नई दिल्ली । हर वर्ष बजट से पहले जारी होने वाली आर्थिक समीक्षा नि:संदेह ही भारतीय अर्थव्यवस्था पर सबसे प्रामाणिक और उत्कृष्ट दस्तावेज होती है। पिछले कुछ वर्षों से इसकी गुणवत्ता में और भी अधिक सुधार आया है। इसका एक कारण यह भी है कि सरकार पहले की अपेक्षा अधिक पारदर्शिता से आर्थिक डाटा जारी कर रही है। पहले की समाजवादी परंपरा में बजट में क्या होने वाला है, गोपनीय रखा जाता था। दूसरे शब्दों में कहें तो सरकार और नौकरशाह, दोनों देश की जनता और व्यापारियों को एक तरह से शत्रु मानते थे, परंतु अब यह दिख रहा है कि मोदी सरकार इस परंपरा को खत्म कर रही है। सरकार का मानना है कि बजट को अधिक से अधिक पारदर्शिता और मंत्रणा से बनाया जाना चाहिए और इसके इर्दगिर्द बेवजह की गोपनीयता और उत्साह समाप्त होने चाहिए। वित्त वर्ष 2017-18 की आर्थिक समीक्षा भी इसी परंपरा को आगे बढ़ाती हुई सरकार की आर्थिक सोच और विश्लेषण को सार्वजनिक करती है। आर्थिक समीक्षा के अनुसार वित्त वर्ष 2017-18 में आर्थिक विकास की दर 6.75 प्रतिशत रहेगी। साल की पहली छमाही में नोटबंदी और जीएसटी का आर्थिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव साल के उत्तरार्द्ध में कमतर हुआ है, आर्थिक सूचकांक फिर से ऊपर उठ रहे हैं और व्यापक आर्थिक स्थिरता बरकरार है। वितीय घाटा, व्यापार घाटा और मुद्रास्फीति नियंत्रण में हैं तो विदेशी निवेश और विदेशी मुद्रा भंडार अपने शिखर पर हैं।
कच्चे तेल की कीमत बढ़ने, सब्जियों के दाम बढ़ने से मुद्रास्फीति में उछाल आया
हालांकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमत बढ़ने, फल और सब्जियों के बेमौसम दाम बढ़ने और सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने से मुद्रास्फीति में थोड़ा उछाल आया है, लेकिन जिस प्रकार से कुछ समय से अर्थव्यवस्था में कयामत का प्रचार किया जा रहा था, आंकड़ों से वैसा प्रतीत नहीं होता। दरअसल आर्थिक समीक्षा विश्व बैंक और आइएमएफ आदि तमाम अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और रेटिंग एजेंसियों के समान ही इससे आश्वस्त दिखती है कि आने वाले वर्षों में भारत विश्व की सबसे अधिक विकास दर वाली अर्थव्यवस्था होगी। इसका सबसे बड़ा कारण भाजपा के नेतृत्व वाली राजग सरकार द्वारा किए जा रहे संरचनात्मक सुधार और अर्थव्यवस्था का पुनर्गठन है।
कच्चे तेल की कीमत बढ़ने, सब्जियों के दाम बढ़ने से मुद्रास्फीति में उछाल आया
हालांकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमत बढ़ने, फल और सब्जियों के बेमौसम दाम बढ़ने और सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने से मुद्रास्फीति में थोड़ा उछाल आया है, लेकिन जिस प्रकार से कुछ समय से अर्थव्यवस्था में कयामत का प्रचार किया जा रहा था, आंकड़ों से वैसा प्रतीत नहीं होता। दरअसल आर्थिक समीक्षा विश्व बैंक और आइएमएफ आदि तमाम अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और रेटिंग एजेंसियों के समान ही इससे आश्वस्त दिखती है कि आने वाले वर्षों में भारत विश्व की सबसे अधिक विकास दर वाली अर्थव्यवस्था होगी। इसका सबसे बड़ा कारण भाजपा के नेतृत्व वाली राजग सरकार द्वारा किए जा रहे संरचनात्मक सुधार और अर्थव्यवस्था का पुनर्गठन है।
बजट में जेटली खोल सकतें हैं शिक्षा, रोजगार और कृषि क्षेत्र के लिए खजाना
