मिट्टी के बर्तनों का महत्त्व हुआ उजागर, प्रो संखवार बोले मृदापात्रों में बना और रखा भोजन स्वास्थ्य के लिए हितकारी

वाराणसी में आयोजित अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला में विशेषज्ञों ने बताया कि मिट्टी के बर्तन न सिर्फ स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हैं बल्कि इतिहास और खाद्य संस्कृति को भी समझाते हैं

मिट्टी के बर्तनों का महत्त्व हुआ उजागर, प्रो संखवार बोले मृदापात्रों में बना और रखा भोजन स्वास्थ्य के लिए हितकारी
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वाराणसी में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति और पुरातत्व विभाग में आयोजित सात दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला में मिट्टी के बर्तनों और मृदकला को लेकर कई महत्वपूर्ण बातें सामने आईं. कार्यशाला के समापन समारोह में मुख्य वक्ताओं ने साफ कहा कि मृदापात्रों में रखा जल और मिट्टी के बर्तनों में बना खाना शरीर के लिए अत्यंत लाभकारी होता है. यही प्राथमिक कीवर्ड भी है और इसी से चर्चा की शुरुआत हुई.

समारोह की अध्यक्षता करते हुए चिकित्सा विज्ञान संस्थान के निदेशक प्रो एस एन संखवार ने कहा कि मिट्टी के बर्तन सिर्फ परंपरा का हिस्सा नहीं हैं बल्कि प्राकृतिक उपचार का एक सरल माध्यम भी हैं. उनके अनुसार आयुर्वेद में मिट्टी के उपयोग से कई तरह की बीमारियों का इलाज संभव माना गया है. उन्होंने बताया कि मिट्टी में मौजूद प्राकृतिक खनिज तत्व पानी और भोजन में घुलकर उसे और पौष्टिक बनाते हैं. उन्होंने चिंता जताते हुए कहा कि प्लास्टिक पर बढ़ती निर्भरता से स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ रहा है और ऐसे में मृदापात्र एक सुलभ और सुरक्षित विकल्प हैं.

कार्यक्रम की मुख्य अतिथि एमेरिटस प्रोफेसर विभा त्रिपाठी ने मृदभांडों को इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण कड़ियों में एक बताया. उन्होंने कहा कि किसी भी कालखंड की सामाजिक और खाद्य संस्कृति को समझने में इन बर्तनों की बनावट और उपयोग अहम संकेत देते हैं. उन्होंने कहा कि पुरातत्व में मिट्टी के बर्तन सिर्फ वस्तुएं नहीं होते बल्कि वे समय, समाज और जीवनशैली को समझने की एक भाषा की तरह काम करते हैं.

कार्यशाला के संयोजक प्रो एमपी अहिरवार ने स्वागत भाषण में विभाग के शताब्दी वर्ष के महत्व को रेखांकित किया. उन्होंने बताया कि सात दिनों में आयोजित सत्रों में छात्रों और प्रतिभागियों को न सिर्फ सिद्धांत बल्कि व्यावहारिक अनुभव भी दिया गया. सह संयोजिका प्रो सुजाता गौतम ने पिछले एक सप्ताह के कार्यक्रमों का ब्यौरा प्रस्तुत किया और बताया कि प्रतिभागियों को पारंपरिक तकनीकों से लेकर आधुनिक तरीकों तक की जानकारी दी गई.

व्यावहारिक प्रशिक्षण सत्रों में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सम्मानित कला शिल्पी शिव प्रसाद और अनिल ने छात्रों को चाक पर मिट्टी के बर्तन बनाना, खिलौने तैयार करना, मनके और मूर्तियां गढ़ना और अंत में उन्हें पकाने की विधियां सिखाईं. इस सत्र को लेकर छात्रों में काफी उत्साह देखने को मिला. कार्यशाला में श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल सहित देश के अलग अलग राज्यों से आए 74 प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र प्रदान किए गए.

समारोह में उत्तर प्रदेश बौद्ध संग्रहालय गोरखपुर के डिप्टी डायरेक्टर डॉ यशवंत सिंह राठौर, प्रो अर्पिता चटर्जी, प्रो जी के लामा और कई अन्य विद्वानों ने प्रतिभागियों द्वारा बनाए गए मृदभांडों का अवलोकन किया. उन्होंने छात्रों के कौशल और रचनात्मकता की प्रशंसा की.

कार्यक्रम का संचालन डॉ विराग सोनटक्के ने किया और धन्यवाद ज्ञापन डॉ विकास कुमार सिंह ने प्रस्तुत किया. समापन के साथ ही प्रतिभागियों ने बताया कि यह कार्यशाला न सिर्फ एक सीखने का अवसर थी बल्कि मिट्टी की सुगंध और उससे जुड़ी भारतीय विरासत को करीब से महसूस करने का मौका भी.

इस आयोजन ने एक बार फिर यह संदेश दिया कि मिट्टी के बर्तनों का महत्व सिर्फ अतीत तक सीमित नहीं है बल्कि यह स्वास्थ्य, पर्यावरण और संस्कृति को जोड़ने वाला एक महत्वपूर्ण माध्यम है.

यह लेख/समाचार लोक मान्यताओं और जन स्तुतियों पर आधारित है। पब्लिक खबर इसमें दी गई जानकारी और तथ्यों की सत्यता या संपूर्णता की पुष्टि की नहीं करता है।

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