माँ शिशु का अदृश्य संवाद बीएचयू सम्मेलन में एक्सोसोम्स के नन्हे मैसेंजर का कमाल उजागर

आईसीएईएमआरएच 2025 में विशेषज्ञों ने बताया कि गर्भावस्था में एक्सोसोम्स कैसे माँ और भ्रूण के बीच सूक्ष्म संवाद को दिशा देते हैं और जैविक बदलावों को नियंत्रित करते हैं

माँ शिशु का अदृश्य संवाद बीएचयू सम्मेलन में एक्सोसोम्स के नन्हे मैसेंजर का कमाल उजागर
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बीएचयू के विज्ञान संस्थान में चल रहे आईसीएईएमआरएच 2025 सम्मेलन के तीसरे दिन एक ऐसी बात ने सबका ध्यान खींचा जिसने गर्भावस्था को देखने का नजरिया ही बदल दिया. डॉक्टरों ने बताया कि माँ और शिशु के बीच होने वाला वह अदृश्य संवाद, जिसे लोग अक्सर सिर्फ हार्मोन या प्लेसेंटा तक सीमित समझते हैं, असल में कुछ बेहद नन्हे मैसेंजरों के सहारे चलता है. इन्हें एक्सोसोम्स कहा जाता है और गर्भावस्था शोध में इन्हें अब एक तरह का खास संदेशवाहक माना जा रहा है.

एम्स की वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. सुरभि गुप्ता ने अपने सत्र में समझाया कि प्लेसेंटा से निकलने वाले ये सूक्ष्म कण मातृ रक्त में बढ़ते हैं और गर्भावस्था के अलग चरणों में कौन से जैविक बदलाव जरूरी हैं, यह संकेत भेजते हैं. उन्होंने कहा कि यह संवाद एक तरह की पृष्ठभूमि की बातचीत जैसा है जो दिखाई तो नहीं देती लेकिन दोनों के विकास को सधे हुए तरीके से आगे बढ़ाती है. कई शोधों में देखा गया है कि इन एक्सोसोम्स की गतिविधि में छोटी सी गड़बड़ी भी गर्भ संबंधी जटिलताओं का शुरुआती संकेत बन सकती है.

दिन की शुरुआत जापान के यूनिवर्सिटी ऑफ टोयामा के प्रो. ईश्वर परहार के कीनोट से भी काफी रोचक रही. उन्होंने किसपेप्टिन पर आधारित न्यूरोनल प्लास्टिसिटी को लेकर बताया कि किस तरह गैर स्तनधारी कशेरुकियों में सामाजिक व्यवहार और प्रजनन नियंत्रण एक दूसरे से गहरे जुड़े हैं. यह विषय सीधे मनुष्यों से न जुड़ा हो, पर इससे यह जरूर समझ आता है कि जीव जगत में प्रजनन के फैसले कितनी परतों से होकर गुजरते हैं.

पुर्तगाल से आए प्रो. एडेलिनो कनारियो ने टेलीओस्ट मछलियों में सोमैटोस्टेटिन की भूमिका पर अपने निष्कर्ष रखे. उनके मुताबिक यह हार्मोन सिर्फ चयापचय नहीं बल्कि प्रतिरक्षा और प्रजनन पर भी असर डालता है. शोधार्थियों के लिए यह दिलचस्प था कि एक मछली में समझी गई प्रक्रिया कई बार मनुष्यों के हार्मोनल अध्ययनों की दिशा तय कर देती है.

बीएचयू के प्रो. राजीव रमन ने लिजार्ड पर अपने दो दशक के शोध साझा किए. तापमान के बदलने से लिंग निर्धारण कैसे बदल सकता है, यह हिस्सा छात्रों को काफी चौंकाने वाला लगा. प्रो. रमन ने कहा कि प्रकृति में लिंग निर्धारण सिर्फ आनुवंशिकी का खेल नहीं है बल्कि हार्मोन और बाहरी वातावरण की बातचीत भी इसे बदल सकती है.

संक्रामक रोगों पर हुई चर्चा में आईआईटी बीएचयू के प्रो. विकास कुमार दुबे और बीएचयू के प्रो. राकेश के सिंह ने लीशमैनिया डोनोवानी की प्रतिरक्षा से बचने की रणनीतियों और होल किल्ड वैक्सीन को अधिक प्रभावी बनाने में डेंड्रिटिक कोशिकाओं की भूमिका पर नए निष्कर्ष साझा किए. यह हिस्सा खास तौर पर उन छात्रों के लिए महत्वपूर्ण रहा जो वैक्सीन विकास पर काम कर रहे हैं.

समापन सत्र में डॉ. राघव कुमार मिश्रा ने कहा कि तीन दिन की यह वैज्ञानिक यात्रा 3 कीनोट, 13 प्लेनरी, 47 आमंत्रित व्याख्यान और 125 शोध प्रस्तुतियों के साथ काफी समृद्ध रही. मुख्य अतिथि डॉ. डेबोरा पावर ने युवा शोधकर्ताओं को पुरस्कृत किया और उम्मीद जताई कि यहां साझा किए गए निष्कर्ष आने वाले वर्षों में बायोमेडिकल विज्ञान को नई दिशा देंगे. बीएचयू के कोषाध्यक्ष डॉ. राहुल कुमार सिंह ने कार्यक्रम के अंत में सभी का आभार व्यक्त किया.

यह लेख/समाचार लोक मान्यताओं और जन स्तुतियों पर आधारित है। पब्लिक खबर इसमें दी गई जानकारी और तथ्यों की सत्यता या संपूर्णता की पुष्टि की नहीं करता है।

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