10 जून को मनाई जाएगी ज्येष्ठ पूर्णिमा, चंद्र उदय के साथ होगा व्रत और पूजा का शुभ संयोग

हिंदू पंचांग के अनुसार, पूर्णिमा व्रत तभी मान्य होता है जब उस तिथि में चंद्रमा का उदय हो। इसी नियम के आधार पर इस वर्ष ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत का पालन 10 जून 2025, मंगलवार को किया जाएगा। यद्यपि पूर्णिमा तिथि 9 जून की रात से ही आरंभ हो जाएगी, परंतु चंद्रमा का दर्शन और अर्घ्य 10 जून को होने के कारण इस दिन व्रत रखने का विधान बताया गया है।
ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत पुण्यकारी मानी जाती है। इस दिन व्रत और पूजा करने से जीवन में चंद्र दोष कम होते हैं, मानसिक शांति मिलती है और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। साथ ही यह दिन दान-पुण्य, स्नान और व्रत के लिए विशेष शुभ माना गया है।
पूर्णिमा व्रत का शास्त्रीय नियम: चंद्रमा का उदय अनिवार्य
पंचांग के अनुसार, पूर्णिमा व्रत के निर्धारण में सबसे मुख्य बात होती है चंद्रमा का उदय पूर्णिमा तिथि में होना। यदि चंद्रमा अगले दिन पूर्णिमा तिथि में उदित होता है, तो उसी दिन व्रत करना शास्त्रसम्मत माना गया है। इसी आधार पर इस वर्ष ज्येष्ठ पूर्णिमा का व्रत 10 जून को रखा जाएगा, क्योंकि इसी दिन चंद्रमा का उदय होगा और भक्तगण उसे अर्घ्य अर्पित करेंगे।
चंद्र दर्शन के साथ पूर्णिमा की पूजा विशेष महत्व रखती है। चंद्रमा को हिंदू धर्म में मन और भावनाओं का अधिपति माना गया है, अतः उसकी उपासना से मानसिक संतुलन, शीतलता और भावनात्मक स्थिरता प्राप्त होती है।
ज्येष्ठ पूर्णिमा पर व्रत और पूजन की विधि
इस दिन व्रती को प्रातःकाल स्नान करके व्रत का संकल्प लेना चाहिए। गंगाजल से स्नान करना या कम से कम उसमें कुछ बूँदें मिलाकर स्नान करना विशेष पुण्यदायी होता है। इसके बाद भगवान विष्णु, चंद्र देव और शिव जी की पूजा करनी चाहिए। घर में या मंदिर में जाकर दीपक जलाएं, फल, मिष्ठान्न, सफेद पुष्प और चंदन से पूजन करें।
रात्रि में चंद्रमा के दर्शन के बाद अर्घ्य अर्पित करना पूर्णिमा व्रत की परंपरा का अहम हिस्सा होता है। दूध, चावल और गंगाजल मिलाकर चंद्रमा को अर्घ्य दें और उनसे मनोवांछित फल की कामना करें। व्रतधारी चाहें तो इस दिन केवल फलाहार करके भी दिनभर उपवास रख सकते हैं।
ज्येष्ठ पूर्णिमा के साथ जुड़े आध्यात्मिक और सामाजिक पक्ष
ज्येष्ठ पूर्णिमा केवल व्रत और पूजा का दिन नहीं है, बल्कि समाजसेवा, दान और जलसेवा का भी पर्व है। इस दिन गरीबों को जल पात्र, छाता, कपड़े और फल दान करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त यह तिथि वट सावित्री व्रत, गंगा स्नान महापर्व, और कई क्षेत्रों में संत परंपरा से जुड़े आयोजनों के रूप में भी जानी जाती है।
व्रत का पालन करने से जातक को चंद्र ग्रह की अनुकूलता प्राप्त होती है, स्मरण शक्ति तेज होती है और पारिवारिक जीवन में सुख-शांति बनी रहती है। ज्येष्ठ मास में जल की महत्ता को देखते हुए इस दिन प्यासों को पानी पिलाना या प्याऊ लगवाना अत्यंत पुण्यदायक माना जाता है।
10 जून को आने वाली ज्येष्ठ पूर्णिमा धार्मिक ही नहीं, पर्यावरणीय और सामाजिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। जल सेवा, चंद्र पूजा और मानसिक संतुलन का यह पर्व हर किसी को आत्मिक संतोष और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है। इस पावन अवसर पर व्रत, पूजा और दान से जीवन को सुखमय बनाएं।
यह लेख/समाचार लोक मान्यताओं और जन स्तुतियों पर आधारित है। पब्लिक खबर इसमें दी गई जानकारी और तथ्यों की सत्यता या संपूर्णता की पुष्टि की नहीं करता है।