ज्यों ज्यों दवा की मुफलिसी बढ़ती गई, इलाज की बढ़ती कीमतें धकेल रहीं डेढ़ अरब आबादी को गरीबी की ओर
इलाज के बढ़ते बोझ ने करोड़ों लोगों को आर्थिक तंगी में धकेला

ज्यों ज्यों दवा की मुफलिसी बढ़ती गई... दुनिया में गरीबों की कतार भी लंबी होती चली गई। विश्व स्वास्थ्य संगठन यानि World Health Organization और वर्ल्ड बैंक की संयुक्त रिपोर्ट ने इस सच को साफ शब्दों में सामने रखा है। रिपोर्ट बताती है कि इलाज का बढ़ता बोझ करीब 1.6 अरब लोगों को अत्यधिक गरीबी के दलदल में ले गया। यह आंकड़ा किसी एक क्षेत्र की नहीं बल्कि पूरे वैश्विक प्रणाली की खामियों की तरफ इशारा करता है।
स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच की चुनौती
रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में 4.6 अरब लोग अभी भी जरूरी स्वास्थ्य सेवाओं तक नहीं पहुंच पा रहे। वजह वही पुरानी और कड़वी। इलाज की लागत इतनी भारी पड़ती है कि लोग अस्पताल पहुंचने से पहले पर्स नहीं, अपनी किस्मत टटोलते हैं। दवा, जांच और इलाज की कीमतें कई परिवारों के पूरे बजट को हिला देती हैं। कई बार लोग बीमारी का इलाज करवाने की जगह उसे झेलना पसंद कर लेते हैं क्योंकि खर्च उठाना मुश्किल हो जाता है।
भारत और पड़ोसी देशों की स्थिति
भारत में भी हालात अलग नहीं हैं। यहां 30.9 प्रतिशत लोग इलाज पर होने वाले खर्च की वजह से आर्थिक संकट से जूझते हैं। यह अनुपात बताता है कि हर तीसरे घर में स्वास्थ्य खर्च एक बड़ी चिंता बन चुका है। पड़ोसी देशों में भी हालात कुछ बेहतर नहीं। चीन में 33.6 प्रतिशत, पाकिस्तान में 33.9 प्रतिशत और बांग्लादेश में 41.7 प्रतिशत लोग इसी तरह की आर्थिक तंगी का सामना करते हैं।
सबसे ज्यादा प्रभावित कौन
सबसे ज्यादा मार उन पर पड़ती है जिनकी कमाई सीमित होती है। महिलाएं, ग्रामीण परिवार और कम शिक्षित लोग दवा की कीमतों से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। इन्हें इलाज की जरूरत ज्यादा होती है लेकिन खर्च उठाने की क्षमता कम होती है। कई बार बीमारी से ज्यादा कर्ज का डर बड़ा लगने लगता है।
भारत की स्वास्थ्य कवरेज की स्थिति
वैश्विक स्वास्थ्य कवरेज सूचकांक में भारत को 100 में 69 अंक मिले हैं। यह प्रगति तो दिखाता है, पर यह भी साफ करता है कि अभी स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच और लागत दोनों में सुधार की काफी गुंजाइश है। रिपोर्ट कहती है कि 2000 से 2023 के बीच कई सकारात्मक कदम उठे, फिर भी चुनौतियां अब भी सामने खड़ी हैं।
विशेषज्ञों की राय
विशेषज्ञों की राय है कि अगर सरकारें दवा और इलाज की लागत को नियंत्रित करने के लिए ठोस कदम नहीं उठातीं तो आने वाले वर्षों में गरीबों की संख्या और बढ़ सकती है। रिपोर्ट ने देशों से अपील की है कि वे स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत करें और आम आदमी को आर्थिक सुरक्षा दें ताकि कोई भी परिवार बीमारी के चलते कंगाल न हो।
अंत में फिर वही कड़वा सच
अंत में बात फिर उसी सच पर लौटती है। ज्यों ज्यों दवा की मुफलिसी बढ़ती गई, आम लोगों की जिंदगी मुश्किल होती गई। यह संकट सिर्फ आंकड़ों का खेल नहीं बल्कि उन परिवारों की कहानी है जिनके लिए इलाज अब राहत नहीं, बल्कि एक नया डर बन गया है।

