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AI फोटो नहीं चलेगी, AI नहीं है लेखक, नेचर पब्लिशिंग एडिटर ने BHU में रिसर्च स्कॉलर्स को बताए सख्त नियम

BHU में आयोजित सत्र में एडिटर महेश खोत ने शोध प्रकाशन की प्रक्रिया और AI संबंधी सख्त नीतियों पर दी विस्तृत जानकारी।

AI फोटो नहीं चलेगी, AI नहीं है लेखक, नेचर पब्लिशिंग एडिटर ने BHU में रिसर्च स्कॉलर्स को बताए सख्त नियम
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काशी हिंदू विश्वविद्यालय के जंतु विज्ञान विभाग में मंगलवार को आयोजित एक महत्वपूर्ण सत्र में स्प्रिंगर नेचर के वरिष्ठ इन हाउस एडिटर डॉ महेश खोत ने शोधार्थियों को उच्चस्तरीय जर्नलों में प्रकाशन की प्रक्रिया और मानकों पर विस्तृत जानकारी दी. उनकी बातचीत स्पष्ट, संरचित और व्यावहारिक थी, जिसमें पब्लिशिंग इंडस्ट्री की मौजूदा जरूरतें और नियम दोनों साफ दिखाई दिए. सबसे पहले उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि नेचर पोर्टफोलियो में जेनरेटिव एआई से निर्मित किसी भी प्रकार की छवि स्वीकार नहीं की जाती. एआई को लेखक का दर्जा नहीं मिल सकता और रिव्यूअर्स को सलाह दी गई है कि वे पांडुलिपियों को किसी एआई टूल में न डालें. वैज्ञानिक ईमानदारी को लेकर यह नीति काफी दृढ़ है और छात्रों ने इसे गंभीरता से नोट किया.

सत्र का दूसरा हिस्सा शोध की गुणवत्ता और ग्लोबल साइटेशन संस्कृति को समझने पर केंद्रित था. डॉ खोत ने बताया कि साइंटिफिक रिसर्च दुनिया का तीसरा सबसे अधिक साइटेड जर्नल है. 2024 में इसे आठ लाख से अधिक साइटेशन मिले और इसकी ओपन एक्सेस प्रकृति इसे विभिन्न शोध क्षेत्रों के लिए एक महत्वपूर्ण मंच बनाती है. यह भी उल्लेखनीय रहा कि बीएचयू के सत्तर से अधिक प्रोफेसर और शोधकर्ता वर्तमान में नेचर पोर्टफोलियो के विभिन्न जर्नलों के एडिटोरियल बोर्ड में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं. इस जानकारी ने विश्वविद्यालय की अकादमिक साख को एक मजबूत संदर्भ प्रदान किया.



इसके बाद उन्होंने यह समझाया कि नेचर मुख्य जर्नल में केवल वही शोध स्वीकार होता है जो अपने क्षेत्र में निर्णायक प्रभाव छोड़ता हो. नेचर कम्युनिकेशंस तथा साइंटिफिक रिपोर्ट्स में व्यापक रुचि वाले मजबूत शोध को प्राथमिकता दी जाती है. प्लेजरिज्म, डेटा फैब्रिकेशन और इमेज मैनिपुलेशन पर जीरो टॉलरेंस नीति लागू है और पब्लिकेशन के हर चरण में इसकी सख्ती बनाए रखी जाती है. वैज्ञानिक समुदाय में विश्वसनीयता इसी कठोरता से कायम होती है.

सत्र के अंतिम चरण में डॉ खोत ने छात्रों को यह सुझाव भी दिया कि यदि उन्हें गुणवत्तापूर्ण विज्ञान की समझ है और वे उसे सरल व प्रभावी भाषा में प्रस्तुत करना जानते हैं तो एडिटोरियल करियर एक व्यवहारिक विकल्प हो सकता है. उनकी बातों ने शोधार्थियों को करियर के एक अतिरिक्त मार्ग पर विचार करने का अवसर दिया.

कार्यक्रम का आयोजन प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे द्वारा किया गया. पीएचडी छात्रों और पोस्ट डॉक शोधार्थियों ने सत्र में सक्रिय रूप से भाग लिया और एआई नीतियों, कवर लेटर लेखन तथा रिजेक्शन के बाद अपील प्रक्रिया जैसे कई महत्वपूर्ण विषयों पर सवाल पूछे.

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