परशुराम जयंती 2025: 29 अप्रैल को मनाई जाएगी भगवान परशुराम की जयंती, जानिए पूजन विधि, शुभ मुहूर्त और महत्व

परशुराम जयंती 2025: 29 अप्रैल को मनाई जाएगी भगवान परशुराम की जयंती, जानिए पूजन विधि, शुभ मुहूर्त और महत्व
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हिन्दू धर्म में भगवान परशुराम को विष्णु जी के छठे अवतार के रूप में पूजा जाता है। उन्हें धर्म की स्थापना और अधर्म के नाश के लिए जाना जाता है। परशुराम जी का जन्म वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हुआ था। यही कारण है कि प्रतिवर्ष इस दिन को 'परशुराम जयंती' के रूप में बड़े श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। 2025 में परशुराम जयंती को लेकर कुछ भ्रम की स्थिति बनी हुई थी, लेकिन पंचांग के अनुसार, इस वर्ष परशुराम जयंती 29 अप्रैल को मनाई जाएगी, न कि 30 अप्रैल को। इस दिन श्रद्धालु विशेष पूजन और अनुष्ठान कर भगवान परशुराम का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

भगवान परशुराम का जीवन और महत्व

भगवान परशुराम केवल विष्णु के अवतार ही नहीं, बल्कि भगवान शिव के परम उपासक भी माने जाते हैं। उनके शौर्य और तप का वर्णन वेदों और पुराणों में विस्तार से मिलता है। परशुराम जी का जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ, परंतु उन्होंने क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए अधर्म और अन्याय का नाश किया। वे आजीवन ब्रह्मचारी रहे और अपने अद्भुत पराक्रम के लिए जाने जाते हैं। भारतीय संस्कृति में उन्हें न्याय, वीरता और तपस्या का प्रतीक माना जाता है। माना जाता है कि भगवान परशुराम आज भी जीवित हैं और समय आने पर पुनः मानवता की रक्षा के लिए प्रकट होंगे।

परशुराम जयंती 2025 का तिथि विवाद और निर्णय

इस वर्ष परशुराम जयंती की तिथि को लेकर कुछ समय तक असमंजस की स्थिति रही, क्योंकि वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 29 और 30 अप्रैल, दोनों दिनों में पड़ रही थी। लेकिन धार्मिक पंचांगों और विद्वानों के अनुसार, तृतीया तिथि 29 अप्रैल को पूर्ण दिन रहेगी, इस कारण परशुराम जयंती का उत्सव इसी दिन मनाया जाएगा। शुभ मुहूर्त में पूजन कर भगवान परशुराम की कृपा प्राप्त करना विशेष फलदायी रहेगा।

पूजन विधि और विशेष अनुष्ठान

परशुराम जयंती के दिन प्रातःकाल स्नान करके व्रत और पूजा का संकल्प लेना चाहिए। भगवान परशुराम की प्रतिमा या चित्र के समक्ष दीपक जलाकर पंचोपचार अथवा षोडशोपचार विधि से पूजन करें। पुष्प, अक्षत, चंदन, धूप और नैवेद्य अर्पित करें। इसके बाद भगवान परशुराम के बीज मंत्र "ॐ परशुरामाय नमः" का 108 बार जाप करना अत्यंत शुभ माना गया है। इस दिन ब्राह्मणों को भोजन कराना, दान-दक्षिणा देना और धार्मिक ग्रंथों का पाठ करना भी अत्यंत पुण्यकारी होता है। यदि संभव हो तो भागवत कथा या विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना चाहिए, जिससे जीवन में सुख, समृद्धि और विजय का मार्ग प्रशस्त होता है।

परशुराम जयंती का आध्यात्मिक महत्व

परशुराम जयंती केवल एक पर्व नहीं है, बल्कि यह धर्म, न्याय और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है। भगवान परशुराम का जीवन संघर्ष, तप और आदर्शों का प्रतीक है। उनके आदर्शों का अनुसरण कर व्यक्ति अपने जीवन में आने वाली सभी बाधाओं को पार कर सकता है। विशेष रूप से यह दिन ब्राह्मण और क्षत्रिय जातियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, लेकिन सभी जाति और धर्म के लोग परशुराम जी की भक्ति कर उनके गुणों से प्रेरणा ले सकते हैं।

यह लेख/समाचार लोक मान्यताओं और जन स्तुतियों पर आधारित है। पब्लिक खबर इसमें दी गई जानकारी और तथ्यों की सत्यता या संपूर्णता की पुष्टि की नहीं करता है।

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