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बरनावा में महाभारत कालीन लाक्षागृह है कब्रिस्तान या दरगाह नहीं, अदालत ने सुनाया फैसला

बरनावा में महाभारत कालीन लाक्षागृह है कब्रिस्तान या दरगाह नहीं, अदालत ने सुनाया फैसला

उप्र के बागपत जिले के बरनावा...Anurag Tiwari

उप्र के बागपत जिले के बरनावा स्थित महाभारतकालीन लाक्षागृह पर न तो कब्रिस्तान और न ही दरगाह। कब्रिस्तान और दरगाह होने के दावे को अदालत ने खारिज कर दिया है। सिविल जज (जूनियर डिवीजन) शिवम द्विवेदी ने सोमवार को एएसआइ की रिपोर्ट और राजस्व रिकार्ड को आधार मानते हुए फैसला सुनाया। उन्होंने प्राचीन टीले को महाभारतकालीन लाक्षागृह (लाखामंडप) ही माना है। फैसले का आधार शिवमंदिर और लाखामंडप के साक्ष्यों को माना गया है। 53 साल 8 महीने बाद यह फैसला आया है।

फैसले के बाद लाक्षागृह की सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी गई है। वादी पक्ष खुश है, जबकि प्रतिवादी पक्ष ने ऊपरी अदालत में अपील करने की बात कही है।

बरनावा निवासी मुकीम खां ने 31 मार्च, 1970 को मेरठ की अदालत में वाद दायर किया था, जिसमें उन्होंने ब्रह्मचारी कृष्णदत्त को प्रतिवादी बनाया था। दावा किया था कि बरनावा में प्राचीन टीले पर शेख बदरुद्दीन की दरगाह और बड़ा कब्रिस्तान है, जो मुस्लिम वक्फ बोर्ड के अधीन है। 1997 में यह मुकदमा बागपत स्थानांतरित हो गया।

लाक्षागृह का नाम सुनते ही महाभारत काल की यादें ताजा हो जाती हैं। पांडवों को जिंदा जलाकर मारने की साजिश और उनके बचने के लिए सुरंग की कहानी मन में उभरती है। यह सुरंग आज भी लाक्षागृह में मौजूद है, जो महाभारतकालीन होने की गवाही दे रही है।

पंद्रह साल पहले लाक्षागृह के इतिहास को जानने के लिए सर्वेक्षण हुआ था। उसके बाद एएसआई के प्रोफेसर देवीलाल की देखरेख में उत्खनन शुरू हुआ। चित्रित धूसर मृदभांड मिले, जिनकी कार्बन डेटिंग से पता चला कि वे पांच हजार साल पुराने हैं। इनके महाभारतकालीन होने का दावा किया गया और रिपोर्ट एएसआई को भेजी गई।

वर्ष 2018 में एएसआई ने बड़े स्तर पर उत्खनन किया, जिसमें महाभारतकालीन अवशेष और बड़ी ईंटों की दीवारें मिलीं।बरनावा गांव में स्थित लाक्षागृह, महाभारतकालीन घटनाओं से जुड़ा एक महत्वपूर्ण स्थल है। पुरातत्व विभाग द्वारा किए गए उत्खनन में चित्रित धूसर मृदभांड, शिव मंदिर और लाखामंडप के अवशेष मिले हैं, जो इसे पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाते हैं। इन अवशेषों को संरक्षित कर दिया गया है।

इस भूमि पर श्री महानंद संस्कृत विद्यालय लाक्षागृह, बरनावा और गोशाला का संचालन किया जा रहा था। गांव में रहने वाले ब्रह्मचारी कृष्णदत्त, यौगिक मुद्रा में प्रवचन दिया करते थे। उनके प्रवचनों की सैकड़ों किताबें प्रकाशित हैं।

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