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नेली नरसंहार 1983: 7 घंटे में 2,000 से ज्यादा मौतें, 42 साल बाद रिपोर्ट का खुलासा

असम के नेली इलाके में हुए नरसंहार की पूरी सच्चाई अब 42 साल बाद सार्वजनिक रिपोर्ट में

नेली नरसंहार 1983: 7 घंटे में 2,000 से ज्यादा मौतें, 42 साल बाद रिपोर्ट का खुलासा
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नेली नरसंहार 1983 में असम के 14 गांवों में 7 घंटे में हुई 2,000 से ज्यादा मौतों की सच्चाई अब 42 साल बाद रिपोर्ट के जरिए सामने आई। जानिए असम आंदोलन और राजनीतिक विवाद के पूरे तथ्य।

नेली नरसंहार का इतिहास और घटनाक्रम

18 फरवरी 1983 को असम के नेल्ली इलाके में हुई हिंसा ने 14 गांवों में 7 घंटे के भीतर कम से कम 1,800 लोगों की जान ले ली। गैर-सरकारी आंकड़ों में मृतकों की संख्या 3,000 से अधिक बताई गई है। मारे गए ज्यादातर लोग प्रवासी मुस्लिम थे, जिनमें बच्चे और महिलाएं शामिल थे। यह नरसंहार असम आंदोलन के चरम पर हुआ, जब अखिल असम छात्र संघ (आसू) घुसपैठियों के खिलाफ आंदोलन चला रहा था।

असम आंदोलन और वोटिंग विवाद

असम में उस समय चुनावी तनाव और विदेशी वोटरों की बढ़ती संख्या ने स्थानीय लोगों में नाराजगी पैदा की। असमिया लोग आंदोलन का समर्थन कर रहे थे और बंगाली मुस्लिम वोटर चुनाव में भाग लेने आए। इसी तनाव ने नेली और आसपास के गांवों में हिंसा को जन्म दिया। आयोग की रिपोर्ट में साफ कहा गया कि यह पूरी तरह सांप्रदायिक हिंसा नहीं थी।

नेली नरसंहार के पीड़ितों की कहानी

नेली के निवासियों ने बताया कि हमला सुबह 8 बजे शुरू हुआ और दोपहर 2 बजे तक जारी रहा। हमलावरों ने धारदार हथियारों और तीर-कमान से निर्दोष लोगों की हत्या की। कोपिली नदी तक लाशों से भर गई। कई परिवार एक ही दिन में खत्म हो गए।

जांच आयोग और रिपोर्ट

तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने न्यायमूर्ति त्रिभुवन प्रसाद तिवारी की अध्यक्षता में जांच आयोग बनाया। 547 पेज की रिपोर्ट में 688 मामलों का जिक्र है। आयोग ने आसू और अन्य संगठनों को हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराया, लेकिन स्पष्ट किया कि इसे पूरी तरह सांप्रदायिक रंग देना गलत होगा।

रिपोर्ट 42 साल बाद सार्वजनिक

असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने इस रिपोर्ट को नवंबर में होने वाले विधानसभा सत्र में पेश करने का फैसला किया। यह कदम लंबे समय से दबाए गए तथ्यों को सामने लाने और इतिहास की सच्चाई उजागर करने के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएं

कुछ आलोचक मानते हैं कि रिपोर्ट को सार्वजनिक करने से शांति और सामाजिक सद्भाव प्रभावित हो सकता है। वहीं कई इतिहासकार और समाज विज्ञानी इसे असम के इतिहास और नागरिकों के लिए जरूरी कदम मान रहे हैं।

नेली नरसंहार और असम की राजनीति

असम में 1983 के चुनाव और असम आंदोलन ने प्रदेश के राजनीतिक इतिहास को हमेशा के लिए बदल दिया। रिपोर्ट के सार्वजनिक होने से अब लोग हिंसा के वास्तविक कारण, जिम्मेदार और असम आंदोलन के सच को समझ सकेंगे।

यह लेख/समाचार लोक मान्यताओं और जन स्तुतियों पर आधारित है। पब्लिक खबर इसमें दी गई जानकारी और तथ्यों की सत्यता या संपूर्णता की पुष्टि की नहीं करता है।

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