अक्षय तृतीया 2025 एक दिन, तीन दिव्य घटनाएं और अनंत पुण्य का संयोग

अक्षय तृतीया केवल एक धार्मिक तिथि नहीं है, यह सनातन संस्कृति का वह दैवीय उत्सव है जो तीन अत्यंत महत्वपूर्ण घटनाओं का प्रतीक है। यही वह दिन है जब त्रेतायुग का आरंभ हुआ था। इसे काल चक्र का वह क्षण माना जाता है जहां सतयुग की पवित्रता से त्रेता की धर्मपरायणता का उदय हुआ। यही वह दिन है जब भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम का पृथ्वी पर प्राकट्य हुआ था और यही दिन गंगा नदी के धरती पर अवतरण का साक्षी बना।
त्रेतायुग की शुरुआत: धर्म और मर्यादा के युग का आगमन
हिंदू शास्त्रों के अनुसार, चार युगों में से दूसरा युग त्रेतायुग माना गया है, जो धर्म, मर्यादा और तप की प्रधानता का युग था। पौराणिक मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन ही सतयुग का समापन हुआ और त्रेतायुग का शुभारंभ हुआ। यह परिवर्तन केवल काल का नहीं बल्कि चेतना और आध्यात्मिकता का प्रतीक माना जाता है। त्रेतायुग में भगवान राम जैसे मर्यादा पुरुषोत्तम और ऋषि-मुनियों का प्रभाव रहा, जिसने भारतीय संस्कृति को गहराई से प्रभावित किया।
परशुराम जयंती: भगवान विष्णु के क्रोध रूप का प्राकट्य
भगवान परशुराम का जन्म भी अक्षय तृतीया के दिन ही हुआ था। उन्हें भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता है, जो ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय धर्म का पालन करने वाले तपस्वी और योद्धा थे। परशुराम का जन्म अन्याय और अधर्म के विनाश के लिए हुआ था। उन्होंने एक अद्वितीय संत योद्धा के रूप में क्षत्रियों के अत्याचार के विरुद्ध धर्म की रक्षा की। इस दिन उन्हें श्रद्धापूर्वक पूजन कर शक्ति, ज्ञान और साहस की प्राप्ति की कामना की जाती है।
गंगा अवतरण: पृथ्वी पर पावन धारा का प्रवाह
अक्षय तृतीया का एक और दिव्य पहलू यह है कि इसी दिन गंगा नदी का धरती पर अवतरण हुआ था। राजा भागीरथ के कठोर तप और संकल्प के फलस्वरूप गंगा स्वर्ग से उतरकर पृथ्वी पर आईं। इस दिन को गंगा अवतरण दिवस के रूप में भी मनाया जाता है, और इसका महत्व तीर्थ स्नान, गंगा जल दान, तथा पितृ तर्पण से जुड़ा है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से समस्त पाप नष्ट होते हैं और पूर्वजों को शांति मिलती है।
पुण्य और सौभाग्य का अक्षय अवसर
'अक्षय' का अर्थ होता है—जो कभी क्षय न हो। अतः अक्षय तृतीया पर किया गया कोई भी धार्मिक कार्य, दान, जप, तप या श्रद्धा से किया गया कोई संकल्प कभी निष्फल नहीं जाता। यह दिन स्वर्ण खरीदने, नई शुरुआत करने और मांगलिक कार्यों के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। इसे अबूझ मुहूर्त के रूप में भी मान्यता प्राप्त है, जिसमें बिना किसी विशेष ज्योतिषीय गणना के भी विवाह, गृहप्रवेश, नया व्यापार आदि शुरू किए जा सकते हैं।
अक्षय तृतीया का दिन केवल एक तिथि नहीं, बल्कि धर्म, इतिहास और आध्यात्मिकता का संगम है। त्रेतायुग की शुरुआत, भगवान परशुराम का जन्म और गंगा का अवतरण, तीनों घटनाएं इस दिन की महत्ता को और भी गहरा करती हैं। यदि यह दिन श्रद्धा और समर्पण से मनाया जाए, तो यह जीवन में अक्षय पुण्य और सुख-समृद्धि का द्वार खोल सकता है।
यह लेख/समाचार लोक मान्यताओं और जन स्तुतियों पर आधारित है। पब्लिक खबर इसमें दी गई जानकारी और तथ्यों की सत्यता या संपूर्णता की पुष्टि की नहीं करता है।