आर्थिक समीक्षा स्पष्ट रूप से तीन क्षेत्रों को सरकार की वरीयता वाले क्षेत्रों में चिन्हित करती है-शिक्षा, रोजगार और कृषि। यह आशा की जा सकती है कि बजट में इनकी तरफ ज्यादा ध्यान दिया जा सकता है। आर्थिक समीक्षा में इस सबके अलावा नई दूरसंचार नीति और करदाताओं के हजारों करोड़ रुपये पी जाने वाली एयर इंडिया के निजीकरण का भी प्रमुखता से जिक्र है। इसके साथ ही इसमें जीएसटी के 'सहकारी संघवाद' के मॉडल को अन्य क्षेत्रों के लिए उदाहरण बताया गया है। जिस प्रकार से केंद्र और राज्य सरकारों ने मिलकर जीएसटी परिषद का निर्माण किया है और उसमें जिस तरह सारे निर्णय सर्वसम्मति से होते हैं वह देश के संघीय ढांचे में एक नवोन्मेष है। इस मॉडल को स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि जैसे क्षेत्रों में लागू करके आगे बढ़ा जा सकता है, जहां कि अधिकार क्षेत्र राज्यों के हाथों में हैं। दरअसल विभिन्न क्षेत्रों में तेजी से सुधार इसी रास्ते पर चलकर संभव हैं।
आर्थिक समीक्षा ने तेल की बढ़ती कीमतों को बड़ा खतरा बताया है
सरकार ने 14वें वित्त आयोग की सिफारिशें मानते हुए राज्यों को अप्रत्याशित वित्तीय हस्तांतरण किया है। यह आगे भी बढ़ेगा ही, लेकिन इस प्रकार के क्षेत्रों में एकीकृत नीति की आवश्यकता भी रहेगी। इसीलिए आर्थिक समीक्षा द्वारा जीएसटी मॉडल की हिमायत भविष्य की ओर इंगित करती है। आर्थिक समीक्षा ने तेल की बढ़ती कीमतों को बड़ा खतरा बताया है जिससे भारत के वित्तीय घाटे और व्यापार घाटे पर दबाव पड़ेगा। इसके साथ ही इस बात पर चिंता जताई है कि प्रत्यक्ष कर-जीडीपी अनुपात आज भी 80 के दशक के बराबर ही है, जो कि अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से काफी कम है। हालांकि जीएसटी के तहत करदाताओं की संख्या में 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और नोटबंदी के बाद आयकर देने वालों की संख्या में भी इजाफा हुआ है, परंतु यह फिर भी अंतरराष्ट्रीय मानक से काफी कम है। खासतौर पर राज्य और स्थानीय प्रशासन की कर वसूली की क्षमता काफी कम है।
भारत में उत्पादन अभी भी काफी महंगा है
भारत में उत्पादन अभी भी काफी महंगा है और यह निर्यात के कम स्तर का मुख्य कारण है। इसके लिए लॉजिस्टिक और इंफ्रास्ट्रक्चर पर ध्यान देने की बात की गई है। इसके साथ ही न्यायपालिका की अक्षमता पर भी चिंता की गई है। हजारों मुकदमे टैक्स या अन्य विवादों में अदालतों में लटके हुए हैं, जो अर्थव्यवस्था और निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहे हैं। न्यायिक और प्रशासनिक सुधार को बेहतर अर्थव्यवस्था के लिए अत्यंत ही महत्वपूर्ण बताया गया है। इसके साथ ही राज्य की प्रशासन क्षमता को बढ़ाने में प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल जैसे आधार, डिजिटल इंडिया आदि की भूमिका को परिलक्षित किया गया है। इस सबके साथ ही जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण के कृषि और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पर काफी ध्यान दिया गया है। जिस प्रकार से कृषि क्षेत्र को सिंचित और असिंचित क्षेत्रों में बांटकर विश्लेषण किया गया है वह शायद इस क्षेत्र में आने वाले समय में बड़े निवेश की तरफ इशारा कर रहा है। साथ ही आंकड़ों के आधार पर यह दर्शाया गया है कि जो राज्य व्यापार (घरेलू और अंतरराष्ट्रीय) को बढ़ावा देते हैं और जहां सरकारें कारोबार एवं उद्योगों के अनुकूल हैं वे ज्यादा विकसित और समृद्ध हैं। इससे अन्य राज्यों को सबक सीखना चाहिए। इसके साथ ही सरकार द्वारा सार्वजनिक उपयोगिता वाले क्षेत्रों जैसे कि विद्युतीकरण, गृह निर्माण, शौचालय, गैस-सिलेंडर इत्यादि पर नीतिगत जोर बरकरार रखने और सब्सिडी खत्म करने के स्पष्ट संकेत हैं।