाती है, जो कुंभ के धार्मिक स्वरूप को और गहराई प्रदान करती है।
महाशिवरात्रि पर अंतिम स्नान: आध्यात्मिक यात्रा का समापन
महाशिवरात्रि के दिन अंतिम शाही स्नान के साथ कुंभ मेले का समापन होता है। यह स्नान धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि शिवभक्तों के लिए यह दिन मोक्ष प्राप्ति का विशेष अवसर होता है। नागा साधु, अखाड़ों के संत, और लाखों श्रद्धालु गंगा, यमुना, और संगम के पावन जल में डुबकी लगाकर अपने पापों से मुक्ति की कामना करते हैं।
नागा साधुओं के लिए विदाई का विशेष महत्व
कुंभ मेले के दौरान नागा साधु अपनी कठोर तपस्या और संयम का पालन करते हैं। अंतिम दिन वे भंडारा करके अपनी तपस्या का समापन करते हैं और कढ़ी-पकौड़े का प्रसाद ग्रहण करते हुए कुंभ से विदाई लेते हैं। यह आयोजन साधु-संतों के बीच आपसी भाईचारे और आध्यात्मिक ऊर्जा का आदान-प्रदान भी होता है।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व:
1. सेवा भावना: नाई समुदाय के सहयोग से भंडारे का आयोजन, जो सेवा भाव को दर्शाता है।
2. आध्यात्मिक एकता: साधु-संतों और श्रद्धालुओं के बीच धार्मिक एकता और भाईचारे का प्रतीक।
3. प्रसाद का महत्व: कढ़ी-पकौड़े का प्रसाद जीवन में सरलता और सादगी का संदेश देता है।
कुंभ मेला न केवल एक धार्मिक पर्व है बल्कि यह भारतीय संस्कृति, परंपराओं और आध्यात्मिक विरासत का जीवंत उदाहरण भी है। नागा साधुओं द्वारा कढ़ी-पकौड़े के भंडारे की यह अनोखी परंपरा इस बात को प्रमाणित करती है कि साधना के साथ सेवा और साझेदारी भी आध्यात्मिक जीवन का अभिन्न अंग है। महाशिवरात्रि पर अंतिम स्नान और भंडारे के साथ कुंभ मेला 2025 का समापन एक नई ऊर्जा और आस्था के साथ होगा, जो अगली बार फिर इसी जोश और श्रद्धा के साथ लौटेगा।
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