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महाकुंभ में अमृत स्नान, 29 जनवरी को दूसरा अवसर, दोपहर में स्नान-दान से बचें

महाकुंभ में अमृत स्नान, 29 जनवरी को दूसरा अवसर, दोपहर में स्नान-दान से बचें

महाकुंभ, भारतीय संस्कृति और...PS

महाकुंभ, भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं का एक महान पर्व, विश्वभर में श्रद्धालुओं के लिए एक अनमोल आध्यात्मिक अनुभव है। इस महायज्ञ में स्नान और दान का अत्यधिक महत्व है। खासतौर पर अमृत स्नान के दिन को शुभ और पवित्र माना जाता है, जब गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।

पहला अमृत स्नान हुआ संपन्न

महाकुंभ के पहले अमृत स्नान ने भारी श्रद्धालुओं को संगम की ओर आकर्षित किया। भक्तों ने नदियों में डुबकी लगाकर अपने पापों का प्रायश्चित किया और आध्यात्मिक उन्नति के लिए भगवान से प्रार्थना की। यह आयोजन शांतिपूर्ण और व्यवस्थित रूप से सम्पन्न हुआ, जिसमें श्रद्धालुओं ने नियम और अनुशासन का पालन किया।

दूसरा अमृत स्नान: 29 जनवरी को विशेष दिन

अब अगला प्रमुख अवसर 29 जनवरी को आने वाला है, जिसे दूसरा अमृत स्नान कहा जाता है। इस दिन, लाखों भक्त संगम की पवित्र धारा में स्नान करेंगे, जो ज्योतिषीय दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। यह समय आध्यात्मिक ऊर्जा और सकारात्मकता से भरपूर होता है।

दोपहर के समय स्नान-दान से बचें

विशेषज्ञों के अनुसार, 29 जनवरी को अमृत स्नान के दौरान दोपहर के समय स्नान और दान से बचने की सलाह दी गई है। ऐसा करने से पुण्य का प्रभाव कम हो सकता है। परंपराओं के अनुसार, स्नान और दान के लिए सुबह और शाम का समय अधिक उपयुक्त माना जाता है।

धार्मिक महत्व और आध्यात्मिक लाभ

महाकुंभ में स्नान करना न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह आत्मा को शुद्ध करने और सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव करने का एक विशेष अवसर भी है। अमृत स्नान के दिन संगम पर डुबकी लगाने से व्यक्ति को मोक्ष प्राप्ति और जीवन के बंधनों से मुक्ति का आशीर्वाद मिल सकता है।

सुरक्षा और व्यवस्थाओं की तैयारी

प्रशासन ने श्रद्धालुओं की सुरक्षा और सुविधाओं के लिए विशेष इंतजाम किए हैं। पुलिस और स्वयंसेवक तैनात हैं ताकि भीड़ नियंत्रण और सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। जल के शुद्धता स्तर को बनाए रखने के लिए अतिरिक्त प्रयास किए जा रहे हैं, और स्वच्छता पर भी विशेष ध्यान दिया गया है।

महाकुंभ का यह अवसर न चूकें

महाकुंभ एक अनोखा पर्व है, जो हर 12 वर्षों में एक बार आता है। इसमें भाग लेना और अमृत स्नान करना जीवन का एक दुर्लभ और पवित्र अनुभव हो सकता है। श्रद्धालुओं को चाहिए कि वे इस अवसर का पूरा लाभ उठाएं और धार्मिक नियमों का पालन करते हुए अपने जीवन को पुण्य और शांति से भरपूर करें।

यह लेख/समाचार लोक मान्यताओं और जन स्तुति पर आधारित है | पब्लिक खबर इसमें दी गयी जानकारी और तथ्यों की सत्यता और संपूर्णता की पुष्टि नहीं करता है |

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