रामलला के साथ पूरक मंदिरों में भी दर्शन करेंगे पीएम, अयोध्या में लिखेंगे आस्था का नया अध्याय

प्रधानमंत्री मोदी स्वर्ण शिखर पर ध्वज चढ़ाने के साथ राम जन्मभूमि परिसर में बने 14 पूरक मंदिरों में दर्शन कर वैदिक परंपरा और समरसता का संदेश देंगे।

रामलला के साथ पूरक मंदिरों में भी दर्शन करेंगे पीएम,  अयोध्या में लिखेंगे आस्था का नया अध्याय
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अयोध्या इन दिनों फिर चर्चा में है। जन श्रृति है कि हर यात्रा एक नई कहानी की शुरुआत कर जाती है और मंगलवार को प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा भी कुछ ऐसा ही कर सकती है। वे राम मंदिर के स्वर्ण शिखर पर ध्वज चढ़ाने आ रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि वे केवल गर्भगृह में ही नहीं रुकेंगे बल्कि पूरे राम जन्मभूमि परिसर में बने 14 पूरक मंदिरों में भी दर्शन करेंगे। परिसर के इन मंदिरों को अक्सर लोग एक शांत पंक्ति में खड़े दिव्य साक्षियों जैसा बताते हैं जो वैदिक परंपरा का विस्तार संभालते हैं।

मुख्य मंदिर के चारों ओर बना परकोटा लगभग आयताकार है और उसके भीतर स्थापित ये पूरक मंदिर एक समान ऊंचाई पर तैयार किए गए हैं। इन्हें देखते समय ऐसा लगता है जैसे हर दीवार कहानी कह रही हो। पंच देव की परंपरा के अनुसार शिव, गणेश, सूर्य और माता दुर्गा के विग्रह यहां स्थापित हैं। हनुमान का मंदिर परकोटे की दक्षिण भुजा के पास है जबकि उत्तर की ओर अन्नपूर्णा माता का मंदिर भक्तों का ध्यान खींचता है। परिसर में आने वाले श्रद्धालु इसे संतुलन और समृद्धि का केंद्र मानते हैं।

परिसर के आग्नेय दिशा में सप्तर्षि मंडप है। यह जगह हमेशा एक अलग सुकून देती है। मंडप में वाल्मीकि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, अगस्त्य, निषादराज, शबरी और अहिल्या की प्रतिमाएं हैं। यह वही त्रेतायुगीन पात्र हैं जिनसे राम कथा की कई धड़कनें जुड़ी हुई हैं। प्रधानमंत्री इन विग्रहों के समक्ष नमन कर सामाजिक समरसता का संदेश भी देने वाले हैं। स्थानीय लोग कहते हैं कि यह परिसर आस्था ही नहीं बल्कि परंपरा को जोड़ने वाला स्थान बन चुका है।

राम मंदिर से थोड़ा आगे कुबेर टीला है जहां गिद्धराज जटायु की विशाल प्रतिमा खड़ी है। यह प्रतिमा उस साहस और त्याग का प्रतीक है जिसने राम कथा को सबसे भावुक मोड़ दिया था। संभावना है कि प्रधानमंत्री यहां भी पहुंचेंगे। दर्शन करने वालों का कहना है कि जटायु की प्रतिमा देखते ही मन में एक पुरानी कथा की लहर उठती है, जैसे हवा खुद उस पल को दोहराती हो।

परिसर में लक्ष्मण का मंदिर भी है जो शेषावतार का प्रतीक माना जाता है। यह मंदिर अपने शांत वातावरण के कारण लोगों को तुरंत आकर्षित करता है। प्रधानमंत्री अपने तीन घंटे के प्रवास में यहां भी रुकेंगे, ऐसा तैयारियों से संकेत मिलता है।

यह पूरा दौरा केवल रस्म नहीं बल्कि अयोध्या में आस्था के एक विस्तार जैसा लगता है। राम मंदिर अपने आप में बड़ी पहचान है लेकिन अब उसके साथ पूरक मंदिरों का यह समुच्चय सांस्कृतिक परंपरा को और गहरा कर रहा है। स्थानीय लोग इसे अयोध्या की नई छवि मान रहे हैं जहां स्थापत्य, आध्यात्मिकता और कथा एक साथ जीवंत हो उठती हैं।

यह लेख/समाचार लोक मान्यताओं और जन स्तुतियों पर आधारित है। पब्लिक खबर इसमें दी गई जानकारी और तथ्यों की सत्यता या संपूर्णता की पुष्टि की नहीं करता है।

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