माथे पर चंदन और रोली का तिलक क्यों लगाया जाता है? जानिए इसके पीछे की आध्यात्मिक और वैज्ञानिक वजह

माथे पर चंदन और रोली का तिलक क्यों लगाया जाता है? जानिए इसके पीछे की आध्यात्मिक और वैज्ञानिक वजह
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भारतीय संस्कृति में माथे पर तिलक लगाना केवल एक धार्मिक कर्मकांड नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहन वैज्ञानिक और आध्यात्मिक आधार छिपा है। चाहे मंदिर जाएं, कोई पूजा-पाठ हो, या फिर किसी शुभ अवसर की शुरुआत—माथे पर चंदन या रोली का तिलक अनिवार्य रूप से लगाया जाता है। यह परंपरा न केवल आस्था से जुड़ी हुई है, बल्कि मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य से भी इसका सीधा संबंध होता है।

आध्यात्मिक दृष्टि से क्यों महत्वपूर्ण है तिलक

हिंदू धर्म में माना जाता है कि हमारे शरीर में कई ऊर्जा केंद्र (चक्र) होते हैं, जिनमें से 'आज्ञा चक्र' या 'भ्रूमध्य' (दोनों भौंहों के बीच का स्थान) सबसे शक्तिशाली होता है। यह स्थान ध्यान, एकाग्रता और आत्मबोध से जुड़ा है। जब चंदन या रोली का तिलक इस स्थान पर लगाया जाता है, तो यह चेतना को जागृत करने और सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करने में सहायक होता है। यही कारण है कि ऋषि-मुनियों, साधु-संतों से लेकर आम भक्त तक, सभी तिलक लगाते हैं।

चंदन: शीतलता और सात्त्विकता का प्रतीक

चंदन को उसकी ठंडक देने वाली प्रकृति के लिए जाना जाता है। माथे पर चंदन लगाने से मानसिक तनाव में राहत मिलती है और मस्तिष्क शांत रहता है। गर्मियों में यह विशेष रूप से लाभकारी होता है। साथ ही यह तिलक व्यक्ति को सात्त्विक भाव प्रदान करता है, जिससे वह ईश्वरीय भावों में लीन हो सके।

रोली: शक्ति और समर्पण का प्रतीक

रोली, जिसे कुमकुम या सिंदूर भी कहा जाता है, मुख्यतः हल्दी और नीबू से बनी होती है। इसका रंग लाल होता है जो शक्ति, ऊर्जा और साहस का प्रतिनिधित्व करता है। धार्मिक रूप से यह देवी शक्तियों का स्वरूप मानी जाती है और विवाहिता स्त्रियों के लिए यह सौभाग्य का प्रतीक होती है। जब रोली का तिलक लगाया जाता है, तो यह भक्त की निष्ठा, समर्पण और आंतरिक बल को दर्शाता है।

वैज्ञानिक कारण भी है प्रभावी

तिलक लगाने का स्थान ऐसा है, जहां से कई नसें और तंत्रिका तंत्र गुजरते हैं। जब उस स्थान पर किसी सुगंधित या शीतल द्रव्य को लगाया जाता है, तो यह मानसिक स्पष्टता और एकाग्रता बढ़ाने में मदद करता है। तिलक लगाने से न केवल मन शांत होता है, बल्कि यह रक्त संचार को भी संतुलित करता है। यही वजह है कि योग, ध्यान और पूजा के समय इसे लगाना अनिवार्य माना गया है।

परंपरा से जुड़ी आधुनिकता में भी तिलक का स्थान अटूट

आज भले ही बहुत सी पुरानी परंपराएं बदल चुकी हों, लेकिन माथे पर तिलक लगाने की परंपरा आज भी जीवित है। चाहे वह किसी त्यौहार का दिन हो, परीक्षा में जाने से पहले की तैयारी, या किसी नए कार्य की शुरुआत—तिलक लगाना आज भी लोगों के विश्वास का प्रतीक है।

यह लेख/समाचार लोक मान्यताओं और जन स्तुतियों पर आधारित है। पब्लिक खबर इसमें दी गई जानकारी और तथ्यों की सत्यता या संपूर्णता की पुष्टि की नहीं करता है।

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