27 जून को पुरी में निकलेगी भगवान जगन्नाथ की ऐतिहासिक रथ यात्रा, भक्तों को मिलेगा दुर्लभ दर्शन का सौभाग्य

भारतवर्ष की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं में जगन्नाथ रथ यात्रा एक अत्यंत गौरवपूर्ण और भव्य पर्व के रूप में जानी जाती है। हर वर्ष की तरह इस बार भी यह दिव्य यात्रा ओडिशा के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल पुरी में आयोजित की जा रही है। इस वर्ष रथ यात्रा 27 जून 2025, दिन मंगलवार को निकाली जाएगी, जो आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को पड़ रही है। इस विशेष अवसर पर भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलभद्र और बहन देवी सुभद्रा के साथ रथों पर सवार होकर नगर भ्रमण के लिए मंदिर से बाहर निकलते हैं। यह एकमात्र ऐसा दिन होता है, जब भक्तों को भगवान के सीधे दर्शन का दुर्लभ सौभाग्य प्राप्त होता है।
पुरी की यह यात्रा केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक उत्सव का महासागर है, जिसमें लाखों श्रद्धालु देश-विदेश से जुटते हैं। भक्तों की आस्था और भगवान की लीला का ऐसा मिलन अन्यत्र दुर्लभ है। रथ यात्रा की भव्यता, इसकी परंपराएं और आयोजन की भक्ति-प्रधान ऊर्जा इसे विश्व के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक बनाती हैं।
भगवान स्वयं करेंगे नगर भ्रमण, भक्तों को मिलेगा कृपा का प्रसाद
रथ यात्रा की सबसे विशिष्ट बात यह है कि इस दिन भगवान स्वयं अपने भक्तों के बीच आते हैं। पुरी के श्रीमंदिर से तीनों देवताओं के भव्य रथ निकलते हैं और वे अपने मौसी के घर – गुंडिचा मंदिर तक की यात्रा करते हैं। इस यात्रा को ‘नगर भ्रमण’ कहा जाता है। भक्तजन अपने हाथों से रथ की रस्सी खींचकर भगवान को ले जाते हैं, जो न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि उनके प्रति समर्पण और प्रेम का प्रतीक भी है।
रथ यात्रा का यह आयोजन सामाजिक समरसता और भक्ति भावना का ऐसा मंच बन जाता है, जहां जात-पात, वर्ग-भेद सब विलीन हो जाते हैं। सभी मिलकर एक साथ नृत्य करते हैं, भजन गाते हैं और भगवान की जय-जयकार करते हैं। यह पर्व एक लोक-आध्यात्मिक मिलन का प्रतीक बन चुका है।
रथ निर्माण कार्य ज़ोरों पर, परंपरा और श्रद्धा का अद्भुत मेल
पुरी में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के विशाल रथों का निर्माण कार्य पारंपरिक रूप से विशेष नियमों और विधियों के तहत किया जाता है। यह निर्माण कार्य सालभर की योजना का हिस्सा होता है और आषाढ़ मास की रथ यात्रा से पहले अंतिम चरण में पहुंच चुका होता है। लकड़ी, रस्सी, और पारंपरिक औजारों का उपयोग कर विशेष शिल्पकारों की टोली इन रथों को बनाती है। हर रथ का नाम, रंग, आकार और रचना तयशुदा परंपराओं पर आधारित होती है – जैसे नंदिघोष (भगवान जगन्नाथ), तालध्वज (बलभद्र) और दर्पदलन (सुभद्रा)।
इन रथों को देखना स्वयं में एक आध्यात्मिक अनुभव है। हर रथ में धार्मिक और शास्त्रीय डिज़ाइन होते हैं, जो दर्शकों को भक्ति और गौरव की अनुभूति कराते हैं।
जगन्नाथ रथ यात्रा केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि एक जीवंत परंपरा है जो सदियों से भारत की सांस्कृतिक आत्मा को पोषित करती आ रही है। 27 जून 2025 को जब रथ यात्रा निकलेगी, तब पुरी की धरती पर भक्ति, उल्लास और आस्था का महासागर उमड़ पड़ेगा। यह पर्व केवल पुरी तक सीमित नहीं रहता, बल्कि पूरे भारत और विदेशों में बसे श्रद्धालु भी इसे विभिन्न माध्यमों से मनाते हैं।
यह लेख/समाचार लोक मान्यताओं और जन स्तुतियों पर आधारित है। पब्लिक खबर इसमें दी गई जानकारी और तथ्यों की सत्यता या संपूर्णता की पुष्टि की नहीं करता है।