छठ पर्व 2025: आज डूबते सूर्य को दिया जाएगा संध्या अर्घ्य, जानें इस परंपरा का धार्मिक महत्व और पूजन विधि

छठ पूजा का तीसरा दिन: डूबते सूर्य को अर्घ्य देने की पावन परंपरा
छठ पर्व का तीसरा दिन धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन को संध्या अर्घ्य का दिन कहा जाता है, जब व्रती महिलाएं और श्रद्धालु डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। यह परंपरा सूर्यदेव के प्रति आभार और उनकी उपासना का प्रतीक मानी जाती है। मान्यता है कि छठी मइया को प्रसन्न करने और परिवार की सुख-समृद्धि की कामना के लिए यह अर्घ्य अत्यंत फलदायी होता है।
सूर्यास्त से पहले घाटों पर उमड़ती आस्था की भीड़
इस दिन शाम ढलने से पहले ही नदी, तालाब या घाटों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ती है। व्रती महिलाएं प्रसाद की टोकरी, ठेकुआ, फल और नारियल से सजे बांस के सूप लेकर जलाशयों की ओर निकलती हैं। वहां पहुंचकर वे कमर तक जल में खड़ी होकर सूर्यदेव को अर्घ्य देती हैं। वातावरण ‘जय छठी मइया’ और ‘सूर्य भगवान की जय’ के जयघोष से गूंज उठता है।
संध्या अर्घ्य की धार्मिक मान्यता
धार्मिक ग्रंथों में सूर्य उपासना को जीवन शक्ति का स्रोत बताया गया है। संध्या अर्घ्य देने का अर्थ है, अस्त होते सूर्य को प्रणाम कर दिनभर की सकारात्मक ऊर्जा के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना। यह परंपरा केवल पूजा का अंग नहीं, बल्कि आस्था, संयम और प्रकृति के प्रति सम्मान का प्रतीक है। माना जाता है कि इस अर्घ्य से व्रती के घर में शांति, स्वास्थ्य और समृद्धि का वास होता है।
अगले दिन उगते सूर्य को दिया जाएगा अंतिम अर्घ्य
संध्या अर्घ्य के बाद छठ पर्व का समापन चौथे दिन उषा अर्घ्य यानी उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पण कर किया जाता है। यह दिन व्रतधारियों के लिए सबसे भावनात्मक क्षण होता है, क्योंकि कई दिनों की तपस्या और उपवास के बाद व्रती अपने व्रत का पारायण करते हैं।
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