आईआईटी बीएचयू की चमत्कारिक खोज: 13 दिन में भरेगा डायबिटिक घाव
IIT बीएचयू के वैज्ञानिकों ने विकसित की 'लिविंग ड्रग फैक्ट्री', अब नहीं काटने पड़ेंगे मधुमेह रोगियों के अंग।

वाराणसी: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बीएचयू के शोधकर्ताओं ने चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में एक बड़ी सफलता हासिल की है। आईआईटी बीएचयू के स्कूल ऑफ बायोमेडिकल इंजीनियरिंग ने एक ऐसी "इंजीनियर्ड सेल थेरेपी" विकसित की है, जो मधुमेह यानी डायबिटिक घावों को भरने में क्रांतिकारी साबित हो सकती है। इस नई तकनीक से जो घाव भरने में महीनों का समय लेते थे, वे केवल 13 दिनों के भीतर पूरी तरह से ठीक हो जाएंगे।
जैव-चिकित्सा विज्ञान (बायोमेडिकल साइंस) के क्षेत्र में यह उपलब्धि वैश्विक स्वास्थ्य चुनौती का एक बड़ा समाधान पेश करती है, जिससे दुनिया भर में लाखों लोग प्रभावित हैं। दुनिया में हर 20 सेकंड में एक व्यक्ति डायबिटिक घावों में गंभीर संक्रमण के कारण अपना अंग खो देता है, जिसे ‘अंग विच्छेदन’ (amputation) कहा जाता है। इस नई थेरेपी से इस गंभीर समस्या से मुक्ति मिलने की उम्मीद जगी है।
इस महत्वपूर्ण शोध का नेतृत्व डॉ. सुदीप मुखर्जी, सहायक प्रोफेसर, स्कूल ऑफ बायोमेडिकल इंजीनियरिंग और उनके पीएच.डी. शोधार्थी मलय नायक ने किया है। शोध दल ने मानव कोशिकाओं को विशेष रूप से इंजीनियर किया है ताकि वे एक साथ तीन तरह के चिकित्सीय प्रोटीन (Therapeutic Protein) उत्पन्न कर सकें, जो घाव को तेज़ी से भरते हैं।
डॉ. सुदीप मुखर्जी के अनुसार, "ये कोशिका-युक्त हाइड्रोजेल कैप्सूल छोटे 'जीवित औषधि कारखानों' (living drug factories) की तरह काम करते हैं। ये घाव की स्थिति को खुद-ब-खुद पहचान लेते हैं और ज़रूरी दवाओं या अणुओं की निरंतर आपूर्ति करते रहते हैं। इससे डायबिटिक घाव का उपचार तेज़ी और पूर्णता से होता है।"
इस थेरेपी का परीक्षण डायबिटिक चूहों पर किया गया, जहाँ इसके असाधारण परिणाम देखने को मिले। जहाँ ऐसे घावों को भरने में सामान्यतः कई सप्ताह लग जाते हैं, वहीं इस उपचार से वे घाव सिर्फ 13 दिनों में पूरी तरह से ठीक हो गए।
डॉ. मुखर्जी ने आगे बताया कि ये कोशिका-युक्त कैप्सूल्स सिर्फ़ घावों के लिए ही नहीं, बल्कि यकृत (लिवर) में होने वाले रक्तस्राव को भी तुरंत रोकने में सक्षम पाए गए हैं। इस वजह से यह तकनीक आपातकालीन और सर्जरी (शल्य चिकित्सा) की परिस्थितियों में भी बहुत उपयोगी हो सकती है।
आईआईटी (बीएचयू) के निदेशक प्रो. अमित पात्रा ने शोध दल को बधाई दी। उन्होंने कहा कि इंजीनियर्ड सेल थेरेपी द्वारा डायबिटिक घावों का यह प्रभावी उपचार ट्रांसलेशनल बायोमेडिकल रिसर्च के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि है। उन्होंने विश्वास जताया कि यह कार्य लाखों मरीजों के जीवन में आशा की नई किरण जगाएगा और भारत की स्वास्थ्य प्रौद्योगिकी को मज़बूती देगा। यह खोज मधुमेह रोगियों के लिए एक बड़ी राहत है और उन्हें अंग विच्छेदन के खतरे से बचा सकती है।

