रंग पंचमी 2025, होली के बाद रंगों का अनोखा उत्सव, जानें इसकी परंपरा और महत्व

रंग पंचमी 2025, होली के बाद रंगों का अनोखा उत्सव, जानें इसकी परंपरा और महत्व
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रंगों का त्योहार होली अपने उल्लास और प्रेम के रंगों के लिए जाना जाता है, लेकिन इसके पांच दिन बाद आने वाली रंग पंचमी भी उतनी ही विशेष होती है। यह पर्व मुख्य रूप से महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान और कुछ अन्य हिस्सों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन वातावरण में रंगों का उल्लास देखने को मिलता है, क्योंकि इसे नकारात्मक ऊर्जा को खत्म करने और जीवन में सकारात्मकता बढ़ाने के पर्व के रूप में देखा जाता है।

रंग पंचमी का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

रंग पंचमी का संबंध केवल आनंद और उल्लास से नहीं है, बल्कि इसका गहरा आध्यात्मिक महत्व भी है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, इस दिन रंगों के माध्यम से वातावरण को सात्विक और सकारात्मक ऊर्जा से भरने का प्रयास किया जाता है। यह पर्व तामसिक शक्तियों के नाश और सात्विक ऊर्जा के प्रसार का प्रतीक माना जाता है। विशेष रूप से मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में इसे धूलिवंदन के रूप में भी मनाया जाता है।

मथुरा और वृंदावन में, जहां होली के उत्सव का विशेष महत्व है, वहां कुछ मंदिरों में रंग पंचमी को होली महोत्सव के समापन के रूप में देखा जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण और राधा की मूर्तियों पर रंग अर्पित किए जाते हैं और भक्तों के बीच गुलाल उड़ाकर प्रेम और भक्ति का संदेश दिया जाता है।

रंग पंचमी की धूमधाम और उत्सव की झलक

इस दिन भारत के कई हिस्सों में बड़े जुलूस निकाले जाते हैं, जहां लोग एक-दूसरे पर गुलाल और रंग डालते हैं। खासतौर पर इंदौर, उज्जैन और महाराष्ट्र में रंग पंचमी का पर्व बेहद खास होता है। यहां शहरों में खास रंग पंचमी जुलूस निकलते हैं, जिनमें रंगों की बौछार के साथ-साथ ढोल-नगाड़ों और पारंपरिक नृत्य का आयोजन किया जाता है।

इस दिन खासकर महाराष्ट्र में गली-मोहल्लों में रंगों की बरसात देखने को मिलती है। इंदौर की गेर यात्रा तो पूरे देश में प्रसिद्ध है, जिसमें हजारों लोग एक साथ रंगों में सराबोर होकर आनंद मनाते हैं।

कैसे मनाई जाती है रंग पंचमी?

* गुलाल और अबीर से खेलना – इस दिन प्राकृतिक और हल्के गुलाल से एक-दूसरे को रंगने की परंपरा है।

* धार्मिक अनुष्ठान और पूजा – मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना होती है और भगवान को रंग अर्पित किए जाते हैं।

* शोभायात्रा और जुलूस – कई राज्यों में इस अवसर पर विशेष शोभायात्राएं निकाली जाती हैं, जिनमें रंगों की बौछार होती है।

* संगीत और नृत्य का आयोजन – कई जगहों पर इस दिन संगीत और नृत्य के माध्यम से उत्सव का आनंद उठाया जाता है।

रंग पंचमी से जुड़ी मान्यताएं और परंपराएं

ऐसा माना जाता है कि रंग पंचमी पर वातावरण में गुलाल उड़ाने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और बुरी शक्तियों का नाश होता है। यह दिन रंगों की शक्ति और आध्यात्मिक ऊर्जा के प्रसार का प्रतीक है, इसलिए इसे अत्यंत शुभ माना जाता है।

रंग पंचमी सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि रंगों के जरिए प्रेम, भक्ति और सकारात्मकता का संदेश देने का एक माध्यम है। होली के पांच दिन बाद आने वाला यह पर्व सामाजिक समरसता और आनंद का प्रतीक है। मथुरा-वृंदावन से लेकर इंदौर और महाराष्ट्र तक, इस दिन की अलग-अलग परंपराएं इसे और भी खास बनाती हैं। रंगों की इस अद्भुत छटा का आनंद उठाकर हम सभी जीवन में नई ऊर्जा और खुशियों का संचार कर सकते हैं।

यह लेख/समाचार लोक मान्यताओं और जन स्तुतियों पर आधारित है। पब्लिक खबर इसमें दी गई जानकारी और तथ्यों की सत्यता या संपूर्णता की पुष्टि की नहीं करता है।


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